भंडारा. ओमिक्रॉन वायरस की लहर शुरू हुई एवं एतिहायत के तौर सरकार ने स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए. कोरोना की लहर आती एवं जाती रहेंगी. लेकिन क्या वायरस के डर से बच्चों को सीखने का मौका नहीं देना यह गलत है. सरकार आखिर बच्चों को सीखने देना चाहती है या नहीं? ऐसा सवाल ग्रामीण क्षेत्र के नागरिक पूछ रहे हैं.
स्कूल पिछले शैक्षणिक वर्ष 2021 में जून में शुरू होने की उम्मीद थी. हालांकि सरकार ने कोरोना के नाम पर स्कूल नहीं खोला. नवंबर के महीने में कुछ स्कूल शुरू हुई एवं छात्रों ने स्कूल जाना शुरू कर दिया. इसी बीच ओमाइक्रोन की शुरुआत हुई एवं सरकार ने फैसला लेकर तुरंत स्कूलों को बंद कर दिया. नतीजा यह रहा कि छात्र स्कूल एवं पढाई से दूर हो गए. एक ओर बाजार में भीड़ है, शराब की दुकानों को अनुमति है, लेकिन छात्रों की पढ़ाई की सुविधा क्यों नहीं मिल रही है? यह सवाल अभिभावक कर रहे है.
छात्रों भविष्य खतरे में : संजय मते
ग्रामीण इलाकों में रहने वाले बच्चों को वर्चुअल शिक्षा नहीं मिल पा रही है. बच्चों के हाथ में मोबाइल चले जाने पर उसका बेजा इस्तेमाल होता है. यह बहुत ही गंभीर मामला है एवं यह मोबाइल एडीक्शन वायरस कोरोना से भी बदतर है. सामाजिक कार्यकर्ता संजय मते का मानना है कि छात्रों की शिक्षा बंद होने से उनका पूरा भविष्य खतरे में पड़ गया है.
अंधेरे में बच्चों का भविष्य : कृष्णकुमार बतरा
अंतिम संस्कार एवं शादियों में कम ही लोग शामिल होते हैं. इसी तर्ज पर स्कूल में बारी-बारी से पढ़ाई करनी चाहिए. जिससे छात्रों का शैक्षणिक नुकसान नहीं होगा. व्यवसायी कृष्णकुमार बतरा ने विचार व्यक्त किया है कि सरकार ने स्कूल बंद करके बच्चों के भविष्य को अंधकारमय करने की कोशिश की जा रही है.