मराठी माध्यम स्कूलों की तो चल निकली, मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल बन रहा कलह का कारण

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    • अंग्रेजी मिडियम के प्रति रुझान कम 
    • आनलाईन पढ़ाई बहु तो नहीं आ रही रास

    भंडारा. कोरोना महामारी के दस्तक देने से पहले तथा वर्तमान स्थिति के बारे में चर्चा की जाए तो यह बात सामने आती है कि अन्य क्षेत्रों की तरह स्कूलों में प्रवेश के मुद्दे पर लोगों का नज़रिया पहले के मुकाबले बहुत बदला है. इस महामारी के आने से पहले जिले में जहां मराठी माध्यम के स्कूल में अपने बच्चों के नाम लिखवाने के प्रति पालकों का नजरिया ऐसा था कि वे अपने बच्चों के स्कूल दाखिले के बारे में अंग्रेजी माध्यम के अलावा किसी दूसरे विकल्प के बारे में सोचते ही नहीं थे.

    लेकिन कोरोना महामारी के दौर के आनलाइन शिक्षा ने बहुतों की कमर तोड़कर रख दी और कल तक जो पालक अपने बच्चे की पढ़ाई अंग्रेजी माध्यम से अलावा किसी अन्य माध्यम से कराने के बारे में सोचना भी नहीं चाहते थे, वे आज कह रहे हैं कि मराठी माध्यम के स्कूल भी खराब नहीं हैं. 

    पिछले दो वर्षों में बहुत से बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया और अब जबकि एक बार फिर से स्कूलों में पढ़ाई शुरु हो गई तो अधिकांश पालकों ने एक स्वर से कहा है कि हमें अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से स्कूल में नहीं पढाना है. मार्च 2020 को सरकार के आदेश पर जिले के सभी स्कूलों पर ताले लगा दिए गए.

    कोरोना से बच्चों की रक्षा करने के लिए स्कूलों पर ताला लगाने के सरकारी ऐलान के बाद कुछ लोगों ने आनलाइन के माध्यम से पढ़ाई जारी रखने की बात कही. कुछ अति उत्साही लोगों ने इस व्यवस्था को सामने लाया तो जरूर पर यह व्यवस्था न तो शहरी क्षेत्र में अच्छी तरह से काम में लायी जा सकी और न ही ग्रामीण क्षेत्र में. आनलाइन शिक्षा के लिए जरूरी साधनों तथा वातावरण निर्माण करने में सफलता न मिल पाए के कारण आनलाइन शिक्षा ज्यादातर स्थानों पर फ्लाप शो बन कर रह गई. 

    स्कूल बंद होने के बावजूद फीस भरनी होगी, अंग्रेजी माध्यम के स्कूल प्रबंधन की इस नीति से अधिकांश अभिभावकों ने नाराज़गी भी जतायी.  अंग्रेजी माध्यम के कुछ स्कूलों ने जब हद कर दी तो पालक का गुस्सा और तेज हो गया और उन्होंने उसी समय यह तय कर लिया कि वे अपने बच्चे की आगे की पढ़ाई मराठी माध्यम के स्कूलों से ही कराएंगे.

    वर्तमान शैक्षणिक सत्र में मराठी विभाग के स्कूलों में प्रवेश को लेकर ज्यादा पालक लालायित नज़र नहीं आ रहे हैं और अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में अपने बच्चे को प्रवेश दिलवाने के लिए फीस के तौर पर भारी-भरकम रकम चुकाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं.

     अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की ओर से फीस के तौर पर भारी-भरकम रकम वसूलने की लोभीवृत्ति का नतीजा यह रहा कि शहरी क्षेत्र में 10 से 15 तथा ग्रामीण क्षेत्र में 40 प्रतिशत अंग्रेजी माध्यम से स्कूलों पर ताला लगने की स्थिति आ गई है. अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों से जिन विद्यार्थियों ने मुंह मोड़ा है, उन्होंने सरकारी स्कूलों की ओऱ रूख किया है.

    सरकारी स्कूल में प्रवेश लेने वाले अधिकांश विद्यार्थियों ने साइंस विषय के स्थान पर सेमी-साइंस विषय लेकर अपनी पढ़ाई को आगे बढ़ाया.शहरी क्षेत्र के स्कूलों में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों ने शहर पुराने चर्चित सरकारी स्कूलों में प्रवेश को प्रधानता दी है. 

    ग्रामीण क्षेत्रों में भी बहुत से सरकारी स्कूल है, लेकिन भंडारा, तुमसर, साकोली, लाखनी तथा पवनी के स्कूलों के प्रति पालकों की रुचि बढ़ी है. भंडारा के पुराने स्कूलों के प्रति भी अभिभावकों की रुचि ब़ढ़ी है. जिले में 102 अंग्रेजी माध्यम के स्कूल हैं, शहर की कुछ स्कूलों को छोड़ दिया जाए तो शेष स्कूलों की हालत बड़ी खराब है. सरकार की ओर के आरटीई के पैसे नहीं दिए जाने की वजह से अंग्रेजी माध्यम से स्कूलों का गणित गड़बड़ा गया है.

    आरटीई के विद्यार्थियों का पलायन, बालकों तथा निशुल्क तथा सख्ती के नियमों के कारण हर अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में 25 प्रतिशत बच्चों को निशुल्क प्रवेश देना अनिवार्य है, इतना ही नहीं कक्षा आठ तक इन बच्चों से फीस के तौर पर कुछ भी नहीं लिया जाता. आरटीई के तहत प्रवेश लेने वाले अंग्रेजी माध्यम  स्कूलों के विद्यार्थियों की संख्या में बड़े पैमाने पर कमी क्यों आई है, यह बात भी कम चिंता का विषय नहीं है.