प्रतीकात्मक तस्वीर
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    भंडारा. गरीबी की रेखा के नीचे जीवन-बसर करने वाले लोगों को सस्ते दर में चावल सरकारी राशन की दुकान पर पहुंचता तो है लेकिन वह गरीबों को न मिलकर खुले बाजार में पहुंच रहा है. गरीब लोगों को हर माह इस सरकारी सस्ते गल्ले को खुले बाजार में कौन पहुंचा रहा है, इसकी खोज खबर लेने वाला कोई नहीं है.

    रोटी के बगैर रहने वाले लोग चावल का उपयोग करके अपना गुजारा कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि राशन की दुकान पर 2 रूपए प्रति किलो मिलने वाला गेहूं भी खुले बाजार में 8 से 10 रूपए प्रति किलो के भाव से बेचा जा रहा है.

    जिले के शहरी तथा ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में राशन के दुकानों का चावल खुले बाजार में बेचे जाने की शिकायत के बाद भी किसी तरह की कार्रवाई न होने पर सवाल उठाये जा रहे हैं. न सिर्फ भंडारा तहसील क्षेत्र बल्कि तुमसर तथा साकोली में भी कुछ अलग स्थिति नहीं है. अत्योदय तथा स्वीकृत वर्ग के लाभार्थियों को केंद्र तथा राज्य सरकार की ओर से संचालित योजनाओं के माध्यम से निशुल्क आनाज वितरित किया जाता है.

     लाभार्थियों को धान वितरित किए जाने के बाद क्या वे उस अनाज का खुद के लिए उपयोग में लाते हैं, यह उसे किसी दुकान में बेंच देते हैं. आपूर्ति विभाग पर इस बात की जिम्मेदारी होती है कि वह यह जांच करे कि जिले सभी राशन दुकानों में कितना अनाज आया, उसमें से कितना वितरित किया गया और कितना शेष बचा है. उल्लेखनीय है अंत्योदय योजना का लाभ लेने वाले कार्डधारकों को हर माह 35  किलो राशन मिलता है.

    25 किलो चावल, 10 किलो गेहूं हर कार्डधारकों को दिया जाता है. चावल तीन रुपए तथा गेंहू 2 रूपए प्रति किलो की दर से दिया जाता है, लेकिन अब गरीबों के लिए सरकार की ओर से भेजे जा रहे चावल-गेहूं की भी कालाबाजारी होने लगी है, ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं होती. सरकार जिन गरीबों के लिए निवाले का प्रबंध करती है, अगर वह अनाज खुले बाजार में ऐसे ही बिकने लगे तो राशन की दुकाने कालाबाजारी के केंद्र बन जाएंगे. 

    जो दुकानदार राशन का चावल या गेहुं को खुले बाजार में बेच रहे हैं, न केवल गरीबों का हक मार रहे हैं, बल्कि उन लोगों को भी बल प्रदान कर रहे है, जो काले कारनामे करके गरीबों के निवाले से भी कमाई का रास्ता तलाश रहे हैं, ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग की जा रही है.