Buldhana-Ganpati

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    • राजमाता जिजाऊ की इच्छा को ध्यान में रखते हुए 
    • गोसावी नंदन ने शुरू किया था उत्सव

    बुलढाना. शेंदूर लाल चढायो अच्छा गजमुख को, दोन दिल बिराजे सुत गौरी हर हर को…. इस श्रीगणेशजी की प्रचलित आरती के रचिता गोसावी नंदन स्वामी ने राष्ट्रमाता मां जिजाऊ की इच्छा के अनुसार सिंदखेड़ राजा में शुरू की गणेश उत्सव की परंपरा आज भी कायम है. यहां के श्री गोसावी नंदन गणपति संस्थान स्थानीय मूर्तिकार काली मिट्टी से पर्यावरण पूरक गणेशजी की मूर्ती तैयार करते हैं. दस दिनों के गणेश उत्सव के पश्चात ग्यारावे दिन गणपति बाप्पा का विसर्जन किया जाता है. 

    इस गणेशोत्सव को लेकर कहा जाता है कि गोसावी नंदन का असली नाम वासुदेव था तथा वे बीड जिले के निवासी थे. उनके घर में भगवान श्रीगणेश की भक्ति की जाती थी. आगे चल कर वासुदेव ने भी  गणपतिजी की उपासना प्रारंभ कर दी. इसी दौरान उन्होंने ज्ञान मोदक नामक एक ग्रंथ भी लिखा जो आज भी पढा जाता है. वासुदेव ने पुणे के मोरया गोसावी संस्था में अध्ययन किया तथा श्रीगणेशजी की आराधना संपूर्ण जीवन भर करने का निर्णय लिया.

    वासुदेव का आगे गोसावी नंदन यह नामकरण इसी जगह पर किया गया. सोलवे शतक में पुणे में राजमाता जिजाऊ ने मोरया गोसावी की भेंट ली व अपने मायके में यानि सिंदखेड़ राजा में गणेशोत्सव शुरू करने की इच्छा जाताई. मां जीजाऊ की ईच्छा की कद्र करते हुए इसी को आदेश मान कर मोरया गोसावी ने अपने शिष्य गोसावी नंदन को तत्कालीन सिद्धखेड़ नाम से पहचाने जाने वाले सिंदखेड़ राजा को भेजा. जहां गणेशोत्सव प्रारंभ किया गया. अब यह 400 साल पुरानी परंपरा आज भी कायम है.

    पर्यावरण पूरक गणेशजी की परंपरा

    हरसाल यहां पर काली मिट्टी, घांस व प्राकृतिक रंगों से भगवान श्रीगणेश की मयूर पर संवार मूर्ति तैयार की जाती है. परंपरा के अनुसार स्थानीय मूर्तिकार ही प्रतिमा को तैयार करते हैं. यह मूर्ति तैयार करने के लिए एक परंपरा चली आ रही है. गोकुल अष्टमी के पहले राहेरी के पूर्णा नदी की मिट्टी से इस मंदिर में लाई जाती है. जिसे कुम्हार शास्त्र शुद्ध पद्धति से तैयार करते हैं. गोकुल अष्टमी को मिट्टी का पूजन कर मूर्ति तैयार करने का काम शुरू किया जाता है.