गोंडपिपरी: गोंडपिपरी तहसील अंतर्गत आनेवाले धाबा वनपरिक्षेत्र के डोंगरगांव जंगल में कक्ष क्र. 131 एवं 163 में बाघिन और उसके शावक का शव मिलने से वनविभाग में खलबली मच गई है. दोनों के शव अलग अलग स्थानों पर अलग समय पर मिले. इस घटना को लेकर वनविभाग की कार्यप्रणाली को लेकर भी सवाल उठ रहे है.
वनविभाग की ओर से गश्त करते समय वनकर्मियों को बाघ के शावक का शव शुक्रवार की शाम 5 बजे के दौरान मिला. शावक का शव चंद्रपुर में शवविच्छेदन के लिए भेजा गया. आज शनिवार को फिर से कक्ष क्रमांक 161 में अंदाजन 8 वर्ष की बाघिन का शव सुबह 8 बजे मिलने से वनविभाग हरकत में आ गया. पहले बाघिन के शावक का शव और फिर दूसरे दिन बाघिन का शव मिलने से वनविभाग में खलबली मच गई. वनाधिकारियों के अनुसार बाघिन की मौत 10 पूर्व होने का अनुमान है. रोजाना गश्त करनेवाले वनकर्मियों को अपने ही कक्ष में मौजूद बाघिन का शव 10 दिनों तक नजर क्यो नहीं आया. इस पर कर्मचारियों की कार्यप्रणाली पर शंका जतायी जा रही है.
गोंडपिपरी तहसील वनसंपदा से परिपूर्ण है. जंगल में वन्यजीवों की संख्या काफी है.इसी बीच जंगल में बडे पैमाने पर सागौन के पेड होने से सागवान चोर सागवान की चोरी करते है. इस दौरान धाबा वनपरिक्षेत्र में एक के बाद एक दो बाघ जाति के प्राणियों की मौत ने वनविभाग पर सवाल खडे कर दिए है.
मिली जानकारी अनुसार बाघिन का शव चालिस से पचास प्रतिशत सड गल चुका था. बाघिन की मौत दस से 15 दिन पूर्व होने का अनुमान वनधिकारियों ने व्यक्त किया है. शव काफी सडा गला होने से घटनास्थल पर ही पोस्टमार्टम कर उसका शव जला दिया गया. बाघिन की मौत को लेकर कई सवाल उठ रहे है. सर्पदंश या बिजली गिरने से भी मौत होने का अंदाज है. इस समय वनविभाग के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे.
धाबा डोंगरगांव क्षेत्र में कई बार बाघ, भालू, तेंदूए के दर्शन नागरिकों को होते है. इस क्षेत्र में सागवान का बडा भंडार है. सागवान चोरी की कई घटनाएं भी उजागर हुई है. ऐसी परिस्थिति में बाघिन का शव लगभग 10 दिन बाद मिलने से सवाल उठ रहे है. बाघिन के शव की पहले ही जानकारी मिल जाती तो उसके शावक की खोज कर उसे बचा लिया जाता है. शावक की मौत भूख की वजह से होने का बताया जा रहा है. इस पूरे मामले में गैरजिम्मेदार वनअधिकारियों पर कार्रवाई की मांग नागरिकों ने की है.