धान उत्पादन से ज्यादा खर्च!,  10,000 रुपये प्रति एकड़ का नुकसान

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    • धान की पैदावार में 5-6 क्विंटल की कमी

    शंकरपुर. लगातार संकट में घिरे अनाज उत्पादकों को उत्पादन से ज्यादा लागत का सामना करना पड़ रहा है. बीज, खाद, कीटनाशक, श्रम, पौधरोपण आदि की लागत खत्म होने के बाद अब कटाई और निर्माण ने गति पकड़ ली है. प्रति एकड़ उपज लागत से मेल नहीं खाती.  मजदूरी में कटाई की लागत 2000 रुपये प्रति एकड़, बांधने के लिए 2000 रुपये है. यंत्र से धान निकालने का खर्च 100 रूपए प्रति बोरी खर्च आ रहा है. 

    बीज, उर्वरक, कीटनाशक, श्रम, निराई, निराई आदि पर व्यय में लगातार 20 से 25 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है. हालांकि, आय व किंमतो में गिरावट आई है. पिछले वर्ष मार्च में आए सूखे, कोरोना वायरस के प्रकोप, धान पर फफूंदी और अन्य कीटों के प्रकोप ने किसानों को असमंजस में है. किसानों की स्थिति दिनों दिन खराब होती जा रही है. हाथ में पैसा नहीं है. अनाज की उपज केवल आधी है. 

    कीटक नियंत्रण के लिए छिड़काव की भारी लागत, कोरोना का कोई अन्य कार्य नहीं है.  बरसात के मौसम में उर्वरकों की कमी के कारण उर्वरकों की उच्च दरों पर खरीद करनी पड़ती थी. रोपाई के मजदूरों ने पिछले साल की तुलना में अधिक मजदूरी ली. जैसे ही धान की खेती के दौरान बारिश ने विराम लेने से कई लोगों ने इंजन किराए से लेकर रोपाई की. जिले के धान उत्पादकों में गर्भावस्था के दौरान कीड़ों का प्रकोप आने से कई संकटों में धान उत्पादन फसा है.  

    ऐसी बिकट स्थिति का सामना कर रहे किसान पूरी तरह से थक चुके हैं लेकिन राजनीतिक नेता इस ओर ध्यान देने को तैयार नहीं हैं. जबकि किसानों को 1000 न्यूनतम बोनस रुपये की उम्मीद है. परंतु वरिष्ठ स्तर पर कुछ हलचल दिखाई नही देने से किसानेां की चिंता बढ गयी है.  

    ऐसे समय में जब सरकारी कर्मचारियों को हर साल महंगाई भत्ता और वेतन दिया जा रहा है, सरकार के खजाने पर कोई बोझ नहीं है. सरकार ने किसानों पर हो रहे अन्याय को दूर कर किसानों की भावनाओं की ओर ध्यान देकर किसानों को न्यूनतम 1000 रुपये प्रति क्विंटल बोनस देने की मांग की जा रही है.