Queen Hirai

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    चंद्रपुर. इस वर्ष पहली बार शहर में नवरात्र के अवसर पर माता महाकाली महोत्सव के अवसर पर 1 से 4 अक्टूबर के बीच कार्यक्रम आयोजित किए है. आज माता महाकाली का मंदिर 400 वर्ष हो रहे है. इसके बावजूद महाकाली मंदिर के गोंडकालिन की शिल्प और चित्रकला का बेजोड संगम साफ दिखाई देता है. किंतु इस मंदिर के साथ वास्तुकला के स्वर्णयुग बनाने वाली रानी हिराई की समाधि आज जर्जर और वीरान पड़ी है. उसकी ओर किसी जनप्रतिनिधि, शासन, प्रशासन का ध्यान नहीं है. वहीं इस समाधि के सामने रानी हिराई द्वारा बनवाई गई राज वीरशाह की समाधि पर प्रतिवर्ष 14 फरवरी को एक स्वयंसेवी संस्था के कार्यक्रम होते है.

    इतिहासकार अशोक सिंह ठाकुर ने बताया कि रानी हिराई का कालखंड वास्तुकला के स्वर्णयुग के रुप में कहा जा सकता है. उन्होंने माता महाकाली मंदिर के साथ अनेक मंदिर और वास्तुओं का निर्माण किया है. महाकाली मंदिर के भीतर प्रवेश करने पर रंगीन चित्रकारी दिखाई देती है. 400 वर्ष के बाद भी उसकी रंगीन चित्रकारी आज तारोताजा है. चित्रकारी में महालक्ष्मी, महादेव, समुद्रमंथन, शेषसैया भगवान विष्णू का समावेश है. रानी हिराई देवी निर्मित माता महाकाली मंदिर की रंगीन चित्रकला को छोडकर गोंडकालीन चित्रकला कहीं नजर नहीं आती.

    शिल्पकला का उत्कृष्ट अंचलेश्वर, बाबुपेठ मंदिर

    अपने पूर्वज राजा खांडक्या बल्लाडशाह द्वारा निर्मित अंचलेचर महादेव के मंदिर को गिराकर रानी हिराई देवी ने एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया. इस मंदिर में पत्थरों की शिल्पकारी देखते ही बनती है. सफेद पत्थरों पर यह शिल्पकला रामायण और महाभारत की शिल्पकारी का जीता जागता नमूना पेश करता है. रानी हिराई ने अपने पति राजा वीरशाह का अधूरा बालाली वार्ड स्थित गणपति मंदिर को पूरा कराया. रानी ने बाबुपेठ स्थित महादेव मंदिर, शंखाकार कुआ और राम मंदिर का निर्माण कराया. वैरागड की टिपागढी नदी किनारे गोरजाई के मंदिर का निर्माण किया. चंद्रपुर में एकवीरा देवी का मंदिर उन्ही के हाथों किया गया. 

    देवगढ़ के राजा नेकनाम खान से युध्द

    देवगढ़ का राजा नेकनाम खान राजा बीरशाह का सौतेला भाई था. उसका वास्ताविक नाम कालसिंह था. मुस्लिम धर्म स्वीकार करने के बाद वह नेकनाम खान के नाम से मशहूर हुआ. उसके मुस्लिम धर्म स्वीकार करने से उसके पिता राजा किशनसिंह दुखित व बीमार रहने लगे जिसके कारण 1696 में उनकी मौत हो गई. पिता की मृत्यु के पहले ही वह देवगढ़ का राजा बन गया. उसने राजा वीरशाह की हत्या के बाद चंद्रपुर राज्य का आधा हिस्सा प्राप्त करने के लिए मुगल सम्राट औरंगजेब से गुहार लगायी. किंतु औरंगजेब ने कोई ध्यान नहीं दिया और 20 फरवरी 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसने चंद्रपुर पर आक्रमण कर दिया.

    रानी हिराई देवी को उसके आक्रमण की भनक लग जाने से सातारा के छत्रपति शाहू महाराज की मदद से नेकनाम खान से चंद्रपुर के पास रामबाग में युध्द किया. रानी हिराई युध्द का संचालन करती, सैनिकों का हौसला बढाती थी. अंतत: नेकनाम खान युध्द में परास्त हो गया. इस प्रकार महारानी चंद्रपुर के इतिहास में पहली और अंतिम महिला थी. जिसने युध्द का संचालन किया और विजय प्राप्त की. किंतु आज इस वीरांगना की समाधि जर्जर हो चुकी है.

    1704 से 1719 तक रानी हिराई का कालखंड

    रानी हिराई के पति राजा वीरशाह की हत्या के बाद उनकी पत्नी रानी हिराईदेवी ने राज्य का दायित्व संभाला. पुत्र न होने के कारण उसने अपने पति के चचेरे भाई गोविंदशाह के पुत्र को गोद लिया और उसे राज्य का उत्ताराधिकारी घोषित किया. उस समय बालक की आयु महज 3 वर्ष थी. रानी हिराई का दत्तक पुत्र आगे चलकर रामशाह के नाम से प्रसिध्द हुआ. पति की हत्या के बावजूद रानी हिराई तनिक भी विचलित नहीं हुई और बालक रामशाह के बालिग होने तक राज्य का संचालन कार्यभार कुशलता से संभाला.

    रानी हिराई देवी ने इस प्रकार 15 वर्षो तक राज्य किया पुत्र रामशाह के बालिग हो जाने पर उसे राज्य का भार सौंपकर स्वयं धार्मिक कार्यो में लग गई. उन्होंने अनेक धार्मिक वास्तुकला के साथ माता महाकाली मंदिर का निर्माण किया जहां महोत्सव आयोजित किया जा रहा है. किंतु इस मंदिर का निर्माण कराने वाली रानी की समाधि की ओर किसी का ध्यान नहीं है.