तलोधी बा. पिछले कुछ वर्षों और दिनों में बाघ, तेंदुआ और भालू के हमलों से होने वाली मौतों की संख्या में वृद्धि हुई है. और यदि सावधानी नहीं बरती गई तो मृतकों की संख्या बढ़ती जाएगी. इन हमलों की घटनाओं पर नजर डालें तो ज्यादातर हमले खेती के मौसम में नहीं, बल्कि गर्मियों के दौरान होते हैं जब जंगलों में पर लोगों का हस्तक्षेप बढ़ जाता है.
जब वन क्षेत्र के लोग अपनी आजीविका का स्त्रोत और धुपकाले के मौसम में जंगल में से उत्पन्न उदाहरण के लिए, ‘मोहफूलों का संग्रह’, तेंदु के पत्तों का संकलन, जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करने और घर लाने के लिए वन क्षेत्र के लोगों के लिए जंगल से अपनी उपज प्राप्त करने के लिए यह वर्ष का एक महत्वपूर्ण समय है. हालांकि, इस अवधि के दौरान, कृषि मौसम की तुलना में बाघों , तेंदुए,भालूओं के हमलों में अधिक मानव जीव हानि होती है. और इस बारे में सोचे बिना किसानों द्वारा बाघों का बंदोबस्त करने की मांग की जाती है.
बाघों के हमले का जिम्मेदार कौन ?
कई नागरिकों ने खेती के लिए वन भूमि पर कब्जा कर लिया है. खेत में जाने के रास्ते बंद कर दिए, नतीजा यह रहा कि कुछ किसानों को जंगल के रास्ते खेतों में जाना पड़ा. गांव के पशु चरागाह क्षेत्र को खेती के लिए अधिग्रहीत कर लिया गया. नतीजतन, मवेशियों को चराने के लिए जगह ही नहीं बची है. और मवेशी भी जंगल में चर रहे हैं. तेंदूपत्ता और मोहफूल के संग्रह के दौरान जंगल पर निर्भर लोगों द्वारा पूरा जंगल जला दिया जाता है. और वन क्षेत्रों में किसानों को हमलों का खामियाजा भुगतना पड़ता है.
कुछ प्रेमी युगल भी जीवन को खतरे में डालते हैं, जंगल में गहरे चले जाते हैं और आशिकी की धुनमें बाघों द्वारा मारे जाते हैं, मानव-वन्यजीव संघर्ष को बढ़ाते हैं.और अपर्याप्त मनुष्य बल होने की वजह से या कुछ अप्रभावी अधिकारियों के कारण, सिर्फ़ वन विभाग ही इसे पूरी तरह से नियंत्रित नहीं कर सकता है. तो क्या हम भी इसके जिम्मेदार नहीं हैं..? क्या वाकई बाघ या वन विभाग को ही जिम्मेदार मान लेना सही है?
अक्सर मान लिया जाता है या कहा जाता है कि है कि बाघों को जंगल में ‘लाया और छोड़ा’ जाता है, पर बिल्कुल नहीं. हर बाघ अपना स्वतंत्र क्षेत्र चाहता है. जैसे-जैसे बाघ के शावक बड़े होते हैं, वे अपना नया क्षेत्र स्थापित करने के लिए एक सुरक्षित और बड़े स्थान पर बस जाते हैं. बाघ बिल्लियों और कुत्तों की तरह घरेलू पालतू जानवर नहीं हैं.
इसलिए कोई बाघों को जंगल में छोड़ा जाता है यह कहना बिल्कुल गलत है की, हर बाघ ‘नरभक्षी’ होता है. बाघ को मानव मांस पसंद नहीं है. बाघ एक जंगली जानवर है, हम इंसानों जैसा विद्वान जानवर नहीं. हमारे जैसे योजना बनाकर या बदला लेने के लिए लोगों को नहीं मारते. जंगल में किसी इंसान को देखकर अपनी जान का खतरा समझकर या इंसान का किसी जानवर की तरह बर्ताव देखकर वह उन्हें शिकार के रूप में हमला करके मारता है.
जंगल अब पहले की एकदम ही सुरक्षित नहीं रहा है. सभी को इस बात को समझना चाहिए और प्रशासन का सहयोग करना चाहिए. चूंकि जिला जंगल से आच्छादित है, यदि सभी नागरिक बाघों से सुरक्षा संबंधी जानकारी को ध्यान में रखेंगे, तो वन्यजीव हमले और इंसानी मौतों की घटनाओं से बचा जा सकेगा.
हालाँकि, बाघों के हमलों से खुद को बचाना इंसानों की ज़िम्मेदारी है, इसलिए हम बाघ, भालू और तेंदुओं से अपनी रक्षा तभी कर सकते हैं जब हम यह सोचकर जंगल में प्रवेश करने की कोशिश करेंगे कि बाघ और अन्य जानवरों से खुद को कैसे बचाया जाए. हमे क्या होगा? किसी को भी ऐसी गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए. इस हमले को रोका जा सकता है यदि प्रत्येक नागरिक उचित सावधानी बरतें और वन विभाग का भी सहयोग करें.