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    • दो जून की जुग्गत हेतु उठा रहे जान का खतरा

    गड़चिरोली. राज्य के आखरी छोर पर बसा गड़चिरोली जिला वनाच्छादित जिले के रूप में जाना जाता है. जिले में प्रचूर मात्रा में वनसंपदा है, किंतू जिले में उद्योग, रोजगार का अभाव होने के कारण अविकसीतता की काली छाया जिले पर कायम है. जिसके कारण जिले के अधिकत्तर नागरिक गरीबी रेखा के निचे जिवनयापन कर रहे है. 

    जिले के ग्रामीण व दुर्गम क्षेत्रों के नागरिकों का जीवन वनों पर निर्भर है. जिस कारण वनों से मिलनेवाले गौणउपज के साथ ही सुखी लकड़ियां, इंधन, मवेशियों का चारा आदि के लिए ग्रामीण अंचल के नागरिकों को वनों पर निर्भर रहना पडता है. जिससे ग्रामीण वनों में जाते है. किंतू बिते कुछ माह से जिले में वनराज का विचरण बढ़ गया है. जिले के जंगलों में बाघ, तेंदुआ, भालु आदि हिंसक श्वापद नजर आने लगे है.

    जिससे ग्रामीण अंचल के नागरिकों में भय का वातावरण निर्माण हुआ है. हिंसक श्वापदों के हमलें में अनेक नागरिकों ने अपनी जान भी गंवाई है. इन घटनाओं के चलते वनविभाग ने ग्रामीणों को जंगल में जाने से मनाई की है, वहीं सतर्कता बरतने की अपील की है. किंतू पेट की आग बुझाने के लिए जंगल में जाना नागरिकों की मजबूरी बन गई है. दो जून की जुग्गत करने ग्रामीण अपनी जान जोखिम में डालते हुए जंगल जाने लगे है.

    ग्रामीण क्षेत्र में अधिकत्तर नागरिक चुल्हे पर भोजन पकाते है. किंतू बिते वर्षो से केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी उज्वला गैस योजना ने क्रांति लायी थी. जिसके चलते ग्रामीणों के घर पर गैस सिलेंडर पहुंचा था. मात्र बिते कुछ दिनों से गैस सिलेंडर के दामों में हो रही भारी वृद्धी के कारण ग्रामीणों के लिए गैस सिलेंडर खरीदना मुश्किल हो रहा है. जिस कारण मजबुरीवश ग्रामीणों के कदम जंगलों की ओर बढ़ रहे है. जंगल में जाना जान पर बन आ सकता है, यह बात ज्ञात होने के बावजूद ग्रामीण जंगलों में जाकर लड़कियां चुनने पर मजबूर है. वहीं उज्ज्वला गैस योजना अब सफेद हाथी साबित हो रही है.

    महुआ फुल संकलन का सीजन शुरू

    धूपकाले के दिनों में ग्रामीणों को जंगल से व्यापक मात्रा में गौण खनिज मिलता है. ग्रामीण खासकर दुर्गम क्षेत्र के लोग बरसात के मौसम के बाद वनों से प्राप्त रोजगार पर निर्भर रहते है. इन दिनों महुआ फुल संकलन का सीजन शुरू हुआ है. जिससे ग्रामीण जंगलों में महुआ फुल संकलित करने जा रहे है. बतां दे कि, महुआ फुल संकलित करने हेतु तड़के के दौरान ही जाना पडता है. ऐसे में हिंसक श्वापदों का व्यापक खतरा रहता है. इसके बावजूद इस खतरे को उठाकर कुछ आय होने की आंस में ग्रामीण जंगल में महुआ फुल संकलन हेतु जा रहे है.

    3 माह का सीजन जान पर भारी 

    अप्रैल माह के आरंभ के साथ ही जिले में गौणउपज से ग्रामीणों को रोजगार मिलना प्रारंभ होता है. जिसमें महुआ फुल, टेमरू, खिरणी, चार, टोर आदि वनोपज मिलते है. इसी के साथ ही जिले में तेंदूपत्ता का सीजन भी धूपकाले में प्रारंभ होता है. करीब एक पखवाडे तक चलनेवाले तेंदूपत्ता सीजन से ग्रामीणों को अच्छी आय प्राप्त होती है.

    किंतू जिले में हिंसक श्वापदों का विचरण बढने के कारण यह 3 माह का सीजन ग्रामीणों के जान पर भारी है. इसके बावजूद रोजगार का अभाव होने से नागरिकों को मजबुरीवश जंगलों में जाकर वनोपज व तेंदूपत्ता आदि संकलन करना पडेगा. पुरूष, महिलाओं के साथ ही अनेक जगह बच्चे भी वनोपज व तेंदूपत्ता संकलन हेतु जंगलों में जाते है.