(प्रतीकात्मक तस्वीर)
(प्रतीकात्मक तस्वीर)

    Loading

    गोंदिया. खिलने के पूर्व कोमल कलियों को मृत्यु अपनी ओर खींच ले जा रहा है. बाल मृत्यु, अभ्रक मृत्यु दर बड़े पैमाने पर हो रही है. सर्वसाधारण वजन से कम वजन वाले बालकों का जन्म होता है. गर्भावस्था के असंतुलित आहार से कम वजन वाले शिशुओं का जन्म होता है. जिससे बाल व अभ्रक मृत्यु दर में वृद्धि हो रही है.

    महिला गर्भवती रहने पर उसे संतुलित आहार नहीं मिलने से बाल कुपोषित जन्म में आए है. परिणाम स्वरूप उन बालकों को बचाए कैसे यह प्रश्न डाक्टरों के समक्ष खड़ा रहता है. संपूर्ण यंत्रणा काम पर जुटी है फिर भी उसमें कुछ बालक अत्यंत कम वजन के होते है. शरीर संपूर्ण नहीं बढने से उन बालकों की अंत में मृत्यु होती है.

    माता के असंतुलित आहार से बालकों की माता के पेट में ही वृद्धि नहीं होती. जिससे जिले में बाल मृत्यु का आंकड़ा बढ़ रहा है. जिला आदिवासी व नक्सलग्रस्त होने से जिले के अधिकांश लोग स्वास्थ्य की ओर दुर्लक्ष करते है. महिला गर्भवती होने पर उसके आहार की ओर दुर्लक्ष करते है. पोषक आहार नहीं लेने से गर्भ में ही बालक कुपोषित होते है. इसमें अनेक बालकों की पेट में ही मृत्यु हो जाती है. प्रसूति के बाद हुए बाल मृत्यु की अपेक्षा गर्भ में ही मृत्यु होने वाले अभ्रक की (आयुडी)संख्या अधिक है.

    पोषक आहार व समय पर जांच करें

    जिले की गर्भवती महिलाएं संपूर्ण गर्भावस्था काले भट्टे व चांवल पर निकालती है. गर्भवती की हर माह स्वास्थ्य जांच होना आवश्यक है. उन्हें आयरन व कॅल्शीयम गोली लेना आवश्यक होता है. गर्भावस्था में पोषक आहार, सुबह नास्ता, दोपहर को भोजन, शाम 4 बजे नास्ता, रात्री भोजन व फल देना आवश्यक होता है. गर्भावस्था में इन्फेक्शन, बुखार होने पर समय पर डाक्टर की सलाह लेना आवश्यक है. लेकिन गर्भावस्था में स्वास्थ्य की ओर दुर्लक्ष किया जाता है.

    30 प्रश.महिलाओं को रक्त क्षय

    गर्भावस्था में चावल, सब्जी के अलावा कोई भी आहार अनेक महिलाओं को नहीं मिलने से जिले की 30 प्रश. महिलाओं को अॅमेनिया (रक्त क्षय) होता है. गर्भावस्था के दौरान उचित ध्यान घर की मंडली रखती है. जिससे बाल मृत्यु व माता मृत्यु होने का प्रमाण बढ़ रहा है. उल्लेखनीय है कि बीजीडब्ल्यु शासकीय महिला अस्पताल में आने वाले अधिकांश महिलाओं का हिमोग्लोबीन 6 होता है.