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    • वर्ष भर में 11 माताओं ने गवाई जान

    गोंदिया. अस्पताल के रिक्त पदों का बैकलॉग बढ़ते जा रहा है. इसके साथ ही कार्यरत वरिष्ठ स्वास्थ्य यंत्रणा भी केवल दिखावे के लिए अपनी पीठ थपथपाने से स्वास्थ्य का प्रश्न गंभीर हो गया है. जिले में माता और बालक मृत्यु का प्रमाण बढ़ रहा है. जिले में सितंबर के अंत तक 11 माताओं की मृत्यु हो गई है. इसी तरह 205 बालकों की भी मृत्यु हुई है.

    मृत्यु दर का प्रश. 9.65 है. जिससे माता बालक स्वास्थ्य संगोपन कार्यक्रम कागजों पर सीमट गया है. इतना ही नहीं शासन को भ्रम में डाला जा रहा है. गोंदिया यह पिछड़े जिले के रूप में पहचाना जाता है. सालेकसा, अर्जुनी मोरगांव, देवरी जैसे दुर्गम क्षेत्र में शासकीय सेवा केवल नाम के लिए रह गई है.

    जिले में शासकीय मेडिकल कालेज की स्थापना हो जाने के बाद जिले में स्वास्थ्य अधिकारी और जिला शल्य चिकित्सक के अधिनस्त ग्रामीण क्षेत्र के स्वास्थ्य संस्थाओं की स्थिति में सुधार होगा. ऐसा जिलावासियों का अनुमान था. लेकिन वर्तमान में परिस्थिति ठीक इसके विपरित है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, ग्रामीण अस्पतालों में डाक्टर व नर्सो के पद रिक्त है. जिले में स्वास्थ्य संस्था के कर्मचारियों के रिक्त पद का बैकलॉग बड़े पैमाने पर बढ़ रहा है.

    इसका असर ग्रामीण क्षेत्र के मरीजों पर पड़ रहा है. तहसील और ग्रामीण अस्पताल में उपचार के लिए जाने वालों को सीधे रेफर टू गोंदिया कर दिया जा रहा है. वहीं दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों को गोंदिया शहर के बीजीडब्ल्यु अस्पताल में प्रति नियुक्ति पर भेजे जाने का गंभीर मामला सामने आया है. नागरिकों के लिए कोरोना काल भारी भयानक था फिर भी अधिकारियों के लिए वह काल अत्यंत अच्छा था. इसमें केवल सामग्री खरीदी की ओर अधिकारियों की नजर थी. यहीं स्थिति अब भी बनी हुई है.

    इस सब के बाद भी ग्रामीण क्षेत्र की स्वास्थ्य संस्था में अच्छी स्वास्थ्य सेवा मिलती है या नहीं यह देखने के लिए किसी के पास समय नहीं है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान अंतर्गत मंगाए जाने वाले मनुष्य बल कागजों पर दिखाकर अपनी पीठ थपथापने का कार्यक्रम जिले में शुरू है. माता और बालक मृत्यु रोकने के उद्देश्य से विभिन्न उपक्रम क्रियान्वित किए जाते है लेकिन उस उपक्रमों पर जिले में क्रियान्वयन होते दिखाई नहीं दे रहा है.

    माता बालक संगोपन पर कोरोना भारी

    माता और बालक सुदृढ़ रहे इसके लिए विभिन्न उपक्रम क्रियान्वित किए जा रहे है. इसी तरह विभिन्न योजना शुरू की गई है. लेकिन मानव विकास निर्देशांक कम वाले क्षेत्र की माता बालक संगोपन स्वास्थ्य सेवा फेल हो गई है. उस क्षेत्र में कुपोषण का प्रमाण बढ़ गया है यह चिंता का विषय है.

    इतना सब कुछ होने के बाद भी कोरोना का कारण दिखाकर प्रशासन समय टालू नीति अपना रहा है. प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, ग्रामीण अस्पताल में गर्भवती महिला की प्रसूति हो ऐसी शासन की नीति है. लेकिन ग्रामीण क्षेत्र की महिला प्रसूति के लिए ग्रामीण क्षेत्र के अस्पताल में जाती है तो उसे विभिन्न कारण बताकर सीधे गोंदिया बीजीडब्ल्यु अस्पताल में भेज दिया जाता है.

    इस प्रक्रिया से बीजीडब्ल्यु अस्पताल पर बोझ पड़ता है. इस अस्पताल में कभी कभी बेड उपलब्ध नहीं रहते है. ऐसी स्थिति में महिलाओं को परेशानी होती है. यह गर्भवती महिला के लिए स्वास्थ्य विभाग की समय काटू नीति है. स्वास्थ्य विभाग नागरिकों के धैर्य का इम्तहान ले रहा है.