- GMC की अनदेखी
गोंदिया. बदलती जीवनशैली से महिलाओं में गर्भाशय से संबंधित बीमारियां बढने लगी हैं. गर्भाशय में निर्मित गांठ को निकालने के लिए महिलाएं बड़ी संख्या में दूरदराज से यहां बीजीडब्ल्यु शासकीय महिला अस्पताल में आती हैं लेकिन उन्हें किसी भी तरह का कारण बताकर अगली तारीख दे दी जाती है.
अस्पताल में कार्यरत महिला डाक्टरों के निजी अस्पताल भी है और उन अस्पतालों में शस्त्रक्रिया कराने की सलाह शासकीय अस्पताल के डाक्टर ऐसे मरीजों को देते है. परिणामस्वरुप बीजीडब्ल्यु अस्पताल में गर्भाशय की शस्त्रक्रिया बहुत कम प्रमाण में हो रही है. जिसका परिणाम सामान्य महिला व उनके परिवारों को भुगतना पड़ता है. शहर का बीजीडब्ल्यु शासकीय महिला अस्पताल जिले की महिलाओं के लिए एकमात्र अस्पताल है.
जहां जिले के अलावा भंडारा, चंद्रपुर, गड़चिरोली तथा नजदीकी राज्य मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ की महिलाएं भी उपचार के लिए आती हैं. पिछले कुछ माह से अस्पताल का संचालन शासकीय मेडिकल कॉलेज को दिया गया है. तब से मरीजों के हाल बेहाल हैं. प्रसूति के लिए भी महिलाओं को वेटिंग पर रखा जाता है.
यहां के कामकाज पर वरिष्ठ अधिकारियों की अनदेखी होने से उसका परिणाम मरीजों को भुगतना पड़ता है. पिछले कुछ वर्षों से महिलाओं में गर्भाशयों के रोग के प्रमाण बढ़ने लगे हैं. फायब्राईड गांठ व कर्करोग ग्रस्त गर्भाशय निकालना ही उसका एकमात्र उपाय है. पहले से ही जिले की अर्थ व्यवस्था पूर्ण रुप से खेती पर आधारित है.
ऐसे में अस्पताल की लचर सेवा से गरीब परिवार और भी परेशान हो गए है. गर्भाशय की शल्यक्रिया के लिए भी ऐसी पीड़ित महिलाओं को तारीख पे तारीख दी जाती है. वैद्यकीय अधिकारियों द्वारा इन मरीजों को इसी अस्पताल के डाक्टरों के निजी अस्पताल में ऑपरेशन कराने की सलाह देते हैं और इसके लिए बड़ी रकम वसूली जाती है. कुछ एजेंट भी इसके लिए अस्पताल परिसर में सक्रिय देखे जाते हैं.
जिन महिलाओं को गर्भाशय के फायब्राईड गांठ की तकलीफ है ऐसे मरीजों की तत्काल शल्यक्रिया होना आवश्यक है. लेकिन अस्पताल में इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. जो महिलाएं निजी अस्पताल में शल्यक्रिया के लिए नहीं जाती उन्हें आगे की तारीख दी जाती है.
जीवनदायी स्वास्थ्य योजना विफल
राज्य शासन ने आर्थिक रुप से कमजोर परिवारों को अच्छी स्वास्थ्य सेवा देने के लिए महात्मा ज्योतिबा फुले जीवनदायनी स्वास्थ्य योजना प्रारंभ की है लेकिन इसमें डाक्टर को कम रुपए मिलने से इस योजना के अंतर्गत बहुत कम शल्यक्रिया की जाती है. अत: योजना अच्छी होने पर भी मरीज इसका लाभ नहीं ले पाते.