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    तिरोडा. धान पर विभिन्न बीमारियों का असर दिखाई दे रहे रहा है. उसे लेकर किसानों की चिंता बढ गई है.  20 दिनों से आसमान में बादल छाए हुए है. बदरिले मौसम के कारण धूप नहीं निकलने से धान फसल पर गाद व जिस हलकी जाति के धान की बालियां निकल गई है उस पर करपा बीमारी का फैलाव हो गया है. इन बीमारियों के कीडे, जिव जंतुओं के लिए वातावरण पोषक साबित हो रहा है, कीडे धान पर आक्रमण कर रहे है और धान पर बीमारियों का प्रसार तेजी से हो रहा है.  जिससे किसानों की मुश्किलें बढ गई है. 

    गाद बीमारी पर छिकडाव का असर नहीं

    यह बीमारी धान फसल पर आने से पूरी तरह बांझ बना रही है, धान रोपाई में नए फुटवे (टिलर) आने की जगह इसमें तुरा निकल रहा है, जिसमें से धान नहीं निकलेगा यहां तक तनस तक नहीं होगा. किसान खेत में जाकर खेत की मेड(धुरे) से घुमने पर धान पुर्णत: हरी दिखती है तब इसे संतोष होता है कि धान रही है तो अच्छी फसल होगी लेकिन जब खेत के अंदर उतर कर देखता है तब उसे यह नई निकल रही तुरे की बीमारी समझ में आती है. यह बीमारी पत्ते पर न होकर नई टिलर की जगह तुरा निकलने से अधिकांश किसान गफलत में रह जाते है. जब तुरा निकल गया तब दवाईयों का छिडकाव करके भी कोई फायदा नहीं होता.

    लगभग 80 प्रश किसानों द्वारा रोपाई की गई धान में यह बीमारी दिख रही है. अब किसान दवाईयों का छिडकाव भी कर रहे है लेकिन जो पुराने तुरे निकल गए उस पर रोकथाम के लिए किसी भी तरह का उपाय नहीं है. इस बीमारी से धान के पौधे में 15 फुटवे होंगे, उसमें 2-3 में ही धान की बाली निकलेगी. बाकी में तुरे निकल गए तब 80 से 90 प्रश. उत्पादन होना सुनिश्चित है.  

    नई बीमारी धान के बाली पर करपा 

    आज तक किसानों ने धान की बाली जो धान के गर्भ में से बाहर निकल कर बाली में पहले दुध जैसा द्रव्य रहता है, वहीं सूखकर चांवल में परिवर्तित होता है. इस बाली के दाने पर काले छिलके होने से वह दाने अपरिपक्व होकर पूर्णत: बाली के दाने पर काले रंग का बदरा हो गया. किसान राकेश लिल्हारे ने बताया कि करपा नामक बीमारी धान के पौधे में पत्तियों पर आती थी जिस पर दवाईयों का छिडकाव करने पर बीमारी खत्म हो जाती थी. कभी कभी धान की नर्सरी पर करपा व कडाकरपा नामक यह बीमारी आती थी लेकिन इससे नुकसान नहीं होता था.

    धान फसल को नत्र की कमी होने से भी यह रोग हो जाता था और नत्र मिलने पर बीमारी समाप्त हो जाती थी. लेकिन बाली पर यह रोग आने से बाली में दाने न भरकर सिर्फ बदरा ही रह रहा है. जिसमें उत्पादन ही नहीं होगा. अभी मोटे किस्म के हल्की जाति की धान की बाली निकल गई है व जिन किसानों ने  यह हल्की धान लगाई है उस पर बीमारी लगी होने से वे चिंता में डुबकर छिडकाव पर जोर देकर फसल को बचाने का प्रयास कर रहे है. 

    बीमारी लगने के पहले छिडकाव जरुरी 

    कोई बीमारी न हो इसके लिए पहल है जिसे प्रकार टीकाकरण किया जाता है उसी तरह धान फसल को भी बीमारी लगने के पहले ही दवाईयों का छिडकाव या प्रक्रिया कर प्रथमोपचार अत्यंत जरूरी है. लेकिन इस पर ध्यान देने की बजाए बीमारी लगने के बाद छिडकाव किया जाता है और तब तक अधिकांश फसल का नुकसान हो जाता है और किसान की हालत ‘चिडियां चुग गई खेत अब पछतावत होत क्या’ वाली कहावत चरितार्थ हो रही है.

    किसानों को इन दोनों बीमारियों से काफी नुकसान होकर उत्पादन में लगभग 80 प्रश. पर घट का प्रमाण आएगा. किसानों ने मांग की है कि पटवारियों द्वारा इस बीमारी से नुकसान का खेतों में जाकर सर्वे कर शासन को इसकी जानकारी देकर किसानों को राहत प्रदान की जाए.