Maharashtra-Police

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    • अधिकांश मामलों में वन अधिकारियों की उदासीनता आई सामने 

    गोंदिया. वन कानून अत्यंत ही कडे होने के कारण वन अपराधियों को सजा का जो प्रमाण है वह काफी कम है उसे लेकर अब पुलिस विभाग कार्यप्रणाली की तर्ज पर  वन अपराधियों की जांच की जाएगी और उसके लिए स्वतंत्र समिति गठित की जा रही है तथा यही समिति दोषारोपण पत्र न्यायालय में दाखिल करेंगी ऐसा प्रावधान किया जा रहा है.

    कडे हैं कानून पर सजा नहीं

    जानकारी के अनुसार भारतीय वन अधिनियम 1927, वनजीव अधिनियम 1972, वन संवर्धन अधिनियम 1980 और जैव विविधता अधिनियम 2002 ऐसे 4 प्रकार के वन संवर्धन, वन्यजीव संरक्षण के लिए नियम है. वन नियम अत्यंत कडे होने के  उदाहरण अनेक प्रकरणों में  सामने आए हैं. लेकिन राज्य में  बाघ, तेंदुआ, घोरपड, कालवीट, हिरण,  नीलगाय आदि वन्य जीवों के शिकार के प्रकरणों में अब तक कडी सजा होने के मामले कम ही हैं. 

    मुकर जाते है गवाह

    गवाहदार मुकर जाते है और उसके कारण सबुतों के अभाव में प्रकरण न्यायालय में टीक नहीं पाते. जिससे वन अपराधों के 10 प्रश आरोपी निर्दोष बरी हो जाते है ऐसा निष्कर्ष संशोधन समिति का सामने आया है.  समिति ने यह भी पाया कि  वन अपराधों की जांच समुचित तरीके से नहीं हो पाती है. उसके कारण अब वन अपराधों जांच बारीकी से हो तथा न्यायालय में मामले मजबुती से टीके रहें इसके लिए समुचित नियोजन किया जाएगा. 

     वन परिक्षेत्राधिकारी करेंगे जांच

    वन अपराधों की जांच का दायित्व संबंधित क्षेत्र के वन परिक्षेत्राधिकारी के पास होगा. इसमें जांच की गति, सबुत, अपराध की बारीकी से जांच, आरोपी से सामग्री की जब्ती आदि मुद्दों पर उन्हें उप वन संरक्षक, सहायक वन संरक्षक मार्गदर्शन करेंगे.

    सरकारी वकील की भी लेंगे सलाह

    किसी तरह के जटिल प्रकरण में सरकारी वकील की सलाह भी ली जाएगी. वन अपराध के दोषारोपण पत्र न्यायालय में दाखिल करने से पूर्व वे विस्तृत जानकारी से पूर्ण हों इसका पुलिस कार्यप्रणाली की तरह चरण निश्चित किए गए हैं. 

    जब्त सामग्रियां हो जाती हैं कबाड

    वन अपराधों में आरोपियों से जो अनेक सामग्रियां जब्त की जाती है. उनमें वाहन तो कबाड का रुप ले चुके होते हैं वर्षों तक मामलों के फैसले नहीं होते, एकाध मामले का फैसला हो भी जाए तब भी जब्त सामग्री व वाहनों का निपटारा करने वन अधिकारी पहल नहीं करते हैं. ऐसा सामान्यत: हो रहा है.  वन विभाग में जब्त माल की पहचान  व बिक्री करके राशि शासन की तिजोरी में जमा होना चाहिए लेकिन वन अधिकारी इसे लेकर भी पूरी तरह उदासीन बने रहते हैं.