Chikungunya

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    गोंदिया . जिलावासियों ने दूसरे चरण के कोरोना काल में स्वास्थ्य विभाग की सुपर लापरवाही का अनुभव किया है. इसके बाद राजनीतिक और प्रशासकीय दबाव बढने से कुछ प्रमाण में यंत्रणा लाईन पर आई. वहीं अब कोरोना का संक्रमण नियंत्रण में आने के बाद मलेरिया व डेंगू ने कोहराम मचाया है.

    इसमें भी भारी लापरवाही बरती जा रही है. शासकीय मेडिकल कालेज में 500 नमूनों का अहवाल प्रलंबित है. जिससे निजी प्रयोगशाला में 1500 से 1800 रु. देकर जांच करानी पड़ रही है. जिले में अप्रेल से जून इन तीन माह के दौरान कोरोना संक्रमण अपने पुरे शबाब पर था.

    जिसमें अनेक लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी. अनेक लोगों को उपचार  ही नहीं मिला. जिससे शासकीय लापरवाही से अनेक लोगों की जान गई. मृत्यु का तांडव जिलावासियों ने अनुभव किया है. इन तीन माह में जिलावासियों ने मृत्यु के सिलसिले का बड़ा अनुभव किया है. अब तक कोरोना से 576 लोगों की मृत्यु हो चुकी है. दूसरे चरण में कोरोना संक्रमण नियंत्रण में आ गया है. लेकिन अब भी भय कम नहीं हुआ है.

    पुन: हर दिन दो से तीन नए पीडित दर्ज हो रहे है. जिससे तीसरे चरण की जिले में शुरूआत होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. वर्तमान में कोरोना के बाद अब मलेरिया व डेंगू ने पैर पसारे हैं. जिले की सालेकसा व देवरी तहसील में मलेरिया व डेंगू का भारी प्रभाव दिखाई दे रहा है. तत्काल डेंगू से प्रभावित मरीजों को दर्ज किया जाए इसके लिए शासकीय मेडिकल कालेज में एलिएझा टेस्ट की सुविधा कर दी गई है.

    इसके लिए शासन ने एक लाख रु. का अनुदान भी उपलब्ध करा दिया है. इसके बावजूद नमूनों की जांच के लिए दुर्लक्ष व टालमटौल किया जा रहा है. वर्तमान में 500 से अधिक नमूने प्रलंबित हैं. जिससे पीडित मरीज के परिवार वाले निजी पॅथालॉजी में जाकर 1500 से 1800 रु. तक खर्च कर नमूनों की जांच करा रहे हैं. पहले ही कोरोना काल से आर्थिक संकट का सामना करने वालों को पुन: डेंगु और मलेरिया के प्रभाव ने आर्थिक नुकसान बढ़ा दिया है. इसमें शासकीय यंत्रणा से मरीजों को समुचित सहयोग नहीं मिल रहा है.

    स्पॉट टेस्ट पर बंदी होने से रॅपिड जांच

    मलेरिया व डेंगू सदृश्य बीमारी वाले मरीजों के रक्त के नमूने लिए जाते है. जिसकी जांच रॅपिड द्वारा न हो ऐसे स्पष्ट आदेश हैं. लेकिन जिले में शासन के इस निर्देश की अनदेखी कर रॅपिड के माध्यम से स्पॉट टेस्ट की जा रही है.

    निजी ब्लड बैंक की कमाई

    डेंगू होने के बाद पीडित मरीज के प्लेटलेट्स तेजी से कम होते है. जिससे मरीज की मृत्यु होने का भय रहता है. लेकिन अस्पताल के ब्लड बैंक से अर्थपूर्ण संबंध है. जिससे ब्लड बैंक में मरीज के रिश्तदारों को भेजा जाता है. इसके माध्यम से अस्पताल और निजी ब्लड बैंक के संचालक भरपुर कमाई कर रहे हैं. यह सिलसिला सरेआम व जोरशोर से शुरू है. इस ओर अन्न व औषध प्रशासन को ध्यान देने की जरूरत है.

    पूर्व में पुणे से हो रहा था निवारण

    डेंगू पीडित व्यक्ति के नमूने लेकर जांच के लिए पुणे स्थित नेशनल वायरालॉजी इंस्टिट‍्युट में भेजे जाते थे. जिससे निवारण करने में विलंब होता था. तत्काल निवारण हो इसके लिए गोंदिया के शासकीय मेडिकल कालेज की प्रयोगशाला में एलिएझा कीट उपलब्ध करा दी गई है. इसके बाद भी 500 से अधिक नमूनों का अहवाल प्रलंबित है.