Ravana
रावण की प्रतिकात्मक तस्वीर

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    गोंदिया.  शहर के विभिन्न स्थानों पर 15 अक्टूबर को रावण दहन किया जाएगा. जिसमें मामा चौक, सिंधी कालोनी, रामनगर, मरारटोली आदि का समावेश है. शारदीय नवरात्रि का आखिर में दशमी के दिन विजय दिवस मनाते हैं. यानि विजय दशमी.   रावण दहन , दशहरा और बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता हैं.

    श्रीराम ने रावण रुपी बुराई का अंत कर विजय  पताका फहराया था. आश्विन मास की दशमी तिथि  15 अक्टूबर को मनाई जाएगी. विजय दशमी के दिन से ही मांगलिक कर्मों की शुरूआत हो जाती है. इस दिन फसलों के साथ शस्त्रों की पूजा का भी विधान है. कन्या पूजन के बाद मां दुर्गा की इस दिन विदाई की जाती है और मां के सामने सत्य के मार्ग पर चलने का संकल्प लिया जाता है.

    परस्पर बाटेंगे शमी के पत्ते (सोना)

    दशहरे के दिन शहर के नागरिक एक दूसरे को शमी के पत्ते देकर दशहरे की बधाई देंगे. शहर के कुछ क्षेत्रों में शमी के पेड (सोना) देखे जाते है. गणेश नगर क्षेत्र में इस पेड को देखा जा सकता है. जानकारों के अनुसार शमी के वृक्ष से जुड़ी धार्मिक मान्यता और लाभ धर्मानुसार दशहरा के दिन शमी के पेड़ की पूजा भी की जाती है.

    कहते हैं कि इस दिन शमी के वृक्ष को पूजना बहुत ही शुभकारी है. क्योंकि दशहरा के द‌िन शमी के वृक्ष की पूजा करें या संभव हो तो इस द‌िन अपने घर में शमी के पेड़ लगाएं और न‌ियम‌ित दीप द‌िखाने से समृद्धि बढ़ती है. दशहरा के दिन शमी पूजा का महत्व बहुत अधिक है.

    दशहरा की शाम को शमी वृक्ष की पूजा करने से बुरे स्वप्नों का नाश, धन, शुभ करने वाले शमी के पूजा कर श्रीराम ने लंका पर विजय पाया था, पांडवों के अज्ञातवास में सहयोग मिला था. इससे शमी के पेड़ की धैर्यता ,तेजस्विता व दृढ़ता का भी पता चलता है. इसमें अग्नि तत्व की प्रचुरता होती है. इसी कारण यज्ञ में अग्नि प्रकट करने हेतु शमी की लकड़ी खास होती है. 

    और शमी के पत्तों को सोने का बना द‌िया 

    मान्यता है क‌ि दशहरा के द‌िन कुबेर ने राजा रघु को स्वर्ण मुद्राएं देने के ल‌िए शमी के पत्तों को सोने का बना द‌िया था. तभी से शमी को सोना देने वाला पेड़ माना जाता है. एक और धार्मिक मान्यता महाभारत से जुड़ी है. दुर्योधन ने पांडवों को बारह वर्ष के वनवास के साथ एक वर्ष का अज्ञातवास दिया था. तेरहवें वर्ष यदि उनका पता लग जाता तो उन्हें पुनः 12 वर्ष का वनवास भोगना पड़ता.

    इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपना धनुष एक शमी वृक्ष पर रखा था तथा स्वयं वृहन्नला वेश में राजा विराट के यहां नौकरी कर ली थी. जब गोरक्षा के लिए विराट के पुत्र धृष्टद्युम्न ने अर्जुन को अपने साथ लिया, तब अर्जुन ने शमी वृक्ष पर से अपने हथियार उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी.