नियमित फसल कर्ज भरने वाले किसानों को झटका, सत्ता के लिए हो रही मारामारी में बेचारे किसान बीच में पीस रहे

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    गोंदिया. राज्य की सत्ता पर आने वाली महाविकास आघाडी सरकार ने महात्मा फुले फसल कर्ज में माफी देने के साथ ही नियमित फसल कर्ज का भुगतान करने वाले किसानों को 50 हजार रु. सानुग्रह अनुदान देने की घोषणा की थी. राज्य के तत्कालीन उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने 1 जुलाई 2022 से योग्य किसानों के खाते में अनुदान जमा करने के निर्णय को नई सरकार ने रद्द कर दिया है.

    जिससे किसानों को बड़ा झटका लगा है. राज्य की तत्कालीन फडणवीस सरकार ने किसानों को डेढ़ लाख रु. तक फसल कर्ज माफी व नियमित फसल कर्ज का भुगतान करने वाले किसानों को 25 हजार रु. सानुग्रह अनुदान देने की घोषणा की थी लेकिन अनेक किसान कठिन शर्त लाद देने से तत्कालीन स्थिति में अपात्र ठहराए जाने से बड़े पैमाने पर किसान फसल कर्ज मुक्त होने से वंचित रह गए थे.

    इस   विषय को राज्य महाविकास आघाडी के तत्कालीन उपमुख्य मंत्री अजित पवार ने महात्मा ज्योतिबा फुले फसल कर्ज माफी योजना अंतर्गत डेढ़ लाख रु. से 2 लाख बढ़ाने सहित नियमित फसल कर्ज का भुगतान करने वाले किसानों का शासन के प्रति असंतोष देखकर 25 हजार से 50 हजार रु. सानुग्रह अनुदान देने की घोषणा की थी.

    इसी में 22 मार्च 2020 की मध्यरात्री से राज्य में कोरोना महामारी से लाकडाउन लगाया गया. जिससे राज्य सरकार के आय के स्त्रोत कम होने पर उक्त प्रोत्साहन अनुदान योजना वेट एंड वॉच पर रखी गई थी. इस बीच राज्य के मंत्रिमंडल ने  निर्णय लेकर राज्य के नियमित फसल कर्ज का भुगतान करने वाले किसानों को 1 जुलाई 2022 से सानुग्रह अनुदान सीधे बैंक खातों में जमा करने की घोषणा की थी. जिससे किसानों में आनंद का वातावरण फैल गया था. इसके बाद राज्य में भारी उथल पुथल मच गई. राज्य की सत्ता संभालते ही एकनाथ शिंदे सरकार ने नियमित फसल कर्ज का भुगतान करने वाले किसानों को 50 हजार रु. सानुग्रह अनुदान देने के निर्णय पर रोक लगा दी है. इस संबंध में संग्रह देशमुख ने ट्वीट कर जानकारी दी है. जिससे किसानों में गहरा रोष व्याप्त हो गया. 

    सत्ता की मारामारी में पीस रहा किसान

    महाविकास आघाडी सरकार पर संकट के बादल मंढराने से अंतिम कुछ दिनों में अनेक परिपत्रक जारी किए गए थे. इसमें किसानों को 50 हजार सानुग्रह अनुदान का भी समावेश था  लेकिन महाविकास आघाड़ी सरकार धराशाही होकर शिंदे सरकार स्थापित हो गई. इस सरकार ने महाविकास आघाड़ी सरकार के निर्णय को रद्द करने का सिलसिला शुरू कर दिया है.