90 Q. in the division Sowing settlement, Yavatmal topper, Akola lagging behind

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    गोंदिया. जिले में 10 दिनों बाद विलंब से मौसमी बारिश हुई है. 20 जून की शाम को शहर सहित जिले के अनेक क्षेत्र में बारिश ने जोरदार हाजरी लगाई है.  दो दिन हुई बारिश से किसानों की बुआई के लिए तैयारी शुरू हो गई. बुआई के लिए लगने वाली बीजाई के रूप में धान की प्रजाति सहित अन्य सामग्री खरीदी करने के लिए किसानों की कृषि सेवा केंद्रों पर  भीड़ दिखाई दे रही है. इस बार जल्द बारिश का आगमन होगा ऐसा अनुमान होने से किसानों में  उत्साह था  लेकिन बारिश ने शुरूआत में ही धोखा दे दिया. इसे लेकर किसानों में अलग अलग सोच है. इसके बावजुद अनेक किसान अपने पास उपलब्ध पानी से बुआई करते है.

    इस वर्ष भी अनेक किसानों ने इसी तंत्र का उपयोग किया है. जिससे सिंचाई की सुविधा वाले क्षेत्र में धान की नर्सरी खिलती दिखाई दे रही है. बुआई के लिए लगने वाली सुधारित धान बीजाई, खाद, दवाई आदि की व्यवस्था करने के लिए किसान कृषि केंद्रों पर डटे हैं. जिले में 2 लाख 45 हजार हेक्टर क्षेत्र में विभिन्न फसलों की बुआई की जाएगी. इसमें सबसे अधिक 1 लाख 92 हजार हेक्टर क्षेत्र में धान, तुअर 6500, तिल्ली 1100, सब्जी भाजी फसल 1400, गन्ना 1000 व अन्य फसल 2 हजार 500 हेक्टर क्षेत्र में बुआई होने की संभावना है.

    बीजाई महंगी होने से अधिकांश किसान अपने पास की बीजाई बुआई के लिए उपयोग करते है. इसके बाद भी जिला कृषि विभाग ने इस बार खरीफ मौसम के लिए महाबीज के माध्यम से 27 हजार क्विंटल, राष्ट्रीय बीज निगम से 503 क्विंटल व निजी कंपनियों से 19417 क्विंटल इस तरह कुल 42 हजार 920 क्विंटल धान बीजाई, 503 क्विंटल तुअर, 99 क्विंटल ढेचा आदि बीजाई का समावेश है. खरीफ मौसम में विभिन्न फसल के लिए 66650 मेट्रिक टन खाद की मांग जिला कृषि विभाग ने की है. जिले के अधिकांश क्षेत्र में अब तक समाधान कारक बारिश नहीं हुई है. जिससे अब भी जमीन पुर्णत: गिली नहीं है. इसमें 1 जून से अब तक बारिश की टूट 51 प्रश. है. बारिश के अभाव में धान बुआई करने के लिए अब भी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी. बारिश पर ही जिले के अधिकांश किसान निर्भर हैं.

    किसानों के खर्च का नहीं जुड़ रहा तालमेल

    पिछले वर्ष की तुलना में धान बीजाई की 10 व 25 किलो की एक बेग का दर इस बार 50 से 100 रु. बढ़ गया है. बढ़ती महंगाई, मजदुरों का अभाव, रोग राई का प्रश्न, समय पर बारिश नहीं होना जैसे सवाल किसानों को हमेशा चिंतित  करते हैं. बुआई की खेती से उत्पादन को मिलने वाले भाव की तुलना करने पर उक्त कारणों से पारंपरिक पद्धति से की जाने वाली खेती यह घाटे का सौदा साबित हो रही है. इसमें आय के कोई दुसरे साधन नहीं होने से परंपरा अनुसार धान की खेती करनी पड़ती है.

    वहीं अब पारंपरिक खेती की जगह धीरे धीरे यंत्रों ने ली है. आज लगभग सभी खेती के काम यांत्रिक औजार की मदद से किए जाते हैं. ईंधन की कीमतें भी आसमान छू रही है. डीजल पर चलने वाले ट्रैक्टर का किराया इस बार 200 रु. से बढ़ा है. गत वर्ष प्रति घंटे ट्रैक्टर का किराया 700 रु. था. इस वर्ष डीजल महंगा होने से अब ट्रैक्टर का यह दर 900 रु. प्रति घंटा हो गया है.