ग्रामीण क्षेत्रों में गॅस सिलेंडर के बढ़े दामों ने निकाला उज्ज्वला योजना का दम

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    देवरी.  देश महंगाई की मार से त्रस्त है. बढ़ती महंगाई से आम आदमी मुहाल है. बढ़ते पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस की मूल्यवृद्धि ने आम जनता की कमर तोड़कर रख दी है. गैस सिलेंडर के दामों में लगातार बढ़ोतरी होने से कई परिवारों का जीना मुश्किल हो गया है. प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की शुरुआत 1 मई 2016 को की गई थी जिसका उद्देश्य था देश के उन सभी परिवारों को सुरक्षित, स्वच्छ रसोई ईंधन आवंटित करना जो आज भी पुराने, असुरक्षित व प्रदूषित ईंधन का प्रयोग खाना बनाने के लिए करते हैं. इस योजना का लाभ केवल महिलाएं ही उठा सकती थी, लेकिन रसोई गैस के लगातार बढ़ते दामों के कारण ये सिलेडर या तो कबाड़ में पड़े है या फिर शोपीस बन गए है.

    ग्रामीणों के लिए घाटे का सौदा बनी योजना

    उज्जवला योजना की शुरुआत की तो इससे मिलने वाले लाभ को देखते हुए गरीबों के चेहरे पर मुस्कान थी, उन्हें भी लग रहा था कि अब आग और धुंए से उन्हें मुक्ति मिल जाएगी. वे भी गैस पर खाना बनाएं, स्वस्थ जीवन जीएंगे. शुरुआत में योजना का लाभ भी गरीबों को खूब मिला, उन्होंने भी स्कीम को हाथों हाथ लिया. तब गैस सिलेंडर को रिफिल कराने के दाम कम थे. लोग सिलेंडर का इस्तेमाल भी कर रहे थे और रिफलिंग भी करा रहे थे. अचानक से केंद्र की ये योजना उन्हें घाटे का सौदा लगने लगी. पिछले कुछ महीने से गैस के बढ़े हुए दामों ने ग्रामीण अंचलों में उज्जवला का दम निकाल दिया है. गैस के बढ़े हुए दाम के चलते ग्रामीण फिर से पुराने दौर में लौट रहे हैं.

    रसोई गॅस के दाम निकाल रहे दम 

    गैर सिलेंडर रिफिल कराने का दाम वर्तमान में लगभग 1,130 रुपये से उपर पहुंच चुका हैं. ग्रामीण इलाकों में डिलीवरी चार्ज अलग से देना होता है. तब जाकर सिलेंडर की रिफिलिंग होती है.  इन बढ़े हुए दामों ने ग्रामीणों की परेशानी बढ़ा दी है. पहले तो वे किसी तरह जुगाड़ करके सिलेंडर की रिफिलिंग करा लिया करते थे, लेकिन अब गैस के बढ़े हुए दामों ने उनके घर का सारा बजट बिगाड़ दिया है. पहले से ही सामान्य और ग्रामीण अंचल के लोगों की पहुंच से दूर होती जा रही केंद्र की उज्जवला योजना का पूरी तरह से दम निकल सकता है.

    सिलेंडर खाली, लकड़ियों का ही सहारा

    ग्रामीणों के अनुसार गॅस के दाम इतने जादा है की, गॅस की रिफिलिंग अब नही करा सकते. घर मे सिलेंडर खाली पडे है. उनकी मजबुरी है लकड़ी चुल्हा जलाकर खाना पकाना. योजना की शुरुआत के वक्त लोग काफी खुश थे. खुशी की बात थी लोगों को धुएं से मुक्ति मिल रही थी, लेकिन अब कुछ महीने से कोई भी सिलेंडर रिफिल नहीं करा रहा है. गैस के बढ़े हुए दामों ने लोगों का बजट बिगाड़ दिया है. अगर उज्जवला के माध्यम से गरीबों को गैस कनेक्शन दिया जाता है तो उसे रिफिल कराने के लिए भी सरकार को कुछ रियायत देने के बारे में सोचना चाहिए.

    नहीं है सिलेंडर भरवाने के लिए रुपए

    उज्ज्वला योजना के तहत ग्रामीण परिवारों को गैस सिलेंडर और चूल्हा तो मिल गया है. लेकिन सिलेंडर दोबारा भरवाने के लिए रुपए उनके पास नहीं हैं. लिहाजा वह फिर से लकड़ी की आंच पर खाना बनाने को मजबूर है और ऐसे में गैस सिलेंडर और गैस चूल्हे घर की शोभा बढ़ाने के काम आ रहे हैं. इस तरह केंद्र सरकार की यह उज्ज्वला योजना गरीब परिवारों की आर्थिक तंगी के चलते दम तोड़ती नजर आ रही है.

    उज्जवला योजना का दम निकालते गैस के बढ़े हुए दाम 

    ग्रामीणों को धुएं से मुक्ति दिलाने के बजाए इस योजना को ही धुंआ-धुआं कर रहे हैं. ऐसे में केंद्र सरकार को अपनी इस योजना की सफलता को लेकर दोबारा सोचना होगा कि जो लोग गैस कनेक्शन नहीं ले सकते थे वे इतने महंगे सिलेंडर की हर महीने रिफलिंग कैसे कराएंगे.