गोंदिया. मोबाइल गेम की आदत ने डिप्रेशन की बीमारी को बढ़ाने का काम किया है. 15 वर्ष के किशोर से लेकर 21 वर्ष के युवा इसके शिकार हो रहे हैं. शहर के अस्पताल में ऐसे मरीज मानसिक रोग विभाग में आ रहे हैं.
विशेषज्ञ चिकित्सकों की माने तो किशोर और युवा वर्ग को मोबाइल गेम की लत कुछ ऐसी लगी है कि वह गेम की आभासी दुनिया को सच मानने लगते हैं. समय के साथ यह लत और बढ़ने लगती है. जब तक माता-पिता को इस बात का आभास होता है तब तक किशोर और युवाओं को इसकी लत लग चुकी होती है. समय के साथ मरीज डिप्रेशन में चला जाता है.
व्यवहार में परिवर्तन
गेमिंग डिसआर्डर के शिकार लोगो के व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है. अन्य जरूरी कामों को छोड़ कर मरीज केवल गेमिंग खेलने के लिए परेशान रहता है. अधिक समय तक मोबाइल गेम खेलने से दिमाग में परिवर्तन आ जाता है. जब मोबाइल गेम की लत से किशोर और युवाओं को दूर किया जाता है तो उनके चिड़चिड़ापन आने के साथ ही उनकी प्रवृत्ति हिंसक भी हो जाती है.
कैसे बचे
किशोर और युवा गेमिंग डिसआर्डर के शिकार न हो इसके लिए माता-पिता को जागरूक रहने की जरूरत है. किशोरों को जरूरत पड़ने पर ही फोन दे. इसके अलावा आउटडोर गेम के लिए उत्साहित करना भी जरूरी है.
मोबाइल गेम की लत लगने का कारण
मोबाइल गेम के सॉफ्ट टारगेट किशोर और युवा ही होते हैं. गेम को इसी उम्र के लोगों को टारगेट करके डिजाइन किया जाता है. जब युवा और किशोर गेम खेलते हैं तो उन्हें अंक दिए जाते हैं. जिससे उन्हें प्रोत्साहन मिलता है. जिससे इनमें यह गेम खेलने की रूचि बढ़ती ही जाती है. इस आभासी दुनिया को युवा वर्ग सच मानने लगता है. इस प्रकार मोबाइल गेम की लत लग जाती है. कुछ ही समय में युवा गेमिंग डिसआर्डर के मरीज बन जाते हैं.