आपदा प्रबंधन में मिशन मूनलाइट, राज्य आपदा प्रबंधन दल नागपुर व जिला खोज व बचाव दल का अनूठा व कठिन बचाव अभियान

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    गोंदिया. गोरठा निवासी 11 वर्षीय चांदनी पाथोड़े 15 अक्टूबर को सुबह करीब 10 बजे भैंस चराने के दौरान पुजारीटोला की मुख्य नहर में बह गई थी.

    प्रथम चरण में भरपुर प्रयास

    तहसीलदार दयाराम भोयर ने उसे खोजने के लिए तहसील स्तर के दल और स्थानीय ढीमर समुदाय की मदद से सक्रिय अभियान चलाया. लेकिन शाम तक कोई सफलता नहीं मिली. वहीं  दशहरे के अवसर पर मां दुर्गा की प्रतिमा विसर्जित करने के लिए रजेगांव के कोरनी घाट पर दुर्गा विसर्जन के समय अप्रिय घटना न हो इसके लिए जिला खोज व बचाव दल तैनात किया गया था. 

    2 किमी तक नहीं मिला शव 

    आमगांव तहसील में घटना के दूसरे दिन  16 अक्टूबर   को जिला स्तरीय टीम को तलाशी अभियान के लिए भेजा गया था. घटना स्थल  से 2 किमी तक लापता चांदनी की तलाश की गई, लेकिन असफलता ही हाथ लगी.

    साइफन बना रुकावट 

    नहर के माध्यम से एक और खोज में अचानक एक “साइफन” मिला. उसके बारे में प्राप्त जानकारी के अनुसार वह जानवर नहीं है, यह एक टनल है. साइफन एक अंग्रेजी कालीन व्यवस्था है. साइफन एक नहर के नीचे एक वी-आकार   (\ __ / आकार) में  नहर के बीच में या नदियों या नालों के सामने जल निकासी के लिए बिना किसी बाधा के निर्मित जलमार्ग है. जिसे सायफन कहा जाता है.  

    इस बीच, क्षेत्र का पता लगाने के बाद, शुरू में अनुमान लगाया गया था कि चांदनी का शव उसी स्थान पर फंसा  होगा. 

    पुजारीटोला से विसर्ग का पानी किया बंद 

    नहर बह रही थी इसलिए पुजारीटोला से विसर्ग का पानी बंद किया गया. करीब 24 घंटे की मशक्कत के बाद पानी कम हुआ और तलाशी कार्य में तेजी आई लेकिन तब तक शाम हो चुकी थी और अगले दिन की तलाश ठप हो गई थी.

    तीसरे दिन भी हाथ खाली

    तीसरे दिन 17 अक्टूबर   को जिला स्तरीय खोज व बचाव दल ने सुबह से ही अपना तलाशी अभियान शुरू कर दिया.  तब साइफन के बगल में एक खोज की गई  लेकिन लापता चांदनी नहीं मिली. खोजी दल के सदस्य वापस लौट आए और घटनास्थल पर फिर से गए. लेकिन कोई प्रगति नहीं हुई. अंत में एक बार  फिर से साइफन की ओर कुच किया गया और  तीसरा दिन भी समाप्त हो गया. चांदनी तीन दिन से लापता थी. 

     जिलाधीश की थी सतत निगरानी 

    वहीं दूसरी ओर इस घटना से ग्रामीणों में रोष बढता जा रहा था. आखिर उसका दबाव प्रशासन पर पड़ने लगा. जिलाधीश नयना गुंडे  घटना पर सतत ध्यान केंद्रीत किए हुई थी.  राज्य आपदा प्रतिसाद दल को बुलाने की तैयारी में लग गई.  क्योंकि साइफन नहर का भूमिगत मार्ग था  और वह मार्ग पूरी तरह से पानी से अवरुद्ध था. भूमिगत साइफन में ऑक्सीजन की कमी के साथ-साथ लोहे के एंगल भी थे. इसलिए रेस्क्यु टीम के लोगों को गंभीर   खतरे का अहसास हो रहा था. 

    मंत्रालय ने दी राज्य आपदा प्रबंधन दल की मंजूरी   

    जिलाधीश ने राज्य आपदा प्रबंधन दल नागपुर को बुलाने की अनुमति दी और मंत्रालय ने तुरंत कार्रवाई की. घटना के चौथे दिन 18 अक्टूबर  को एसडीआरएफ की टीम आमगांव तहसील के जवरी/गोरठा पहुंची.

    टीम को था जबरदस्त विश्वास

    इस टीम को जबरदस्त  विश्वास था कि वे  लापता चांदनी को जरूर ढूंढ लेंगे. 

    किसी भी फैसले की खुली छूट

    वे मौके पर पहुंचे, एसडीआरएफ के वरिष्ठ अधिकारियों से चर्चा की लेकिन साइफन की भौगोलिक स्थिति को देखकर एसडीआरएफ के बचावकर्मियों को उनके वरिष्ठों ने बताया कि जान को खतरा है, यह सच है क्योंकि हमने तीन दिनों के दौरान खोज कार्य का ऐसा ही अनुभव किया. 

    खतरे से खाली नहीं था तलाशी अभियान 

      भूमिगत नहर में तलाशी अभियान एक जान गंवाने जैसा है. ग्रामीणों और राजनेताओं का दबाव, हालात पर नजर रखते हुए जिलाधीश  ने पुलिस अधीक्षक विश्व पानसरे, अपर जिलाधीश राजेश खवले, निवासी उपजिलाधीश जयराम देशपांडे के साथ अहम बैठक की. 

    अंतत: नहर खाली करने का फैसला

    अंतत: नहर खाली करने का फैसला लिया. मिशन थोड़ा कठिन लग रहा था, लेकिन वरिष्ठों ने इसके लिए खुली छुट दे दी थी व घटनास्थल पर क्या निर्णय लेना है इसकी छुट मिलने से  टीम आत्मविश्वास बढ़ा. नहर के दोनों ओर पानी को मोड़ने के लिए मिट्टी के बांध बनाए गए. इसके बाद साइफन के दोनों किनारों पर 10 से 15 मोटर पंप लगाए गए और नहर के पानी को पंप कर भूमिगत नहर को खाली कर दिया गया.

    इसमें करीब पांच से छह घंटे का समय लगा. साइफन कुछ हद तक खाली होने के बाद, एसडीआरएफ नागपुर और जिला खोज व बचाव दल के सदस्यों ने रेस्क्यु कर  चांदनी का शव खोज लिया. लेकिन बचाव अभियान “साइफन” सबसे कठिन और खतरनाक था. 

    सभी यंत्रणाओं का था बेहतर समन्वय

    पुलिस निरीक्षक बादल विश्वास, राज्य आपदा प्रबंधन दल नागपुर ने अपने अनुभव में बताया. इस घटना से ग्रामीण आक्रोशित हो गए थे लेकिन उन्होंने उस समय प्रशासन की  मदद भी की.  चाहे वह नहर में मिट्टी का बांध हो या पानी खाली करने के लिए मोटर पंप यह सब उनकी मदद से ही संभव हुआ. दूसरी ओर, पुलिस और राजस्व प्रशासन ने ग्रामीणों को रास्ता रोको आंदोलन करने से धैर्य रखने व शांत रहने को मना लिया. पुलिस अधीक्षक के मार्गदर्शन में अनुमंडल पुलिस अधिकारियों और थानेदार ने कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुरी मेहनत की. सिंचाई विभाग के कार्यकारी अभियंता व उनकी टीम ने नहर का पानी रोक कर साइफन खाली करने में सहयोग किया.  बचाव कार्य में विद्युत विभाग ने भी अहम भूमिका निभाई. राजस्व प्रशासन से लेकर जिला स्तर के वरिष्ठ अधिकारी व तहसीलदार  ने विशेष जिम्मेदारी  निभाई.

    यद्यपि यह कार्य जिलाधीश नयना गुंडे और पुलिस अधीक्षक विश्व पानसरे के मार्गदर्शन में किया गया है.

    जिला स्तरीय दल,

    तहसीलदार  दयाराम भोयर, सहायक पुलिस निरीक्षक नाले, खोज व बचाव दल के सदस्य नरेश उके, राजकुमार खोटेले, राजकुमार बोपचे, जसवंत रहांगदाले, रवि भंडारकर, संदीप कराडे, दीनू दीप, राज अंबादे, सुरेश पटले, चालक  मंगेश डोये, इंद्रकुमार बिसेन, चुन्नीलाल मुटकुरे, जबराम चीफ चिखालोंडे, गिरधारी पतैह, चिंतामन गिरहेपुंजे ने शोध कार्य किया.

     साइफन को लेकर अधिक जानकारी 

    साइफन को लेकर जो और जानकारी मिली है उसके अनुसार  साइफन अंग्रेज़ी के “Siphon” शब्द का हिंदी में यथावत किया जाने वाला प्रयोग है. नहर प्रणाली में कहीं पर अगर नहर तल तो ऊंचा हो और सड़क तल या कोई प्राकृतिक नदी नाला नीचा हो तो वहां पर साइफ़न बनाया जाता है. इसमें दोनों तरफ एक एक कोठी (well) सड़क या नदी नाले के तल से नीचे तक बनाई जाती है और नहर का पानी प्रवाहित करने के लिये दोनों कोठियों को आपस में जोड़ा जाता है.

    सारा निर्माण जल रोधी रखा जाता है ताकि रिसाव न हो. नीचे वाली कोठी का निकास तल ऊपर वाली कोठी के निकास तल से इतना नीचा रखा जाता है जिससे इस पूरी प्रणाली की घर्षण हानि (friction losses) की भरपाई हो सके और जल प्रवाह निर्बाध रूप से होता रहे.