रिक्त पदों से विकास कार्यो में निर्मित हो रही बाधा

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    गोंदिया. शासकीय यंत्रणा अंतर्गत विकासात्मक काम कराने के लिए अधिकारी व कर्मचारियों की जरूरत होती है. लेकिन राज्य शासन में लगभग 40 प्रश. पद रिक्त होने की बात सामने आई है. विशेष बात यह है कि इसमें 20 प्रश. पद स्थायी रूप से रद्द किए गए है.

    इसी में शासकीय अनुदान प्राप्त संख्या और शासकीय महामंडल के पास कुल 15 लाख 91 हजार 394 अधिकारी व कर्मचारियों के पद है. इसमें से 40 प्रश. पद रिक्त है. हर वर्ष 9 प्रश. अधिकारी व कर्मचारी सेवानिवृत्त होते है. इसके बाद इसमें अत्यंत जरूरी दो प्रश. पद ही भरे जाते है. शासकीय कार्यालय और महामंडल के कार्यालय कम्प्यूटरीकृत हो गए है. जिससे मनुष्य बल कम हो गए है. अनेक पद भरे नहीं जा रहे है. 

    वेतन के खर्च पर भारी वृद्धि

    राज्य के शासकीय अधिकारी और कर्मचारी वेतन पर 6 वर्ष पूर्व 84 हजार 927 करोड़ रु. खर्च हो रहा था. वहीं अब इसमें 40 प्रश. कर्मचारी के पद रिक्त है. लेकिन वेतन आयोग लागू करने से वेतन पर खर्च 1 लाख करोड़ पर पहुंच गया है.

    राज्य की आस्थापना, निवृत्ती वेतन और वेतन पर खर्च से राजस्व का 40 प्रश. खर्च हो रहा है. राज्य पर कर्ज का बोझ 5 लाख करोड़ तक पहुंच गया है. इसी में कोरोना के संकट ने राज्य का आर्थिक बजट बिगाड़ दिया है. जिससे रिक्त पदों में से केवल 2 प्रश. पद ही भरे जा रहे है.

    वेतन खर्च कटौती की सिफारिश 1992 में तत्कालीन वित्त मंत्री जयंत पाटील ने राज्य की आर्थिक स्थिति पर श्वेतपत्र जारी कर की थी. इसमें आर्थिक स्थिति लाइन पर लाने के लिए सरकारी अधिकारी व कर्मचारी के वेतन में कम करने की सिफारिश की थी. जिससे आर्थिक संकट का सामना वाले महामंडल ने बंद करने की नीति स्वीकार की थी. तब से सरकारी अधिकारी और कर्मचारी सेवानिवृत्त होने के बाद होने वाले रिक्त पद भरने का प्रमाण कम हो गया है.

    इसी तरह अतिरिक्त पद स्थायी रूप से रद्द किए गए है. हर 12 वर्ष बाद सरकारी अधिकारी और कर्मचारी के वेतन पर होने वाला खर्च और पद इसकी समीक्षा की गई है. वेतन आयोग की सिफारिश अनुसार सरकारी अधिकारी व कर्मचारियों को लाभ देते समय काम करना होता है.