medical

    Loading

    रावेर : तहसील के कुसुंबा (खु) की एक आदिवासी गर्भवती महिला (Tribal Pregnant Woman) के प्रसव की जिम्मेदारी से भागने वाला और नवजात बच्चे और माता को एंबुलेंस (Ambulance) देने और उपचार करने में असमर्थ रावेर तहसील की चिकित्सा अधिकारी डॉ. विजया झोपे (Medical Officer Dr. Vijaya Jhope) को निलंबित किया जाए ऐसी मांग जिला उपाध्यक्ष बहुजन समाज पार्टी और ग्राम पंचायत सदस्य प्रदीप सपकाले ने प्रशासन को पत्र दे कर की है। 

    प्राप्त जानकारी के अनुसार 17 जनवरी को कुसुंबा खुर्द ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले आदिवासी गांव में एक आदिवासी गर्भवती महिला खुर्शीद जुम्मा तडवी को वेदना होने पर आशा वर्कर ने 102 एंबुलेंस को फोन किया लेकिन एंबुलेंस समय पर नहीं पहुंच सकी। महिला की परिस्थिती गंभीर थी। लेकिन एंबुलेंस वालों ने कोई समाधानी उत्तर नहीं दिया और उस महिला का घर में ही प्रसव करना पड़ा। गांव के एक निजी डॉक्टर की सलाह पर रिश्तेदार महिला और बच्चे को मोटरसाइकिल पर रावेर के निजी अस्पताल ले आए। लेकिन यहां भी डॉक्टर न होने पर नर्स ने मेडिकल कॉलेज ले जाने करी सलाह दी। 

    एंबुलेंस नहीं मिली

    महिला और बच्चे को रावेर से जलगांव ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिली जिससे बच्चे और महिला को 5 घंटे उपचार नहीं मिल सका। नवजात शिशु को ठंड में मोटरसाइकिल पर रावेर के ग्रामीण अस्पताल ले जाना पड़ा और मां के लहूलुहान होने पर भी उसे एंबुलेंस नहीं मिली। इसलिए सामाजिक कार्यकर्ता और ग्राम पंचायत सदस्य प्रदीप सपकाले ने रावेर तालुका चिकित्सा अधिकारी डॉ. विजया झोपे से फोन पर संपर्क किया गया, तो उन्होंने मामले को गंभीरता से न लेते हुए टालने वाला जवाब दिया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि मैं बाहर होने के कारण मदद नहीं कर सकती। मां को एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। साथ ही नवजात शिशु को भी ग्रामीण अस्पताल से सावदा के एपेक्स अस्पताल में भर्ती कराया गया और आज तक हजारों रुपये खर्च कर नवजात शिशु और मां का इसी निजी अस्पताल में इलाज चल रहा है। 

    आदिवासी गर्भवती महिलाओं को सुविधा और चिकित्सा से वंचित रखा जा रहा

    सरकार बाल मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर और प्रसव पर करोड़ों रुपये खर्च करती है, लेकिन यह गरीब आदिवासी लोगों के लिए किसी काम का नहीं है क्योंकि सरकार की योजनाओं और लाभार्थियों यानी प्रशासनिक व्यवस्था के बीच एक अंतर है, लेकिन बिना इस पर विचार किए स्थिति की गंभीरता को देखते हुए जानबूझकर गरीब आदिवासी गर्भवती महिलाओं को सुविधा और चिकित्सा से वंचित रखा जा रहा है। ऐसा देखने में आया है कि चिकित्सा अधिकारी आदिवासियों के साथ ही ऐसा कर रहे हैं।