प्रशासन की लापरवाही से खतरे में बांधों की सुरक्षा, जानिए क्या है मामला

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    जलगांव : शुक्रवार को जिले के पूर्वी हिस्से में भूकंप (Earthquake) के झटके महसूस किए गए थे। इस दौरान यह बात सामने आई कि बांध परियोजना क्षेत्र में भूकंप मापक या तीव्रता रिकॉर्डिंग सिस्टम (Intensity Recording System) पिछले 7 साल से बंद पड़ा है। इस प्रकार की लापरवाही (Negligence) से परियोजना (Project) की सुरक्षा के साथ-साथ पर्यावरण (Environment) को भी खतरा है क्योंकि सिस्मोग्राफ के लिए कोई वैकल्पिक प्रणाली नहीं है। दूसरी ओर जिले की तीन बड़ी परियोजनाओं में से गिरणा और वाघुर परियोजनाओं में सिस्मिक मेजरमेंट सिस्टम नहीं होने की बात सामने आई है। नतीजतन, परियोजना क्षेत्र में एक नई भूकंपीय माप प्रणाली को लागू करने की मांग की जा रही है। जिले में पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में हतनूर, गिरणा और वाघुर नामक तीन प्रमुख परियोजनाएं हैं। इन तीन परियोजनाओं में गिरणा परियोजना की भंडारण क्षमता 2150 करोड़ घन फीट यानी 22 टीएमसी, हतनूर परियोजना की क्षमता 13.8 टीएमसी यानी 388 दलघमी है, जबकि वाघुर परियोजना की क्षमता 8.5 टीएमसी है।  तीनों परियोजना जिले के लिए महत्वपूर्ण हैं और इन परियोजनाओं की सुरक्षा के लिए भूकंपीय मापन प्रणाली स्थापित नहीं की गई है। इनमें जिला मुख्यालय से महज 80 से 90 किमी दूर हतनूर परियोजना में भूकंप मापने की प्रणाली खराब स्थिति में है। 

    पिछले हफ्ते, शुक्रवार सुबह करीब 10:30 बजे नासिक की मेरी संस्था की ओर से बताया गया कि भुसावल और अन्य तहसीलों में 3.5 तीव्रता का भूकंप महसूस किया गया। खासकर भुसावल तालुका में सरकारी तंत्र की नींद उड़ी हुई है क्योंकि भूकंप के झटके हर जगह महसूस किए गए। हतनूर में रखी भूकंप नापने वाली मशीन में तकनीकी खराबी है और इसे कई दिनों तक मरम्मत के लिए नाशिक मेरी भेजा गया है। जिस भवन में सिस्टम लगाया गया था, उसका निर्माण भी ढहने से क्षतिग्रस्त हो गया है। इस जगह पर देखरेख के लिए कोई कर्मचारी भी नहीं है। 

    भूकंप मापक मशीन की जरुरत

    हतनूर बांध राज्य में सबसे अधिक जल भंडार वाले बांधों की सूची में 16वें स्थान पर है। वाटरशेड विशेषज्ञ के मार्गदर्शन के अनुसार बांध या वाटर इंपाउंडमेंट जैसे स्थानों पर पानी के अधिक दबाव के कारण क्षेत्र या बांध स्थल पर भूकंप आने की संभावना रहती है। इसलिए, परियोजना स्थल पर भूकंपीय मापन प्रणाली लगाई जाती है। हतनूर बांध क्षेत्र में बांध बनने के बाद भूकंप मापने की प्रणाली के लिए लाखों रुपए खर्च कर भवन का निर्माण किया गया है लेकिन इसमें भूकंप की तीव्रता और मापन प्रणाली समेत विभिन्न उपकरण चालू स्थिति में नहीं हैं। बनने के बाद जिले में भूकंप जैसी कोई घटना नहीं हुई है। भविष्य में ऐसी घटनाएं होने की स्थिति में भूकंप की तीव्रता को मापने के लिए एक आधुनिक प्रणाली की मांग की जा रही है। 

    परियोजनाओं की सुरक्षा पर ही प्रश्नचिन्ह

    हतनूर बांध में भूकंप की तीव्रता मापने वाली मशीन है, लेकिन छह साल बाद भी इस मशीन की मरम्मत नहीं की गई है। बांध क्षेत्र में भूकंप की तीव्रता को रिकॉर्ड करने के लिए कोई वैकल्पिक प्रणाली नहीं है और वाघुर बांध में ऐसी कोई प्रणाली लगाई ही नहीं की गई है। इसके अलावा, सबसे बड़ी और सबसे पुरानी गिरणा परियोजना सहित, वाघुर परियोजना में प्रणाली कार्यात्मक नहीं है इसलिए जिले में परियोजनाओं की सुरक्षा पर सवाल खड़े होते रहे हैं और सरकार और प्रशासनिक तंत्र को इस संबंध में जानकारी ही नहीं है। गिरणा परियोजना का निर्माण 1969 में पूरा हुआ था और परियोजना पर भूकंपीय मापन प्रणाली के लिए एक भवन का निर्माण किया गया है। भूकंप मापने की प्रणाली की मांग प्रशासन के पास लंबित है क्योंकि यह मशीन विदेशों से मंगाई जाती है।  संबंधित अधिकारियों ने कहा है कि टेंडर प्रक्रिया सहित अन्य तकनीकी मामले पूरे हो चुके हैं और शासन स्तर से फंड की उपलब्धता के आधार पर बाद में सिस्टम की आपूर्ति की जाएगी। 

    मशीन को मरम्मत के लिए मेरी, नासिक भेजा गया थी लेकिन उन्होंने बताया कि मशीन की मरम्मत करना असंभव है क्योंकि इसके पुर्जे उपलब्ध नहीं हैं।  नई मशीन की खरीद की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है और जल्द ही इसके लिए फंड उपलब्ध कराकर वैकल्पिक मशीन की व्यवस्था की जाएगी। – अमन मित्तल, जिला आपदा प्रबंधन समिति अध्यक्ष और जिला अधिकारी, जलगांव। 

    प्रशासनिक भवनों के स्ट्रक्चरल और फायर ऑडिट पर भी सवालिया निशान 

    जिले में अनगिनत प्रशासनिक भवनों का नव निर्माण और उद्घाटन किया गया है। जिला अधिकारी कार्यालय का निर्माण जो कि जिले का मुख्यालय है, ब्रिटिश काल के 1910 के दशक का है और भडगांव, चालीसगांव, जामनेर, भुसावल, जलगांव, चोपडा, एरंडोल और अन्य तहसील स्तर की तहसीलों, पुलिस स्टेशनों और अन्य प्रशासनिक भवनों का निर्माण इमारत 1950 से 60 के दशक या उससे पहले की हैं। इन इमारतों का समय समय पर सुधार और रंग रंगोटी की जाती है। लेकिन ऐसी इमारतों का स्ट्रक्चरल और फायर ऑडिट भी कामचलाऊ रूप में किया जा रहा है।