NCP chief Sharad Pawar
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    मुंबई: राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार (NCP Chief Sharad Pawar) ने कोरेगांव-भीमा जांच आयोग से कहा कि महाराष्ट्र के पुणे जिले में युद्ध स्मारक पर जनवरी 2018 को हुई हिंसा के संबंध में उनके पास किसी भी राजनीतिक एजेंडे के खिलाफ कोई आरोप नहीं है लेकिन उन्होंने भारतीय दंड संहिता के राजद्रोह के प्रावधान को रद्द करने या इसका ‘‘दुरुपयोग” बंद करने का आह्वान किया। 

    पवार ने 11 अप्रैल को जांच आयोग को अतिरिक्त हलफनामा भेजा था, जिसकी प्रति बृहस्पतिवार को उपलब्ध हुई है। उन्होंने आठ अक्टूबर 2018 को भी आयोग के समक्ष एक हलफनामा दाखिल किया था। आयोग ने पवार को अपना बयान दर्ज कराने के लिए पांच और छह मई को उसके समक्ष पेश होने का बुधवार को निर्देश दिया था। पवार ने अपने अतिरिक्त हलफनामे में दोहराया कि उन्हें एक जनवरी 2018 को पुणे में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक पर हुई घटना के लिए जिम्मेदार घटनाक्रम की निजी तौर पर कोई जानकारी या सूचना नहीं थी। 

    हलफनामे में कहा गया है, ‘‘मेरे पास किसी भी राजनीतिक एजेंडे या इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के पीछे के उद्देश्य के खिलाफ कोई आरोप नहीं है।” बहरहाल, पवार ने देश में बदलती सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक स्थितियों को देखते हुए कानूनी प्रणाली में बदलावों का आह्वान किया। उन्होंने कहा, ‘‘देश का कानून गतिशील है न कि स्थिर।” 

    राकांपा प्रमुख ने अपने हलफनामे में कहा कि राजद्रोह से जुड़ी भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए का दुरुपयोग संशोधनों के जरिए रोका जाना चाहिए या इस धारा को रद्द किया जाना चाहिए। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘राजद्रोह से संबंधित आईपीसी की धारा 124ए ब्रिटिश शासकों ने उनके खिलाफ विद्रोह को काबू में करने तथा स्वतंत्रता आंदोलनों को दबाने के लिए 1870 में लागू की थी। 

    बहरहाल, हाल-फिलहाल में इस धारा का उन लोगों के खिलाफ दुरुपयोग किया गया जो सरकार की आलोचना करते हैं, जिससे उनकी आजादी और शांतिपूर्ण तथा लोकतांत्रिक तरीके से उठाए गए असंतोष की आवाज को दबाया जा सके।” इस धारा को निरस्त करने की मांग करते हुए पवार ने कहा, ‘‘मेरे पास ऐसा कहने की वजह है क्योंकि आईपीसी के प्रावधान और गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून (यूएपीए) राष्ट्रीय अखंडता की रक्षा के लिए पर्याप्त हैं।” 

    उन्होंने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में संशोधनों की भी मांग की ताकि पुलिस और शासकीय दंडाधिकारियों को दंगा जैसी स्थिति रोकने तथा नियंत्रण करने और कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए सशक्त किया जाए। पवार ने अपने हलफनामे में कहा, ‘‘ऐसी स्थितियों में पुलिस और शासकीय दंडाधिकारियों को राज्य सरकार या केंद्र सरकार के किसी भी राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाने की आवश्यकता है।” राकांपा प्रमुख ने सार्वजनिक शांति तथा कानून एवं व्यवस्था की स्थिति बिगाड़ने के लिए गिरफ्तार लोगों के लिए सख्त सजा की मांग की। 

    उन्होंने ‘‘फर्जी दुष्प्रचार” वाले बढ़ते पोस्ट्स के कारण सोशल और डिजिटल मीडिया की निगरानी का भी आह्वान किया और सूचना प्रौद्योगिकी कानून में संशोधनों की मांग की, जो उनके अनुसार पुराना है क्योंकि यह दो दशक पहले तैयार किया गया था। कोरेगांव-भीमा जांच आयोग ने पहले 2020 में पवार को समन भेजा था लेकिन वह कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए लगाए लॉकडाउन के कारण उसके समक्ष पेश नहीं हो सके थे। 

    बाद में पवार को इस साल 23 और 24 फरवरी को आयोग के समक्ष पेश होने के लिए कहा गया लेकिन वरिष्ठ नेता ने यह कहते हुए नयी तारीख मांगी कि वह अपना बयान दर्ज कराने से पहले एक अतिरिक्त हलफनामा दाखिल करना चाहते हैं। हाल ही में हलफनामा दाखिल किया गया है। आयोग के वकील आशीष सतपुते ने बताया कि इसके बाद आयोग ने बुधवार को पवार को समन जारी किया। राकांपा प्रमुख को पांच और छह मई को जांच आयोग के समक्ष पेश होने के लिए कहा गया है। 

    फरवरी 2020 में सामाजिक समूह विवेक विचार मंच के सदस्य सागर शिंदे ने आयोग के समक्ष एक अर्जी दायर कर 2018 की जातीय हिंसा के बारे में मीडिया में पवार द्वारा दिए गए कुछ बयानों के मद्देनजर उन्हें तलब करने की मांग की थी। दो सदस्य जांच आयोग में कलकत्ता उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश जे एन पटेल और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य सचिव सुमित मलिक शामिल हैं। पुणे पुलिस के अनुसार, एक जनवरी 2018 को कोरेगांव-भीमा की 1818 की लड़ाई की 200वीं बरसी के दौरान पुणे जिले में युद्ध स्मारक के समीप जातीय समूहों के बीच हिंसा भड़क उठी थी। इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गयी थी और कई अन्य घायल हो गए थे। (एजेंसी)