मुश्किलों के मारे अफगान छात्र, पहले महामारी और फिर तालिबान के सत्ता परिवर्तन से अंधकारमय हुआ भविष्य

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    -आनंद मिश्र 

    मुंबई: कोरोना महामारी (Corona Pandemic) के आगमन के बाद से ही मुंबई (Mumbai) और देश में पढ़ रहे हजारों अफगान छात्रों (Afghan Students) की मुश्किलें शुरू हो गईं थी, जब दोनों देशों के बीच हवाई उड़ानें रद्द हो गई थी, परन्तु जब से अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) की सत्ता आई है, उसकी गाज यहां पढ़ रहे हजारों छात्रों (Students) पर पड़ी हैं। 

    राजनीतिक उथल-पुथल से जूझ रहे इस देश में जब से सत्ता परिवर्तन हुआ है, तभी से दोनों देशों के सांस्कृतिक और राजनीतिक सम्बन्ध बिखर से गए हैं और उसका सबसे ज्यादा असर छात्रों पर ही पड़ा है क्योंकि उनकी छात्रवृत्ति रोक दी गई है। उनकी उम्मीदें अब इंडियन कौंसिल फॉर कल्चरल रिलेसंस (आईसीसीआर) पर टिकी हैं जिनसे छात्रों ने आर्थिक मदद की गुहार लगाना शुरू कर दिया है।

    सरकार मदद करे तो बात बने 

    गुजरात से कॉमर्स से एमए करने वाले 28 वर्षीय सफदर खान ने बताया कि उनकी पढ़ाई तो अगस्त 2021 में ही पूरी हो चुकी है पर हवाई उड़ानें रद्द होने और उनके देश में तालिबान के लौट आने से सारा मामला गड़बड़ हो गया है। यही हाल मेरे जैसे 600 छात्र और छात्राओं का है जिनका भविष्य अधर में लटक गया है। खान ने बताया कि उनकी इच्छा पीएचडी करने की है, पर इसके लिए सरकार को हमें मदद करनी पड़ेगी। भारत में पढ़ने वाली 190 महिला छात्रों में से एक जरहा रेजाही ने मुंबई विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एमए पूरा किया है, लेकिन उन्हें आगे का रास्ता अंधकारमय लग रहा है, क्योंकि अफगनिस्तान में महामारी और वर्तमान सरकार ने उनके सपने छीन लिए हैं। अपनी भावनाओं पर काबू पाते हुए उन्होंने कहा कि हम कितने दुर्भाग्यशाली हैं कि हम न तो यहां पैसे के आभाव ठीक से ठीक से पढ़ सकते हैं और न ही अपने वतन वापस लौट सकते हैं। हमारी उम्मीदें भारत सरकार पर टिकी है।

    सिर्फ स्टूडेंट वीजा से भी बढ़ी मुश्किल

    अफगान छात्रों का एक बड़ा दर्द यह भी है कि उन्हें भारत में रहकर सिर्फ पढाई करने का वीजा मिला। इसका मतलब यह हुआ कि वे कोई काम नहीं कर सकते और इसलिए उन्हें सिर्फ भारत सरकार से मिलने वाली स्कॉलरशिप पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है। मुंबई में पढ़ने वाले एक अन्य अफगान स्टूडेंट ने बताया कि भारत में पढ़ रहे हम अफगानी छात्रों के परिवार हमारी आर्थिक सहायता करने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि सभी की नौकरी जा चुकी है और हमें स्कॉलरशिप पर ही निर्भर रहना पड़ता है। कई कॉलेजों में अध्ययनरत छात्रों को फीस जमा करने को कहा गया है, पर वे अभी तक फीस जमा नहीं कर पाए हैं। उनका कहना है कि हमें शिक्षा के साथ-साथ नौकरी करने की अनुमति दी जानी चाहिए।

    अफगानिस्तान में भी फंसे वहां के छात्र

    ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत में पढ़ रहे अफगान छात्र मुश्किल में हैं। भारत में पढ़ने वाले अफगानिस्तान के छात्र वहां भी फंस गए हैं। वहां के नंगरहार प्रांत के निवासी ओनिब दादगर ने एक पत्र में बताया कि भारतीय विश्वविद्यालयों में 2500 से अधिक अफगान छात्र हैं जो अफगानिस्तान में वीजा जारी होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं ताकि वे भारत आकर पढ़ाई कर सकें। मैसूर विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट के स्कॉलर ओनिब ने बताया कि भारत में हमारे राजदूत ने गृह मंत्रालय से इन छात्रों को वीजा जारी करने में तेजी लाने का अनुरोध किया है जो अफगानिस्तान में फंसे हैं। उन्होंने कहा कि तालिबान द्वारा हमारे देश पर कब्जा करने के बाद से अफगानों को वीजा जारी करने की भारत की नीति बदल गई है, इनसे हम छात्रों का कोई लेना देना नहीं हैं।