Pune-Mumbai Expressway toll
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    मुंबई. बीओटी (BOT) के आधार पर बने देश के पहले पुणे-मुंबई एक्सप्रेस वे (Pune-Mumbai Expressway) पर टोल (Toll) वसूली मामले को लेकर एक बार फिर मुंबई हाईकोर्ट (Mumbai High Court) में चुनौती दी गई है। एमएसआरडीसी (MSRDC) द्वारा संबंधित कम्पनी को मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे पर अप्रैल 2030 तक टोल वसूली के लिए विस्तार दी जाने के खिलाफ कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई है। 

    याचिका में दावा किया गया कि सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार, एक्सप्रेस वे के निर्माण में लगी राशि की वसूली वर्ष 2019 तक हो चुकी है। दूसरी तरफ एमएसआरडीसी ने हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल कर सीएजी की आडिट रिपोर्ट को गलत बताया है। एमएसआरडीसी का कहना है कि वर्ष 2004 में टोल वसूली की शुरुआत हुई। इन  वर्षों में ट्रैफिक फ्लो, ब्याज में उतार-चढ़ाव और पैसे के अवमूल्यन  आदि पहलुओं पर विचार नहीं किया गया।जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि सीएजी  के अनुसार परियोजना का  परिव्यय वसूल कर लिया गया है, टोल वसूलने के लिए ठेकेदार को दिए गए और विस्तार से न केवल यात्रियों पर बोझ पड़ेगा, बल्कि सरकारी खजाने की लूट भी होगी।

    4 हजार करोड़ थी परियोजना लागत

    वर्ष 2004 में परियोजना की लागत 4,000 करोड़ से अधिक थी, तब निगम को केवल 918 करोड़ की अग्रिम राशि प्राप्त हुई थी। 16% पर वापसी की आंतरिक दर को ध्यान में रखने के बाद 2021 में  कुल  22,370 करोड़ मिलने चाहिए। एमएसआरडीसी के हलफनामे के अनुसार, शुद्ध वर्तमान मूल्य और नकदी प्रवाह को ध्यान में रखते हुए 22,370 करोड़ की राशि अभी तक वसूल नहीं की गई है। इसे देखते हुए 2020 में अनुबंध को 10.2 वर्ष की अवधि के लिए बढ़ा दिया गया। एमएसआरडीसी ने याचिका रद्द करने की मांग की।