मुंबई पर मंडरा रहा है खतरा, बढ़ेगा तापमान, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

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    मुंबई: मुंबई (Mumbai) के लिए जलवायु परिवर्तन (Climate Change) अब चिंता का विषय बना गया है। समुद्र तट से सटा मुंबई शहर जलवायु परिवर्तन होने के कारण सबसे ज्यादा संवेदनशील माना जा रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण मुंबई में तापमान बढ़ने (Temperature Rise), कम बारिश होने,  भीषण गर्मी के साथ बाढ़ आने की संभावना बढ़ गई है जो चिंताजनक माना जा रहा है। 

    दरअसल पिछले दिनों आईपीसीसी यानी इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (Intergovernmental Panel on Climate Change) की रिपोर्ट (Report) आई जिसमें ‘एआरएस 6’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में बताया गया कि मुंबई उन  20 समुद्र तटीय शहरों में शामिल जहां समुद्र स्तर वृद्धि होने से नुकसान की संभावना ज्यादा है।रिपोर्ट में बताया गया कि बढ़ते ग्रीन हाउस गैस के कारण  समुद्र स्तर में वृद्धि हो रही है। इसके साथ ही मुंबई में चक्रवात का प्रभाव बहुत अधिक होने वाला है, प्री और पोस्ट-मानसून दोनों तरह के चक्रवातों में वृद्धि होगी। भारत में 7,500 किमी का समुद्र तट है जिसके साथ मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे अधिकांश मेगासिटी स्थित हैं। लिहाजा समुद्र सतह बढ़ने के कारण तूफान की लहरें, चक्रवात और समुद्र की सतह का बढ़ता तापमान मुंबई के लिए सभी अत्यधिक जोखिम वाला कारण माना जाना रहा है।

    लंबी समुद्र तटीय शहरों में शामिल है मुंबई

    आईपीसीसी की रिपोर्ट तैयार करने वालों में शामिल अंजल प्रकाश ने बताया कि आने वाले साल में शहरी आबादी की संख्या तेजी से बढ़ने वाली है।अगले 15 साल में देश की 60 करोड़ आबादी शहरों में रहेगी, जो मौजूदा अमेरिका की आबादी से दोगुनी होगी। देश में 7,500 किलोमीटर लंबा तटीय इलाका है। मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, विशाखापत्तनम, पुरी और गोवा जैसे इलाकों में ज्यादा गर्मी पड़ सकती है।  समुद्र का बढ़ जाने के कारण इन इलाकों में बाढ़ जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। यही नहीं यहां चक्रवाती तूफानों का भी खतरा मंडराएगा। इस रिपोर्ट को 195 देशों ने मंजूरी दी है। क्लाइमेट चेंज 2022: इंपैक्ट, एडॉप्शन और वल्नरबिलिटी  में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का आकलन किया गया है।

    गरीब परिवारों ज्यादा होते हैं प्रभावित

    शहरवासियों को बाढ़ के कारण अत्यधिक नुकसान का  सामना करना पड़ता है जिनमें आम-जान जीवन बुरी तरह प्रभावित होने के साथ-साथ आर्थिक क्षति से भी गुजरता है।  गरीब परिवारों के घरों को बाढ़ से होने वाले नुकसान, उसके मरम्मत का खर्च और  मरम्मत पर आने वाली कुल लागत उनके लिए चुनौती बन जाती है। वहीं लागत की तुलना अमीर लोगों  के आय से की जाए तो गरीब परिवारों का एक बड़ा इसमें हिस्सा खर्च हो जाता है।

    कम प्रदान की जाती है सहायता राशि

    बाढ़ की विपत्ति से उभरने के लिए गैर सरकारी संस्थान और सरकारी संस्थानों की आवश्यकता होती है जो आपदा जनक घटनाओं से निपटने के लिए सहायता प्रदान करते हैं। हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आपदा तैयारियों पर खर्च किए गए जलवायु वित्तपोषण का हिस्सा बीजिंग, मुंबई और जकार्ता जैसे मेगासिटी में बहुत बड़ा नहीं रहा है।गौरतलब है कि बाढ़ जैसी अनहोनी से होने वाले नुकसान का सही आकलन न हो पाने के कारण आर्थिक सहायता नहीं पहुंचाया जा पाता जिसके चलते लोगों को स्थिति से उभरने में बहुत समय लग जाता है।