dharmaveer

    Loading

    मुंबई: महाराष्ट्र (Maharashtra) की राजनीति में गेम चेंजर बन चुके शिवसेना के नेता और नगरविकास मंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) की बगावत से पार्टी में भी भूचाल आ गया है। शिवसेना (Shiv Sena) के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी फूट से शिवसैनिकों में हडकंप मचा हुआ है। शिवसेना में नंबर दो की पोजिशन हासिल कर चुके एकनाथ शिंदे द्वारा उठाए गए इस कठोर कदम के पीछे अन्य कारण भी बताए जा रहे हैं। इनमें हाल ही में रिलीज हुई एक मराठी फिल्म ‘धर्मवीर’ (Dharamveer Mukam Post Thane) भी है।

    एक समय ठाणे जिले के ‘ठाकरे’ कहे जाने वाले शिवसेना के कद्दावर नेता रहे आनंद दिघे के जीवन और उनकी राजनीतिक यात्रा को दर्शाने वाली फिल्म ‘धर्मवीर मुक्काम पोस्ट ठाणे’ की  भी चर्चा हो रही है। इस फिल्म में एकनाथ शिंदे को ही आनंद दिघे का असली राजनीतिक वारिस बताया गया है। इसके अलावा इस फिल्म के कुछ अन्य दृश्यों को लेकर मातोश्री में असहज स्थिति बनी, जिसके लिए एकनाथ शिंदे को जिम्मेदार ठहराया गया। कई लोग यह भी कह रहे हैं कि एकनाथ शिंदे और ठाकरे के बीच दूरी ‘धर्मवीर’ की वजह से बढ़ी।

    फिल्म में हिन्दुत्व की चर्चा

    ‘धर्मवीर’ सिनेमा में हिंदुत्व पर डायलॉग की चर्चा रही। फिल्म के आखिरी सीन में आनंद दिघे और राज के बीच इस अस्पताल के दौरे के दौरान हिंदुत्व की भी चर्चा हुई थी। दिघे राज से कहते हैं कि ‘हिंदुत्व की जिम्मेदारी अब तुम्हारे कंधों पर है’। सीन में सिर्फ राज ठाकरे का ही नाम आता है, लेकिन इसे ओटीटी पर दिखाते हुए  बदलाव किए गए। फिल्म में राज ठाकरे के साथ संवाद को म्यूट कर ओटीटी पर बदलना पड़ा। अब उसी हिंदुत्व के मुद्दे  को लेकर एकनाथ शिंदे उद्धव ठाकरे से दूर हुए हैं। चर्चा है कि उस डायलाग में राज को हिदुत्व का पैरोकार दिखाए जाने की वजह से उद्धव ठाकरे ने सिनेमा का अंत नहीं देखा। हालांकि उद्धव ठाकरे ने मीडिया से कहा था कि वह अंत नहीं देखना चाहते थे, क्योंकि यह आनंद दिघे की मौत की आखिरी घटना थी।

    एकनाथ शिंदे की अवहेलना

    ठाणे जिले के कुछ शिवसैनिकों का कहना है कि एकनाथ शिंदे ने जिस तरह ठाणे, पालघर में शिवसेना और पार्टी के पदाधिकारियों को संभाला उससे उनका कद तेजी से बढ़ा और मातोश्री को यह रास नहीं आया। पहले सीएम और हाल ही में आदित्य ठाकरे के अयोध्या दौरे में भी सारा नियोजन करने वाले एकनाथ शिंदे की अवहेलना की गई। यहां तक कि उनके मंत्रालय पर हस्तक्षेप बढ़ गया था। सरकार में उनके समर्थक विधायकों को निधी नहीं मिल पा रही थी।