mani bhavan
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विमल ‌मिश्र

‘रौलेट ऐक्ट’  हो या ‘नमक सत्याग्रह’। ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ हो या ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ या फिर नौसेना विद्रोह। देश की आजादी की लड़ाई में मुंबई जैसा महत्व कहीं और का नहीं। स्वतंत्रता संग्राम की यादगार के नाम पर लोगों की जानकारी ज्यादातर अगस्त क्रांति मैदान, मणि भवन और चौपाटी तक ही सीमित है, जबकि मुंबई में ऐसे और कई स्थान हैं।

सरदार गृह

 क्राफर्ड मार्केट के पास हेरिटेज ग्रेड थ्री का दो चौक और चार मंजिला वाला यह भवन कभी ऐसा लॉज रहा है, जहां महात्मा गांधी और सरदार पटेल ठहरा करते थे। 1 अगस्त, 1920 को लोकमान्य बालगंगाधर तिलक का यहीं निधन हुआ। भीतर तिलक के महत्वपूर्ण जीवन प्रसंगों संबंधित चित्रांकन हैं। तिलक संपादित ‘केसरी’ का मुंबई कार्यालय अब भी यहां कार्यरत है।

खिलाफत हाउस

  20 मार्च, 1919 को देश के सर्वोच्च मुस्लिम नेताओं ने अली बंधुओं की अगुवाई में सेंट्रल खिलाफत कमिटी बनाई। खिलाफत हाउस उसका मुख्यालय बना। भायखला की लव लेन का यह परिसर महात्मा गांधी, मोतीलाल नेहरू और अली बंधुओं मौलाना मोहम्मद अली तथा शौकत अली जौहर और सैफुद्दीन किचलू सरीखे राष्ट्रीय नेताओं की की यादों से भरा हुआ है। अरसे तक यहां से निकलने वाला उर्दू दैनिक ‘खिलाफत’ आजादी की जंग में मुस्लिम तबके की आवाज और मुस्लिम बुद्धिजीवियों और तरक्की पसंद कवियों और लेखकों के लिए आकर्षण था।

बिड़ला हाउस

नैपियन सी रोड स्थित बिड़ला हाउस, जो मणि भवन के साथ मुंबई में महात्मा गांधी का आवास रहा।

हीरा बाग

सी.पी. टैंक स्थित वह भवन जिसके हॉल में 13 जनवरी, 1915 को महात्मा गांधी का दक्षिण अफ्रीका से आगमन पर महात्मा गांधी का भव्य स्वागत हुआ, जिसकी अध्यक्षता लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने की।

गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज

 28 ‌दिसंबर, 1985 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना यहीं की गई थी।

गिरगांव चौपाटी

 लोकमान्य बालगंगाधर तिलक का अंत्येष्टि स्थल, जहां 1 अगस्त, 1920 को उनके अंतिम दर्शन के लिए लाखों शोकसंतप्त देशवासियों की भीड़ उमड़ी थी। उनकी प्रतिमा यहां 1 अगस्त, 1933 से है।

जुहू चौपाटी

 नमक सत्याग्रह के दौरान यहां नमक बनाया गया और कमलादेवी चट्टोपाध्याय सरीखे स्वतंत्रता सेनानियों ने उसे बेचा।

केशवजी नाईक चॉल

 गिरगांव की वह चॉल, जहां से लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने सार्वजनिक गणपति की परंपरा शुरु कर उसे देश-विदेश में फैला दिया।

चाफेकर बंधु चौक

 1896 में मुंबई में भयानक प्लेग फैला, जिसमें लाखों की जानें गईं। तत्कालीन सरकार ने महामारी को रोकने की कोशिश में कई दमनकारी और अपमानजनक कदम उठाए। उस जमाने में इस स्थान पर ब्रिटेन की मलिका विक्टोरिया की प्रतिमा होती थी। पुणे के क्रांतिकारी चाफेकर बंधुओं दामोदर, बालकृष्ण और वासुदेव ने जनता के अपमान का बदला लेने के लिए प्रतिमा की नाक काट दी और उसपर कालिख पोत दी। पुणे की स्पेशल प्लेग कमेटी के अध्यक्ष वाल्टर चार्ल्स रैंड की हत्या के आरोप में चाफेकर बंधुओं को फांसी पर लटका ‌दिया गया। उन्हींकी याद में क्रास मैदान के इस स्थान का नामकरण किया गया।

वासुदेव बलवंत फड़के चौक

 वासुदेव बलवंत फड़के को भारत के स्वतंत्रता संग्राम के आदि क्रांतिकारी कहा जाता है, जिन्होंने महाराष्ट्र की कोळी, भील तथा धांगड जातियों को एकत्र कर ‘रामोशी’ नाम का क्रांतिकारी संगठन खड़ा कर ब्रिटिश शासन की चूलें हिला दी थीं। मुक्ति संग्राम के लिए धन एकत्र करने के लिए उन्होंने धनी अंग्रेज साहूकारों को लूटा। पुणे नगर पर कब्जा करना उनका सबसे साहसिक कारनामा था। 20 जुलाई, 1879 को वे बीजापुर में पकड़े गए। काले पानी के दौरान बर्बर अत्याचारों से उन्होंने दम तोड़ दिया। मेट्रो सर्किल पर यह प्रतिमा उन्हींको श्रद्धांजलि है।

पार्ले तिलक स्कूल

लोकमान्य तिलक की स्मृति में बनाया गया विले पार्ले का स्कूल, ‌जिसका यह शताब्दी वर्ष है।

तिलक मंदिर या लोकमान्य सेवा संघ

राष्ट्रीय, सामाजिक और धार्मिक चेतना जागृत करने के लिए नौपाड़ा, विले पार्ले (पूर्व) में 1923 में स्थापित संस्था, जो नमक सत्याग्रह और ‘भारत छोड़ो’ व स्वदेशी आंदोलनों के दौरान देशभक्तों का आकर्षण बिंदु रहीं। मुंबई का पहला साहित्य सम्मेलन 1929 में यहीं हुआ।

मुंबई देशस्थ मराठा ज्ञाति धर्म संस्था

 मांडवी कोलीबाड़ा की श्री रघुनाथ महाराज स्ट्रीट में स्थित प्राचीन संस्था, जहां प्रसिद्ध समाजसुधारक वी। वी। वांदेकर ने 1888 में महान स्वातंत्र्यचेता और दलितों के महानायक ज्योतिराव फुले को ‘महात्मा’ की उपाधि प्रदान की थी। श्री रघुनाथ महाराजजी की समाधि भी यहां स्थित है।

उमर पार्क

 कंबाला हिल स्थित वह जगह, जहां के एक बंगले में फिल्म पत्रिका ‘फिल्म इंडिया’ के मशहूर प्रकाशक और संपादक बाबूराव पटेल रहते थे। 15 अगस्त, 1947 को फिल्म जगत की सारी हस्तियां यहां अपनी कारों से आजादी का जश्न मनाने रास्ते भर गाती और बजाती आई थीं। बाबूराव पटेल ने उस दिन शाम को इस खुशी में शानदार पार्टी दी थी।

खादी मंदिर

 विले पार्ले की अल्फा मार्केट स्ट्रीट वह भवन, जिसे जाने-माने गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी मणिबेन नानावटी ने शिरीन, जयाबेन देसाई और सुनाबेन राव सरीखे अपने सहयोगियों के साथ बनवाया था। मणिबेन का मानना था  कि स्वराज के लिए स्वावलंन आवश्यक है और इसका सबसे बड़ा माध्यम खादी है। इसीलिए इस स्थान पर महिलाओं को चरखा कातना सिखाया जाता था। इसका उद्घाटन कस्तूरबा गांधी ने किया था।

दीनानाथ नाट्यगृह

 विले पार्ले स्थित यह स्थान मूल रूप से ‘मोर बंगला’ है, जिसे उस काल में दानवीर कहे जाने वाले मुंबई के जाने-माने रईस गोकुलदास तेजपाल ने 1904 में बनवाया था। यह वह स्थान है, जहां सुभाषचंद्र बोस सहित देश के जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी आते थे और देश की स्वतंत्रता के लिए रणनीतियां बनाया करते थे।

अजित विला

गांवदेवी में लैबर्नम रोड स्थित वह बंगला, जहां स्वतंत्रता सेनानी उषा मेहता ने 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के दौरान कांग्रेस का भूमिगत रेडियो शुरु किया था। इस सचल रेडियो स्टेशन से स्वतंत्रता संग्राम संबंधी प्रसारण किए जाते थे। इसमें कई प्रसारण आंदोलनकारियों को सतर्क करने के लिए भी थे, ताकि पुलिस के छापों से पहले वे सुरक्षित जगहों पर भाग सकें। इसके प्रसारण की शुरुआत इस तरह से होती थी, यह भारत की किसी जगह 42।34 मीटर पर कांग्रेस रेडियो है।

जिन्ना हाउस

 जिन्ना हाउस महात्मा गांधी से वार्ताओं, बंटवारे को लेकर राष्ट्रीय नेताओं से बैठक और मुस्लिम लीग की सभाओं का गवाह रहा है। जवाहर लाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस सरीखे उसके मेहमान रह चुके हैं।