Playing with the lives of patients, blood bank of Cama Hospital running without BTO

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    – सूरज पांडे 

    मुंबई : राज्य सरकार (State Government) के अधीन आने वाले कामा अस्पताल (Cama Hospital) का अब्दुल फजलभाई ब्लड बैंक बिना ब्लड ट्रांसफ्यूजन ऑफिसर (Blood Transfusion Officer) (बीटीओ) के ही चल रहा है। नियमानुसार ब्लड बैंक बिना बीटीओ ऑफिसर (BTO Officer) के चल ही नहीं सकता, लेकिन यहां मरीजों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। 

    अन्न और औषधि प्रशासन के नियमों के मुताबिक एक ब्लड बैंक में हमेशा बीटीओ ऑफिसर उपस्थित होना चाहिए। यदि ब्लड बैंक 24 घंटे कार्यरत है तो कम से कम 3 से 4 बीटीओ होना अनिवार्य है, लेकिन कामा ब्लड बैंक में एक भी योग्य बीटीओ नहीं है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक लगभग 6 महीने से ब्लड बैंक बिना बीटीओ के चल रहा है और अन्न व औषधि प्रशासन (एफडीए) को पता ही नहीं है।

    एफडीए की जिम्मेदारी होती है कि वे सुनिश्चित करें कि ब्लड बैंक में काम करने वाला बीटीओ एफडीए अधिकृत हो, लेकिन यहां प्रशासन की ओर से बड़ी लापरवाही की बात सामने आ रही है। एफडीए के ऊपर सुस्त रवैये को लेकर सवाल भी उठाए जा रहे हैं। enavabharat.com के संवाददाता ने खुद जाकर ब्लड बैंक पर 3 बार विजिट किया और बीटीओ अनुपस्थित थे। अस्पताल ने रेसिडेंट मेडिकल ऑफिसर (आरएमओ) डॉ. सत्यनारायण को बीटीओ के तौर पर नियुक्त किया, जिनके पास ब्लड बैंक के कार्य का कोई अनुभव नहीं है।

    0.05 फीसदी को एचआईवी संक्रमित रक्त मिलने के कारण बताया गया 

    ब्लड बैंकों का संचालन करनेवाली स्टेट ब्लड ट्रांसफ्यूजन कॉउंसिल (एसबीटीसी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बिना बीटीओ के ब्लड बैंक यह बहुत गंभीर समस्या है। एफडीए को तत्काल एक्शन लेना चाहिए।  इस संदर्भ में कामा अस्पताल के अधीक्षक से भी संपर्क किया गया, लेकिन उनके ओर से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं प्राप्त हुई है।  इस संदर्भ में जब एफडीए के आयुक्त परिमल सिंह से पूछा गया तो उन्होंने कहा ‘इस मामले की जांच की जाएगी’। गौरतलब है कि अब भी शहर में संक्रमित रक्त के कारण कई लोग एचआईवी और अन्य गंभीर रोग से ग्रसित हो रहे हैं। मुंबई अप्रैल से लेकर अक्टूबर तक कुल 1659 नए एचआईवी मरीज मिले हैं, इसमें से 0.05 फीसदी को एचआईवी संक्रमित रक्त मिलने के कारण बताया गया है। 

    बीटीओ क्यों है जरूरी ?

    जब भी कोई ब्लड डोनेशन कैंप का आयोजन होता है तो उसमें रक्तदाता की हिस्ट्री बीटीओ द्वारा लेना सबसे अहम कार्य होता है। यदि हिस्ट्री ठीक नहीं ली गई तो संभावना बढ़ जाती है कि विंडो पीरियड में रहनेवाले रक्तदाता जो एचआईवी, हेपेटाइटिस बी और सी, सिफिलिस, मलेरिया जैसी बीमारी से ग्रस्त है और बीमारी से अंजान है वह संक्रमित रक्त दान कर दें, क्योंकि रक्तदाता विंडो पीरियड में है और उसे कोई लक्षण नहीं है तो रक्त की जांच में भी संक्रमण का पता नहीं चलेगा। अंजाने में ही यह संक्रमित रक्त किसी जरूरतमंद मरीज को दे दिया जाएगा और उसकी भी जिंदगी बर्बाद हो सकती है। इसके अलाव कई बार रक्तदाताओं को रक्तदान करते समय रिएक्शन होता है, इसे हैंडल करने का काम भी बीटीओ का होता है। ब्लड बैंक में रक्त की जांच की रिपोर्ट को देखना भी बीटीओ का काम होता है बिना उसके हस्ताक्षर के रक्त को सेफ नहीं माना जा सकता है। इसके अलावा बीटीओ को रक्त का ब्लड ग्रुप करना होता है और जरूरतमंद के रक्त के साथ क्रॉस मैच करना अनिवार्य होता है। यदि क्रॉस मैचिंग में गलती होती है तो जरूरतमंद को गलत रक्त जा सकता है और उसकी मृत्यु भी हो सकती है।

    क्या है बीटीओ की योग्यता ?

    एक एमबीबीएस डॉक्टर जिसे ब्लड बैंक में हो रहे काम काज का अनुभव हो यानी उसने सहायक बीटीओ के तौर पर एक वर्ष या उससे अधिक किया हो। दूसरा एक पैथोलॉजिस्ट बीटीओ नियुक्त किया जा सकता है। तीसरा  ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन में मास्टर डिग्री (एमडी) प्राप्त व्यक्ति बीटीओ के लिए योग्य माना जाता है।