Usha Mehta

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    ‌-विमल मिश्र

    मुंबई:  27 अगस्त, 1942। ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के रूप में नौ अगस्त का तूफानी और रक्तरंजित दिन बीते दो हफ्ते से ज्यादा हो चुके थे। महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) सहित कांग्रेस (Congress) का समूचा शीर्ष नेतृत्व जेल (Jail) में बंद था, भारत में चलने वाले सभी रेडियो ब्रॉडकास्टिंग लाइसेंस (Radio Broadcasting License) रद्द हो गए थे और आंदोलन को दबाने के लिए सरकार द्वारा लगाई सेंसरशिप के विरोध में 96 अखबारों ने अपने प्रकाशन स्थगित कर दिए थे। ऐसे में एक गुप्त रेडियो स्टेशन से ‘41.72 मीटर बैंड पर एक अनजान जगह से यह है इंडियन नेशनल कांग्रेस का रेडियो’ के रूप में एक मंद सी आवाज गूंजी और देखते ही देखते सारे मुंबई को तरंगित कर गई। यह आवाज थी उषा मेहता की। वह उषा मेहता  जो मुंबई में महात्मा गांधी की सबसे प्रमुख विरासत मणि भवन की सर्वे-सर्वा बनीं। उन दिनों कॉलेज में पढ़ने वाली 22 वर्षीया छात्रा थीं। इस प्रसारण ने उन्हें इस तरह भारत की ‘पहली रेडियो वूमन’ भी बना दिया।

    नौ अगस्त के मुख्य दिन शाम को कांग्रेस के युवा समर्थकों ने एक गुप्त बैठक में विचार किया कि जब नेतृत्व करने वाले सभी कांग्रेस नेता जेल में हैं ऐसे में जनता तक सही खबरों के साथ जरूर निर्देश, अपीलें और सूचनाएं पहुंचाने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिएं। इन्हीं में एक विचार था अखबार निकालना। ब्रिटिश सरकार के दमन से अखबार की पहुंच सीमित होने की आशंका से तय हुआ रेडियो शुरू करने का। ऐसे में ही 14 अगस्त को उषा मेहता ने अपने साथियों के साथ मिलकर चौपाटी इलाके में सी व्यू बिल्डिंग के सबसे ऊपरी मंजिल पर 10 किलोवॉट का एक पुराना ट्रांसमीटर की मरम्मत कर गुप्त रूप से इस रेडियो की स्थापना की, जिसकी पहली कड़ी बना 27 अगस्त का यही प्रसारण।

    रोज बदलती थी प्रसारण की जगह  

    अंग्रेजों की पकड़ से दूर रहने के कारण रे‌डियो प्रसारण की जगह रोज बदल दी जाती थी। इन्हीं जगहों में एक था गांवदेवी में लैबर्नम रोड स्थित अजित विला बंगला। 100 किलोवॉट का हो जाने से जल्द ही ट्रांसमीटर की पहुंच बढ़ गई और ‘कांग्रेस रेडियो’ बगैर किसी डर के धड़ल्ले से सुना जाने लगा। कार्यक्रम की शुरुआत होती थी ‘सारे जहां से अच्छा’ से और अंत ‘वंदे मातरम’ से। महात्मा गांधी और कांग्रेस के दूसरे बड़े नेताओं के भाषणों के अलावा भारतीयों पर जारी अत्याचार और मेरठ में 300 सैनिकों के मारे जाने जैसी खबरें – जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने अपने प्रसारणों में सेंसर कर दिया था- प्रसारित की जाती थीं।

    उषा बेन को चार साल की जेल की सजा

    14 ब्रिटिश अधिकारियों की लगातार‌ निगरानी के चलते यह रेडियो कुल 88 दिन ही चल पाया। 12 नवंबर को जब उषा मेहता जब एक शो होस्ट कर रही थीं  तो एक टेक्निशियन ने गद्दारी कर दी। मुंबई पुलिस की गुप्तचर शाखा ने छापा मारकर रेडियो प्रसारण से संबद्ध उपकरणों के साथ उषा के साथ चंद्रकांत बाबूभाई जवेरी और विट्ठलदास जवेरी को गिरफ्तार कर लिया। उन पर पांच हफ्ते तक विशेष अदालत में मुकदमा चला। उषा बेन को चार साल की जेल की सजा हुई। जेल में उनका स्वास्थ्य बहुत खराब हो गया और अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। ब्रिटिश सरकार ने साथियों के बारे में जानकारी देने के बदले उन्हें विदेश में पढ़ने का प्रलोभन दिया, पर वे टस से मस नहीं हुईं। उन्हें रिहाई मिली 1946 में जाकर।  

    इतिहासकार गौतम चटर्जी की पुस्तक में भी जिक्र

    इतिहासकार गौतम चटर्जी ने अपनी पुस्तक ‘सीक्रेट कांग्रेस ब्रॉडकास्ट  एंड स्टॉर्मिंग रेलवे ट्रैक्स ड्यूरिंग क्विट इंडिया मूवमेंट’ में लिखा है कि ‘जब क्रांति की आवाजें शून्य थीं और हर ओर अंधकार ही अंधकार दिखता था कांग्रेस के इस खुफिया रेडियो ने लोगों को साहस और प्रेरणा ही नहीं प्रदान की,  देशवासियों में धर्मनिरपेक्षता,अंतरराष्ट्रीयता, भाईचारा और स्वतंत्रता की भावना का प्रसार भी किया।