
मुंबई: आज शिवसेना (Shivsena) दो हिस्सों में बंट गई। एक हिस्सा सीएम एकनाथ शिंदे के पास है, जो इस समय बीजेपी और एनसीपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में शासन चला रहे हैं। वहीं बाल ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी के साथ दूसरे हिस्से की कमान संभाल रहे हैं। उद्धव पहले तो अपनी सरकार बनाकर सत्ता पर काबिज थे लेकिन एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद उन्हें सीएम की कुर्सी से हटना पड़ा। लेकिन एक ऐसा दौर भी था जब शिवसेना प्रमुख (Chief) बाल ठाकरे (Bal Thackeray) के एक इशारे पर मुंबई जैसे शहर की रफ्तार थम जाती थी। बाला ठाकरे एक ऐसा नाम जो किसी परिचय का मोहताज नहीं है। शिवसेना के मुखिया होते हुए भी उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा और नहीं किसी सरकारी पद को स्वीकारा लेकिन फिर भी मातोश्री में बैठकर वो सरकार को चलाते थे। बालासाहब ठाकरे के बांद्रा स्थित आवास मातोश्री के अंदर नेताओं और बाहर समर्थकों का मजमा लगा रहता था। देश हो या विदेश अगर कोई बड़ी शख्सियत मुंबई आती तो अक्सर बाल ठाकरे से मिलने मातोश्री पहुंचा करती थी। उनकी 11th पुण्यतिथि (Death Anniversay) पर जानिए उनके अनसुने किस्से…
कार्टूनिस्ट से नेता बनने का सफरनामा
महाराष्ट्र के पुणे में 23 जनवरी 1926 को बाल ठाकरे (Bal Thackrey) का जन्म हुआ था। बाल ठाकरे 9 भाइयों में सबसे बड़े थे और उनकी शादी मीनाताई ठाकरे से हुई। शादी के बाल ठाकरे के तीन बेटे हुए बिंदुमाधव ठाकरे, जयदेव ठाकरे और उद्धव ठाकरे। अपने करियर की शुरुआत बाल ठाकरे ने एक कार्टूनिस्ट (Cartoonist) के तौर पर की थी। वहीं वे 1947 में फ्री प्रेस जर्नल से जुड़े। बाल ठाकरे के कार्टून जापानी डेली न्यूज़ पेपर असाही शिंबुन और द न्यूयॉर्क टाइम्स के रविवार वीकली संस्करण में भी छपते थे। लेकिन उन्हें ये काम आगे रास नहीं आया और उन्होंने 1960 के दशक में मराठी माणूस का मुद्दा उठाया और हक के लिए लड़ने लगे। इस दौरान सियासी पारा अपने चरम पर था और फिर क्या इसमें धीरे धीरे बाल ठाकरे सक्रिय हो गए।
शिवसेना की स्थापना
साल 1966 में बाल ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना की। उसके बाद उन्होंने सामना अखबार की स्थापना की। सामना शिवसेना का मुखपत्र था जिसके माध्यम से बाल ठाकरे बेबाक अंदाज में अपनी बात कहा करते थे। धीरे धीरे राज्य में बाल ठाकरे की अलग ही पहचान बन गई और उनके बंद कहने पर मुंबई शहर की सड़के-गलियां-दुकानें अपने आप बंद हो जाती थी। बाल ठाकरे के ऑर्डर शिवसैनिकों के लिए पत्थर की लकीर होती थे। जिसे पूरा कर के ही वे दम लेते थे। बाल ठाकरे ने वैसे तो कभी चुनाव नहीं लड़ा लेकिन मातोश्री में बैठकर वो रिमोट से सरकार चलाया करते थे।
बाबरी विध्वंस की जिम्मेदारी
बाल ठाकरे हमेशा पाकिस्तान के विरोध में रहे। वहां पर फलने-फूलने वाले आतंकवाद की उन्होंने खुले मंच पर जमकर आलोचना की। यही कारण था कि उनकी छवि हिन्दू नेता के तौर पर बन गई। जब बाबरी मस्जिद को ढ़हाया गया तो उस वक्त किसी दल ने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली। लेकिन बाल ठाकरे मात्र एक ऐसे शख्स थे जिन्होंने एक टीवी शो में खुलकर कहा कि हमारे शिवसैनिकों ने बाबरी मस्जिद का विध्वंस किया है।
बॉलीवुड और इन चीजों के थे शौकीन
बाल ठाकरे की तो राजनीति में पकड़ जबरदस्त थी लेकिन बॉलीवुड में भी उन्हें लोग खूब पसंद किया करते थे। ठाकरे अमिताभ बच्चन, सुनील दत्त समेत कई दिग्गज कलाकरों के बेहद करीब थे। इसके अलावा लता मंगेशकर के बाल ठाकरे बड़े फैन थे। बाल ठाकरे सिगार, मटन, व्हाइट वाइन और बियर के दीवाने थे।
17 नवंबर को बाल ठाकरे का निधन
बाल ठाकरे का निधन 86 साल की उम्र में 17 नवंबर 2012 को मुंबई में हुआ था। निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार मुंबई के शिवाजी पार्क में किया गया था। बाल ठाकरे के निधन के बाद मानों मुंबई की रफ्तार थम सी गई थी। उस दिन बिना बोले ही लोगों ने अपने काम बंद कर दिए और उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी अंतिम यात्रा में करीब 2 लाख से भी अधिक लोग शामिल हुए थे।