ST Strike
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    मुंबई: विलीनीकरण की मांग को लेकर एसटी कर्मचारी (ST Employees) 56 दिनों से हड़ताल (Strike) पर अड़े हुए हैं। ग्रामीण इलाकों में राज्य की जीवनवाहिनी कही जाने वाली एसटी बसों (ST Buses) के पहिए थमने से आम लोग हलाकान हैं। एसटी कर्मचारियों और राज्य सरकार के बीच “अब तक 56” का खेल शुरू हो गया है। सरकार के तमाम प्रयास एवं मेस्मा की चेतावनी देने बावजूद एसटी  कर्मचारियों द्वारा अपना आंदोलन वापस न लेना अलग तरह के तनाव को आमंत्रण दे रहा है।

    इस बीच, सोमवार को मुंबई हाईकोर्ट में विलीनीकरण समिति की रिपोर्ट सौंपी गई। इस मामले की सुनवाई 22 दिसंबर तक के लिए टाल दी है। अब सरकार और कर्मचारी दोनों एक दूसरे का एनकाउंटर करने पर तुल गए हैं।

    सरकार की असफलता

    लगभग 2 माह होने के बावजुद एसटी कर्मचारियों की हड़ताल को रोक पाने में तीन दलों की लोकशाही आघाड़ी सरकार असफल साबित हुई है। राज्य के परिवहन मंत्री अनिल परब लगातार हड़ताली कर्मचारियों को अल्टीमेटम दे रहे हैं, लेकिन उसका कोई असर कर्मचारियों पर अब तक नहीं हुआ है। चर्चा है कि आखिर यह हड़ताल कब तक चलेगी। एसटी कर्मचारी किसके उकसावे पर विलीनीकरण पर अड़े हुए हैं, जबकि इस मामले में हाईकोर्ट के निर्देश पर एक कमिटी भी गठित हो चुकी है। राज्य सरकार का कहना है कि कमिटी की रिपोर्ट के बाद ही कोई निर्णय हो सकेगा।

    शरद पवार की चुप्पी

    लोकशाही आघाड़ी सरकार के तारणहार कहे जाने वाले शरद पवार की चुप्पी को भी गंभीरता से लिया जा रहा है। कर्मचारियों के मुद्दे पर कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे एड. गुणरत्न सदावर्ते का कहना है कि जब एसटी के 1 लाख कर्मचारियों का नेतृत्व शरद पवार कर सकते हैं, तो मामले को हल क्यों नहीं करते। उधर, परिवहन मंत्री अनिल परब रास्ता निकालने की बजाय सिर्फ अल्टीमेटम दे रहे हैं। 10 हजार से ज्यादा कर्मचारी निलंबित और सैकड़ों को बर्खास्त किया गया है। एड सदावर्ते का कहना है कि अब तक 54 कर्मचारी आत्महत्या कर चुके हैं। वेतन बढ़ोतरी मुद्दा ही नहीं था।

    600 करोड़ से ज्यादा का नुकसान

    उल्लेखनीय है कि पिछले लगभग 2 वर्ष से कोरोना और लॉकडाउन के चलते एसटी पहले से ही हजारों करोड़ के नुकसान में है। इस हड़ताल की वजह से एसटी को 600 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ है। कर्मचारियों को वेतन भी नहीं मिल रहा है। राज्य के 250 डिपो में से अधिकांश बंद हैं। महाराष्ट्र की लालपरी कही जाने वाली एसटी पर राज्य के ग्रामीण भागों के यातायात की बड़ी जिम्मेदारी है। 

    राज्य सरकार और कर्मचारी दोनों का नुकसान 

    हड़ताल की वजह से राज्य सरकार और कर्मचारी दोनों का नुकसान हो रहा है, इसके अलावा आम जनता भी परेशान है। सरकार को पता है कि हड़ताल जल्द न समाप्त हुई तो आम किसान, विद्यार्थियों, महिलाओं,बुजुर्गों की नाराजगी का सामना करना पड़ेगा। हड़ताल के पीछे राजनीतिक कारण बताये जा रहे हैं। एसटी निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार यदि हड़ताल जल्द ख़त्म न हुई तो कर्मचारियों के साथ बंद पड़ी बसों का काफी नुकसान होगा। इस मामले में सरकार और कर्मचारी दोनों को समझदारी दिखानी होगी।