shiv sena mlas reveal

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    मुंबई: महाराष्ट्र (Maharashtra) में चल रहे सियासी संकट ( Politics Crisis) के बीच शिवसेना (Shiv Sena )अध्यक्ष उद्धव ठाकरे और बागी नेता एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde)के सामने क्या विकल्प हैं। इसके लेकर चर्चा का बाजार गर्म है। एकनाथ शिंदे ने जिस तरह से पार्टी के 30 से ज्यादा विधायकों को अपने साथ कर उद्धव ठाकरे की सल्तनत में बड़ी सेंध लगाई है, उससे पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे सदमे में हैं। ऐसे में उनके सामने महाराष्ट्र आघाड़ी सरकार को बचाने से ज्यादा जरुरी अपनी पार्टी को बचाना है। यही वजह है कि उद्धव ने सीएम पद छोड़ने की पेशकश की है। उनकी कोशिश बागी नेता एकनाथ शिंदे को मना कर नाराज विधायकों को पार्टी में लाना है। 

    माना यह भी जा रहा है कि उद्धव ठाकरे, एकनाथ शिंदे को सीएम पद का ऑफर देकर पार्टी के साथ-साथ आघाडी सरकार को बचाने का बड़ा  दांव खेल सकते हैं, लेकिन एकनाथ शिंदे किसी भी कीमत पर आघाड़ी के साथ रहने के पक्ष में नहीं हैं। 

    …तो उद्धव ठाकरे विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं

    यदि ऐसा नहीं  होता है तो उद्धव ठाकरे सीएम पद से इस्तीफा देकर विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं। उनकी कोशिश इसके बाद चुनाव करवाने की होगी। लेकिन यह रास्ता आसान नहीं है। क्योंकि इस फैसले में महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की बड़ी भूमिका होगी। वहीँ अगर बीजेपी बागी नेता शिंदे की मदद से सरकार बनाने के बाद विधानसभा में बहुमत साबित कर देती है तो फिर उद्धव ठाकरे को अपनी सहयोगी दल कांग्रेस और एनसीपी के साथ विपक्ष में बैठना होगा।  

    एकनाथ शिंदे के पास विकल्प

    बागी नेता एकनाथ शिंदे की पहली कोशिश 37 विधायकों को एकजुट करने की है। ताकि दल-बदल कानून से बच कर विधायकों की सदस्यता को बचाया जा सके। अगर वे ऐसा करने में कामयाब होते हैं तो बीजेपी के साथ सरकार बनाने का रास्ता साफ़ हो सकता है। जानकारों का कहना है कि एकनाथ शिंदे बिना बीजेपी में शामिल हुए अलग गुट बना कर भी सरकार में शामिल हो सकते हैं। इस तरह वे अपने समर्थन में आए लोकसभा सांसदों को केंद्र में मंत्री भी बनवा सकते हैं। वहीं, अगर एकनाथ शिंदे का यह प्लान फेल हो जाता है तो उन्हें शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे से बातचीत करने के लिए विवश होना पड़ेगा। शिवसेना के अंदर अपनी शर्तों के साथ वे वापसी कर सकते हैं, लेकिन इतनी बड़ी बगावत के बाद शिवसेना में उनका कमबैक आसान नहीं होगा। वही बड़ा सवाल यह है कि क्या शिंदे की मांग पर उद्धव आघाडी का साथ छोड़ने के लिए वाकई तैयार हो जाएंगे।

    फैसले में देरी क्यों?

    सवाल यह भी उठ रहे हैं कि अगर एकनाथ शिंदे के पास पर्याप्त विधायक हैं तो फिर वे इस बारे में राज्यपाल को पत्र भेजने में देरी क्यों कर रहे हैं। जानकारों का कहना है कि इस मिशन में जितनी देरी होगी एकनाथ शिंदे की मुश्किलें बढ़ेगी। वे शिवसेना के बागी विधायकों को ज्यादा दिनों तक गुवाहाटी में नहीं रख पाएंगे। अगर विधायकों का सब्र टूटा तो वे एक बार फिर पार्टी में वापसी कर सकते हैं और शिंदे का प्लान फेल हो जाएगा।