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    नागपुर. सरकार द्वारा आवंटित की गई जमीन का दुरुपयोग कर शेगांव संस्थान की ओर से अवैध निर्माण किए जाने का आरोप लगाते हुए अशोक घोरमाडे ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की. याचिका पर बुधवार को सुनवाई के बाद न्यायाधीश सुनील शुक्रे और न्यायाधीश अनिल किल्लोर ने याचिका में कोई तथ्य नहीं होने का हवाला देते हुए न केवल याचिका ठुकरा दी, बल्कि याचिकाकर्ता पर 10,000 रु. का जुर्माना भी लगाया. याचिकाकर्ता ने गजानन महाराज शेगांव संस्थान द्वारा किए गए कथित अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई करने, सरकारी अधिकारियों को निलंबित करने, जनहित के खिलाफ कार्य करने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश देने का अनुरोध याचिका में किया था.

    गैरकानूनी कार्यप्रणाली की हो जांच

    याचिकाकर्ता ने गैरकानूनी कार्यप्रणाली को लेकर जांच कर अदालत में रिपोर्ट पेश करने के आदेश राज्य सरकार को देने का अनुरोध किया. याचिका में बताया गया कि अब तक कई बार गजानन महाराज संस्थान के पदाधिकारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई, साथ ही उनके द्वारा अपने जिम्मेदारी का वहन नहीं करने के लिए भी शिकायत की गई थी. 22 सितंबर 1999 को राज्य सरकार की ओर से धार्मिक स्थल के विकास के लिए 101 हेक्टेयर जमीन 15 वर्षों की लीज पर गजानन महाराज संस्थान को प्रदान की थी. सरकार की ओर से प्रदान जमीन पर किसी तरह का पक्का निर्माण नहीं करने की शर्त रखी गई थी. जमीन पर केवल सौंदर्यीकरण करना था. राज्य सरकार की ओर से लीज की समयावधि 30 वर्षों के लिए बढ़ा दी गई. 

    केवल आनंद सागर का करना था सौंदर्यीकरण

    याचिकाकर्ता के अनुसार राज्य सरकार ने केवल 1 रु. के वार्षिक लीज रेंट पर जमीन का आवंटन किया था लेकिन आनंद सागर के सौंदर्यीकरण के अलावा किसी तरह का निर्माण नहीं करने की शर्त रखी थी. किसी तरह का निर्माण कार्य करने से पहले नगर परिषद की अनुमति लेना अनिवार्य था लेकिन आनंद सागर तालाब के पास संस्थान की ओर से काफी बड़ी मात्रा में अवैध निर्माण किया गया है जिसे लेकर सरकार की ओर से पाबंदी लगाई गई थी.

    याचिकाकर्ता के अनुसार वाटर हार्वेस्टिंग और सौंदर्यीकरण के लिए केवल 10 हेक्टेयर जमीन का उपयोग किया गया, जबकि बची जमीन संस्थान की ओर से हार्वेस्टिंग के लिए उपयोग नहीं किया जा रहा है. यहां तक कि आनंद सागर के बीच में संस्थान द्वारा पक्का निर्माण किया गया है. सुनवाई के दौरान संस्थान की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि हाई कोर्ट की निगरानी में शेगांव का विकास हुआ है. यहां तक कि याचिकाकर्ता की ओर से लगाए गए सभी आरोपों को खारिज किया. सुनवाई के बाद अदालत ने उक्त आदेश जारी किए.