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नागपुर. पारिवारिक न्यायालय द्वारा पत्नी को 30,000 रुपए प्रति माह का गुजारा भत्ता देने के आदेश 5 अप्रैल 2023 को जारी किए गए. इसी आदेश को चुनौती देते हुए पति ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की. इस पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश उर्मिला जोशी-फालके ने सुप्रीम कार्ट के आदेशों के अनुसार यदि 30 जून 2023 तक निधि जमा करने में याचिकाकर्ता विफल हो जाता है तो गिरफ्तारी वारंट जारी होने की चेतावनी दी. याचिकाकर्ता की ओर से स्वयं रजनीश नायडू और प्रतिवादी पत्नी की ओर से अधि. सुरभि गोडबोले ने पैरवी की. याचिकाकर्ता के अनुसार 18 दिसंबर 2011 को उनका विवाह हुआ था. 10 जनवरी 2013 को उन्होंने संतान को जन्म दिया. 2013 में ही पत्नी ने पारिवारिक न्यायालय में गुजारा भत्ता के लिए याचिका दायर की.

सुको ने लगाई थी मुहर

अदालत को बताया गया कि पत्नी ने स्वयं के लिए 35,000 रुपए प्रति माह तथा संतान के लिए 15,000 रुपए प्रति माह की मांग रखी थी. याचिका के अलावा अंतरिम राहत की दृष्टि से दोनों के लिए प्रति माह 25,000 रुपए की मांग भी की थी. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर मुहर लगाई थी. सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि गुजारा भत्ता निर्धारित करने के लिए सुको ने कुछ मापदंड निर्धारित किए हैं जिसके आधार पर पारिवारिक न्यायालय को न्याय करने को कहा गया था. याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि उन्होंने एक फौजदारी याचिका दायर की थी. पारिवारिक न्यायालय ने इसका निपटारा नहीं किया है, जबकि अब पारिवारिक न्यायालय की ओर से याचिकाकर्ता के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट ही जारी किया गया है जिससे मजबूरन हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा है.

50 प्रश बकाया भरने का दिया था मौका

याचिकाकर्ता ने गिरफ्तारी वारंट को लेकर जारी आदेश को निरस्त करने की मांग अदालत से की. सुनवाई के दौरान पत्नी की ओर से पैरवी कर रही वकील ने कहा कि गुजारा भत्ता को लेकर आदेश का पालन नहीं किए जाने के कारण ही गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है. सुको की ओर से अवमानना याचिका पर जो आदेश दिया गया, उसमें कहा गया कि 17 मार्च 2023 के आदेश का भी पालन नहीं किया गया जिसमें याचिकाकर्ता को 50 प्रतिशत बकाया राशि का भुगतान करने का अंतिम मौका प्रदान किया गया.

याचिकाकर्ता पति की ओर से बताया गया कि 24 नवंबर 2022 तक 5,75,000 रुपए का बकाया था, जबकि पत्नी का मानना था कि 10,25,000 रुपए का बकाया है. दोनों पक्षों की दलीलों के बाद 1,75,000 रुपए 30 जून के पूर्व अदा करना था. सुको ने पारिवारिक न्यायालय के आदेश पर रोक भी नहीं लगाई. दोनों पक्षों की दलीलों के बाद अदालत ने उक्त आदेश जारी किया.