Cotton market vegetable market starts from 19, Manpa commissioner orders issued

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    • कागजों से बाहर निकालना आवश्यक
    • कॉटन मार्केट, यशवंत स्टेडियम, रेलवे स्टेशन, गोल बाजार, सुभाष मार्केट का होगा भला

    नागपुर. मेट्रो की कार्यप्रणाली के आका काफी खुश हुए थे. शहर के तमाम बड़े-बड़े भूखंड मेट्रो के हवाले करने और उसे पुनर्विकसित करने की बात भी हुई थी लेकिन वर्षों बीत जाने के बाद भी यह प्रोजेक्ट्स कागजों तक ही सीमित है. जमीन स्थानांतरण और अन्य कार्यों में विलंब के कारण मेट्रो की गाड़ी आगे ही नहीं बढ़ पा रही है.

    कॉटन मार्केट, यशवंत स्टेडियम, रेलवे स्टेशन, गड्डीगोदाम, नेताजी सुभाष मार्केट, पटवर्धन मैदान में आलीशान बाजार, मॉल, मार्केट, मल्टीप्लेक्स और न जाने क्या-क्या बनाने के सपने दिखाये गए थे. अब तक कुछ भी नजर नहीं आ रहा है. पटवर्धन मैदान के लिए अब तक 2-3 बार बोली निकाली जा चुकी है लेकिन बोली लगाने वाले ही नहीं आ रहे हैं. इसके बाद मेट्रो ने पुन: प्लान को संशोधित किया और नए सिरे से बोली आमंत्रित की ताकि कुछ मंझोली कंपनियां भी रुचि ले सके. हालांकि इसमें भी मेट्रो को सफलता नहीं मिली. यहां पर भी लाखों वर्ग मीटर का निर्माण होना है. 

    कॉटन मार्केट : 2,000 करोड़ का प्रोजेक्ट

    कॉटन मार्केट, रेलवे ट्रैक से लगकर खाली जमीन और संतरा मार्केट के विकास का काम मेट्रो को देने की बात हुई थी. कुछ भूखंड मिल भी गए है लेकिन बाकी का मामला अब तक मनपा के पाले में अटका हुआ है. लगभग 13 एकड़ जमीन के लिए एक शानदार संरचना तैयार भी की गई है. इसमें मार्केट भी होगा, बस स्टैंड भी होगा और ऊंची-ऊंची बिल्डिंगों में कमर्शियल स्पेस भी होगा. वर्षों से डिजाइन बनकर तैयार है. इसके आगे मामला बढ़ ही नहीं पाया है. अनुमानत: इस प्रोजेक्ट पर लगभग 2,000 करोड़ रुपये खर्च होने हैं. 

    यशवंत स्टेडियम : 1,000 करोड़ से अधिक की योजना 

    मेट्रो को यशवंत स्टेडियम के पुनर्विकास की भी जिम्मेदारी सौंपी गई. इस प्रोजेक्ट का भी एक शानदार डिजाइन बनकर तैयार है. 5,000 कारों की पार्किंग के साथ ही यहां पर शॉपिंग मॉल, मल्टीप्लेक्स, कमर्शियल स्पेस, मैदान बनाने की योजना को अंतिम रूप भी दे दिया गया. बैठकें भी हुईं. पालक मंत्री ने भी रुचि दिखाई. इसके बाद मामला वहीं का वहीं पड़ा रह गया. इस प्रोजेक्ट पर भी लगभग 1,000-1,200 करोड़ रुपये खर्च आने का अनुमान था. 

    गोल बाजार, नेताजी बाजार एवं अन्य

    गड्डीगोदाम स्थित गोल बाजार, बर्डी स्थित नेताजी मार्केट, रेलवे के समीप स्थित भूखंडों का विकास काम भी मेट्रो की जिम्मे हैं. यह सारी जमीनें मेट्रो के हवाले हो चुकी है. निर्माण के लिए रूपरेखा भी तैयार कर ली गई है. परंतु मामला ठंडे बस्ते में चला गया है.

     8,000-1,0000 करोड़ के कुल कार्य

    सभी को मिलाकर मेट्रो के पास लगभग 8,000 से 10,000 करोड़ रुपये के कार्य अतिरिक्त दिए गए थे. निश्चित रूप से 8-10 हजार करोड़ निवेश होने से जहां शहर की रौनक बढ़ती, वहीं लोगों को नए-नए विकल्प भी मिलते. परंतु 3 वर्षो से अधिक समय से सारे के सारे प्रोजेक्ट पर काम ही नहीं हुआ है.

    तालमेल का अभाव

    अब भी कई प्रोजेक्ट को लेकर तालमेल का साफ-साफ अभाव देखा जाता है. एक एजेंसी उत्सुक दिखती हैं, तो दूसरी एजेंसी के अधिकारी निराश हो जाते हैं. समन्वय के अभाव में विकास कार्य ठप पड़ता जा रहा है. जनता को जो सपने 3-4 वर्ष पूर्व दिखाये थे, जनता उसे देखने को उत्सुक है लेकिन उन्हें हाथों में निराशा ही लग रही है. यह सारे ऐसे प्रोजेक्ट है, जो शहर के प्राइम एरिया में बनने जा रहे थे. प्राइम एरिया होने के कारण ही इनकी अहमियत भी काफी थी, परंतु अब इस प्रोजेक्ट्स के बारे में कोई बात ही नहीं हो रही है. 

    डिमांड की भी कमी

    वास्तव में देखा जाए, तो अब तक नागपुर में डिमांड की भी कमी महसूस की जा रही है. मेट्रो ने अब तक मेट्रो स्टेशनों पर जो कमर्शियल स्पेस विकसित किए हैं, उसके लिए नियमित रूप से बोलियां आमंत्रित की जा रही है. लोगों को जागरूक करने के लिए बैठकों का दौर आयोजित किया जा रहा है. बावजूद लोग स्टेशनों के अंदर अभी स्पेस लेने को तैयार नहीं हो रहे हैं. यही कारण है कि जीरो माइल, सीताबर्डी स्टेशन को भी वर्तमान 4-5 मालों से ऊपर बनाने की प्राथमिकता को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है, जबकि इन्हें 20-20 मालों का बनाने का प्रस्ताव था. जब तक डिमांड नहीं बढ़ेगी, तब तक इन बिल्डिंगों का 20-20 माले तक पहुंचना नामुमकिन ही नजर आ रहा है.