Nagpur High Court
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    नागपुर. चुनाव आयोग की ओर से हाल ही में नगर परिषद, नगर पंचायत और महानगर पालिकाओं के चुनाव को लेकर कार्यक्रम घोषित किया. इन चुनावों में ओबीसी आरक्षण को लेकर राज्य सरकार की ओर से अध्यादेश जारी किया. सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार ओबीसी आरक्षण निर्धारित करने के लिए प्रक्रिया पूरी किए बिना ही राज्य सरकार की ओर से अध्यादेश जारी किए गए. इस पर आपत्ति जताते हुए राज्य सरकार के अधिकारों को चुनौती देते हुए विकास गवली ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की है.

    मंगलवार को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से इस अध्यादेश पर रोक लगाने के आदेश देने का अनुरोध किया. जिस पर न्यायाधीश सुनील शुक्रे और न्यायाधीश अनिल पानसरे ने राज्य सरकार और चुनाव आयोग आदि को अपना पक्ष रखने का मौका देने की वकालत करते हुए इस पर अगली सुनवाई में संज्ञान लेने के संकेत दिए. यदि अगली सुनवाई में अनुरोध स्वीकार किया जाता है तो मनपा और अन्य चुनावों पर संकट गहराने के इनकार नहीं किया जा सकता है. याचिकाकर्ता की ओर से अधि. अक्षय नाइक, राज्य सरकार की ओर से मुख्य सरकारी वकील केतकी जोशी और चुनाव आयोग की ओर से अधि. जैमीनी कासट ने पैरवी की. 

    27% का नहीं दें सकते आरक्षण

    याचिकाकर्ता ने याचिका में कहा कि राज्य सरकार ने महाराष्ट्र जिला परिषद एंड पंचायत समिति एक्ट-1961 की धारा 12 (2)(सी) का हवाला देते हुए सम्पूर्ण राज्य की जिला परिषद में ओबीसी को 27 प्रतिशत का आरक्षण निर्धारित कर दिया. सर्वोच्च न्यायालय ने इस धारा के संदर्भ में खुलासा किया है. जिसके अनुसार 3 शर्तों का पालन किए बिना आरक्षण तय नहीं किया जा सकता है. पहली शर्त में एससी, एसटी और ओबीसी का कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता है.

    दूसरी शर्त में स्थानीय निकायों में पिछड़ापन निर्धारित करने के लिए तथा इम्पीरिकल जांच करने के लिए आयोग का गठन करना है. तीसरी शर्त में आयोग के सुझावों के आधार पर ही संबंधित स्थानीय निकायों में आरक्षण का औसत निर्धारित करना है. सर्वोच्च न्यायालय ने ओबीसी आरक्षण को लेकर दिए फैसले में स्पष्ट कहा है कि पूरे राज्य में एकदम 27 प्रतिशत आरक्षण निर्धारित करना स्वीकार नहीं किया जा सकता है. 

    राज्य की सभी स्थानीय निकायों को फैसला लागू

    याचिकाकर्ता के अनुसार सुको द्वारा दिए गए फैसले में स्पष्ट किया गया कि यह फैसला राज्य की सभी स्थानीय निकायों को लागू होगा. याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि सुको के फैसले के अनुसार इम्पीरिकल डेटा जमा करना और अध्ययन करने की जिम्मेदारी महाराष्ट्र स्टेट कमिशन फॉर बैकवर्ड क्लासेस को सौंपी गई है. किंतु अब तक काम पूरा नहीं हुआ है. मंगलवार को सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने कहा कि कानून की दृष्टि से मुद्दा काफी गंभीर है. चूंकि स्थानीय निकायों के चुनावों को लेकर कार्यक्रमों की घोषणा हो चुकी है. अत: इस संदर्भ में तुरंत संज्ञान लेना जरूरी है. अदालत ने राज्य सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर 4 दिसंबर तक अपना पक्ष रखने के आदेश दिए.