Daga Hospital

  • निधि के साथ ही पद भी हुये मंजूर, नहीं हो सका साकार

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नागपुर. रक्तदान कर लोगों का जीवन बचाया जा सकता है लेकिन कई बार रक्तदान के बाद एक शरीर की बीमारी दूसरे शरीर में फैलने की भी संभावना रहती है. इसी संभावना के मद्देनजर ‘नैट’ तकनीक युक्त मेट्रो ब्लड बैंक का विकल्प सामने आया. सरकार ने शासकीय डागा स्मृति स्त्री अस्पताल में 55 लाख रुपये खर्च कर मेट्रो ब्लड बैंक तैयार करने का निर्णय लिया, लेकिन 6 वर्ष बीत जाने के बाद भी मेट्रो ब्लड बैंक तैयार नहीं हो सका. रक्तदान के बाद रक्त में विविध घटकों की जांच की जाती है. ताकि रक्त के माध्यम से अन्य शरीर में संक्रमण या अन्य कोई बीमारी न फैले.

मुंबई में 6 वर्ष पहले सरकार द्वारा पहला मेट्रो ब्लड बैंक जे.जे. हॉस्पिटल परिसर में शुरू किया. इसका लाभ भी मरीजों को मिल रहा है. ऑरेंज सिटी सहित ग्रामीण की जनता को लाभ दिलाने के उद्देश्य से नैट जांच युक्त रक्त उपलब्ध होने के लिए मेट्रो ब्लड बैंक की योजना बनाई गई. इसके बाद नाशिक, अहमदनगर, जलगांव, अमरावती, चंद्रपुर, परभणी, ठाणे, पुणे और सतारा शहरों में भी मेट्रो ब्लड बैंक तैयार किये जाने वाले थे. तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डॉ. दीपक सावंत ने इसकी घोषणा की थी. 

नैट तकनीकी से होनी थी जांच 

मुंबई में मेट्रो ब्लड बैंक जैसी सुविधा शासकीय स्तर पर शुरू हो गई, लेकिन ऑरेंज सिटी को पीछे ही रखा गया. इतने वर्षों में प्रशासन ने कभी ध्यान नहीं दिया. सत्ता परिवर्तन के साथ ही स्वास्थ्य मंत्री भी बदले लेकिन किसी को भी याद नहीं आई. सिटी के अधिकांश निजी ब्लड बैंक नैट युक्त है इनमें रक्त की जांच की जाती है. इससे खर्च भी बढ़ जाता है. इस हालत में सामान्य व निर्धन मरीज के लिए ब्लड यूनिट की किमत भी बढ़ जाती है. शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालयों में मरीजों की लंबी कतार रहती है. यही वजह थी कि शासकीय स्तर पर सुविधा उपलब्ध कराया जाना था. स्वास्थ्य विभाग ने डागा में मेट्रो ब्लड बैंक को मंजूर भी दी, उपकरण भी लगाए गये. निर्माण कार्य पूरा होने के बाद फलक भी लगाया गया लेकिन इसके बाद सब कुछ ठंडे बस्ते में चला गया.

हर माह 1,200 प्रसूति

डागा अस्पताल में हर दिन करीब 30-40 प्रसूति होती है. इनमें से करीब 15 प्रसूति शल्यक्रिया के माध्यम से होती है. इस हालात में महिलाओं को रक्त की अधिक जरूरत पड़ती है. इसके अलावा थैलेसीमिया और सिकलसेलग्रस्त माताओं को यह रक्त वरदान साबित होता है. इसका लाभ डागा में आने वाली महिलाओं को ही अधिक मिलने वाला था. मेट्रो ब्लड बैंक तैयार करने के लिए शुरुआत में स्वास्थ्य विभाग ने रुचि दिखाई. 55 लाख रुपये मंजूर करने के साथ ही 1६ कर्मचारियों के पद भी मंजूर किये लेकिन अब तक ब्लड बैंक ठंडे बस्ते में पड़ा है. अब भी यहां होल ब्लड देने की ही पद्धति जारी है. इससे रक्त से संक्रमण का खतरा भी रहता है.

क्या होती नैट तकनीक 

नैट एडवांस ब्लड टेस्ट तकनीक है. इसमें मरीज के ब्लड में इन्फेक्शन का पता जल्दी चल जाता है. इस नई तकनीक से ब्लड टेस्ट इन्फेक्शन का पता लगाने का विंडो पीरियड भी कम होता है. यानी इंफेक्शन के कुछ देर बाद ही ब्लड डोनेट किया गया हो तो भी तकनीकी से पता चल जाता है.