
नागपुर. मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प की आरएफओ दीपाली चव्हाण के बहुचर्चित आत्महत्या मामले में मुख्य आरोपी बनाए गए गुगामल परिक्षेत्र के उप वन संरक्षक विनोद शिवकुमार की ओर से जमानत के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया. याचिका पर बुधवार को सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने पासपोर्ट सरेन्डर करने तथा अदालत की अनुमति के बिना देश न छोड़ने जैसी कड़ी शर्तों के साथ जमानत के आदेश दिए थे. शर्तों के अनुसार याचिकाकर्ता को हर माह के दूसरे और चौथे शनिवार को सदर पुलिस में हाजिरी लगाने के आदेश भी दिए गए थे. अब इस शर्त से राहत देने का अनुरोध करते हुए अर्जी दायर की गई जिस पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश एमडब्ल्यू चांदवानी ने इस शर्त से छूट प्रदान की.
दायर हो गई चार्जशीट
दोनों पक्षों की दलीलों के बाद अदालत ने आदेश में कहा कि इस मामले की जांच पूरी हो चुकी है. यहां तक कि चार्जशीट भी दायर की गई है. ऐसे में अब पुलिस थाना में हाजिरी लगाने का कोई औचित्य नहीं रह गया है. उल्लेखनीय है कि दीपाली चव्हाण मेलघाट अंतर्गत हरिसाल वन क्षेत्र की वन परिक्षेत्र अधिकारी थीं. उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा निरंतर मानसिक रूप से प्रताड़ित किए जाने का कारण देते हुए त्रस्त होकर आत्महत्या कर ली थी. यहां तक कि इस संदर्भ में सुसाइड नोट भी लिखकर रखा था. शपथपत्र में सरकार का मानना था कि शिवकुमार जानबूझकर दीपाली को मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान किया करता था. कई लोगों के सामने ही अपमान भी किया करता था. इसी वजह से निराशा में डूबी दीपाली ने तंग आकर आत्महत्या कर ली जिसका उल्लेख उसके सुसाइड नोट में भी किया गया था.
रेड्डी ने शिवकुमार पर नहीं की कार्रवाई
-शिवकुमार की ओर से लगातार हो रही परेशानी और गैर हरकतों को लेकर दीपाली ने कई बार वरिष्ठ अधिकारी रेड्डी से शिकायत भी की थी. 25 जनवरी 2021 को भी दीपाली और उसके पति ने रेड्डी से भेंट कर कार्रवाई की मांग की थी.
-रेड्डी ने शिवकुमार के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जिससे शिवकुमार की कारगुजारी बदस्तूर जारी रही. शिवकुमार पर किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं होने पर अंतत: दीपाली ने आत्महत्या का मार्ग अपनाया.
-शपथपत्र में सरकार की ओर से बताया गया कि शिवकुमार के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार नहीं होने का रेड्डी का दावा भी गलत था. रेड्डी द्वारा एफआईआर रद्द करने के लिए अलग से अर्जी दायर की गई. इसी बीच शिवकुमार को जमानत प्रदान की गई.