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    नागपुर. आगामी मनपा चुनाव के लिए सभी मुख्य पार्टियों ने वोटों के जोड़-तोड़ का गणित शुरू कर दिया है. मुख्य पार्टियां अपने समविचारी छोटी पार्टियों और सक्रिय संगठनों को साथ में लेने के लिए गणित बिठाने में व्यस्त हो गई हैं. ऑफरों से लुभाया जा रहा है. वैसे सभी पार्टियां अपने वोट बैंक को एकजुट करने के लिए बूथ स्तर पर सक्रिय भी हो चुकी हैं. बैठकों, प्रशिक्षण कार्यशालाओं का सिलसिला चल रहा है. वैसे सत्तासीन भाजपा के साथ रिपाई आठवले है तो कांग्रेस को पीरिपा, रिपाई गवई का साथ है. शिवसेना फिलहाल किसी रिपाई गुट के साथ नहीं है तो राकां भी नया गुट खोज रही है.

    दलित और मुस्लिम वोटों का विभाजन न हो और ओबीसी फैक्टर को भी अपने पक्ष में करने के लिए पार्टी नेता प्रयास कर रहे हैं. बीते दिनों तो ओबीसी आरक्षण के पक्ष में सभी मुख्य पार्टियों ने आंदोलन कर यह जताने का प्रयास किया था कि वे ओबीसी के साथ हैं. मनपा में बसपा की 10 सीटें हैं और इस बार के चुनाव में वह फिर एकला चलो की राह पर ही है. सिटी में बसपा का कैडर वोट है जो दूसरी पार्टियों की ओर नहीं जाता है.

    कांग्रेस-राकां को अवसर

    कयास लग रहे हैं कि बीते 15 वर्षों से मनपा में सत्तासीन भाजपा के खिलाफ इस वर्ष कुछ विपरीत हालत हो सकते हैं जिसका लाभ कांग्रेस और राकां को मिल सकता है. सत्ता के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी की चर्चा भी चल रही है. कुछ का आकलन यह भी है कि भले ही भाजपा की सीटें कुछ कम हो सकती हैं लेकिन सत्ता उसे हासिल होगी. इसके पीछे केंद्रीय मंत्री गडकरी द्वारा सिटी में किए गए विकास कार्य हैं. बावजूद इसके भाजपा भी चुनाव को हल्के में नहीं ले रही है. उसके नेता छोटी पार्टियों और सक्रिय सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों को अपने पक्ष में करने की जुगत में जुट गए हैं. चुनाव में 4 मुख्य पार्टियां भाजपा, कांग्रेस, राकां और शिवसेना के साथ ही बसपा भी मैदान में होगी. इन सभी के अपने वोट बैंक भी हैं लेकिन बदलती परिस्थितियों के चलते सभी पार्टियां वोटों का गणित लगाते हुए समविचार वाली छोटी पार्टियों और संगठनों को अपने साथ जोड़ने का प्रयास कर रही हैं. 

    वंचित बहुजन आघाड़ी कांग्रेस के साथ

    चर्चा यह भी है कि वंचित बहुजन आघाड़ी को कांग्रेस अपने साथ लाने का प्रयास कर रही है. चूंकि बीते दिनों हुए स्थानीय स्वराज संस्थाओं के चुनावों में वंचित बहुजन के वोटिंग परसेंटेज में कुछ इजाफा दिख रहा है इसलिए सभी पार्टियां उसे अपने खेमे में लाने का प्रयास कर रही हैं. भाजपा और राकां की नजर उस पर लगी हुई है. चूंकि अब मतदाताओं में युवाओं की संख्या अधिक है और वे जागरूक भी हैं इसलिए उन्हें अपनी पार्टी से जोड़ने का प्रयास पार्टी संगठनों द्वारा किया जा रहा है. वहीं बसपा तो एकला चलो रे की राह पर ही अब तक नजर आ रही है. एमआईएम भी मनपा चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारने के मूड में है. कुछ सीटों पर वह वोट कटवा की भूमिका निभाने का काम कर सकती है. एमआईएम क्या किसी के साथ जाएगी, इस पर भी नजरें लगी हुई हैं. एक चर्चा यह भी है कि बसपा और एमआईएम एक साथ आ सकती हैं.