Huge crowds in the markets during unlock in Bhiwandi

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    • 72 घंटे बीत जाने के बाद भी नहीं हुआ डाउनलोड 

    नागपुर. सिटी सर्वे कार्यप्रणाली से नागरिक त्रस्त हैं जो कार्य कार्यालय में होना चाहिए उसके लिए लोगों को दर-दर भटकना पड़ रहा है. सिटी सर्वे विभाग ने प्रत्यक्ष प्रमाणपत्र देने की सुविधा बंद कर देने से नागरिकों को परेशान होना पड़ रहा है. आखिव पत्रिका के लिए लोगों को कार्यालय के चक्कर पर चक्कर लगाने पड़ रहे हैं लेकिन उनका काम नहीं हो पा रहा है. कार्यालय के कर्मचारी नागरिकों को बाहर के नेट कैफे का रास्ता दिखा रहे हैं. नागरिकों का कहना है कि जब सब कार्य नैट कैफे से ही होंगे तो यहां के कर्मचारी सरकार से किस कार्य का वेतन लेते हैं. 

    नेट कैफे से होगा प्राप्त 

    संपत्ति के नामांकन के लिए नई आखिव पत्रिका आवश्यक है. सिटी सर्वे कार्यालय में दोपहर 1 बजे तक आवेदन स्वीकार करने और प्रमाणपत्र वितरण का समय 3 बजे के बाद का है. इसके चलते नागरिक राजेश पौनीकर प्रशासकीय इमारत क्रमांक 1 में सिटी सर्वे नंबर 2 में आखिव पत्रिका निकालने सुबह-सुबह पहुंचे. कार्यालय में आवेदन करने पर सिटी सर्वे के कर्मचारी ने आखिव पत्रिका कार्यालय से नहीं मिलने और प्रमाणपत्र डिजिटल तरीके से किसी भी नेट कैफे से प्राप्त होने का जवाब दे दिया और आवेदन पत्र पर सातबारा डॉट कॉम साइट लिखकर दे दिया और अपने काम में लग गया.

    इसके पश्चात पौनीकर ने शहर के कई नेट कैफे पर पहुंचे लेकिन उन्हें वहां पर आखिव पत्रिका निकालने से इंकार कर दिया गया. नेट कैफे में बताया गया कि यह प्रमाणपत्र महा ई-सेवा केंद्र से ही मिलेगा. वहीं उन्होंने 3 से 4 महा ई-सेवा केंद्र से संपर्क किया तो उन्हें आखिव पत्रिका के लिए वहां पर भी सफलता नहीं मिली. वहां के कर्मचारी ने बताया कि प्रमाणपत्र केवल नेट कैफे से ही मिलेगा. उन्होंने एक और नेट कैफे में जाकर आखिव पत्रिका निकालने का प्रयास किया लेकिन सफलता नहीं मिली.

    एक नेट कैफे में काफी प्रयासों के बाद लिंक खुली लेकिन आखिव पत्रिका निकालने के लिए आवेदन में मांगी गयी कई प्रकार की जानकारी कर्मचारी के गले ही नहीं उतर पाई. जैसे-तैसे प्रक्रिया पूरी करने पर ऑनलाइन 135 रुपये का भुगतान किया गया. रुपये का भुगतान करने के बाद भी आखिव पत्रिका 72 घंटे से ऊपर हो गया, लेकिन डाउनलोड नहीं हुई.

    250 रुपये का खर्च

    आखिव पत्रिका में कितने पन्ने हैं यह तक जानकारी आवेदन करते समय दर्ज नहीं है. आखिव पत्रिका मिलने से पहले ही नेट कैफे के कर्मचारी ने 300 रुपये झटक लिये. आखिव पत्रिका के संदर्भ में जिलाधिकारी कार्यालय के पास बैठे अर्जनवीस से पूछने पर उसने 225 रुपये चार्जेस और ऊपर से 25 रुपये अलग से कुल 250 रुपये का खर्च बताया.

    जिलाधिकारी कार्यालय के पास 250 रुपये और नेट कैफे पर 300 रुपये में एक आखिव पत्रिका बनाने में 50 रुपये का अंतर हैं. महाराष्ट्र सरकार की यह डिजिटल आखिव पत्रिका प्रणाली जी का जंजाल बनकर रह गयी जो आखिव पत्रिका एक ही दिन में प्रत्यक्ष रूप से हाथोंहाथ मिल जाती थी. आज वही प्रमाणपत्र डिजिटल तरीके से मिलने के लिए तीन से चार दिनों का समय लग रहा है.