Nagpur High Court
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    नागपुर. कामठी स्थित रामकृष्ण सारदा मिशन द्वारा संचालित स्कूल ऑफ होम साइंस को स्थानांतरित करने के लिए शर्तों के आधार पर मंजूरी प्रदान की गई थी. प्रस्ताव को दी गई मंजूरी के अनुसार बुद्धिस्ट नामदेवराव खरे मल्टीपर्पज एजुकेशन सोसाइटी ने अन्य स्थान पर स्कूल को स्थानांतरित करना चाहिए था. शर्तों का उल्लंघन किए जाने को लेकर मिशन की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई.

    जिस पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश सुनील शुक्रे और न्यायाधीश जी.ए. सानप ने राज्य सरकार के शिक्षा सचिव, शिक्षा उप संचालक, जिला परिषद के माध्यमिक शिक्षा अधिकारी और एजुकेशन सोसाइटी को नोटिस जारी कर जवाब दायर करने के आदेश दिए. याचिकाकर्ता की ओर से अधि. आनंद परचुरे और सरकार की ओर से अति. सरकारी वकील आनंद फुलझेले ने पैरवी की. अदालत ने आदेश कहा कि चूंकि स्कूल ट्रांसफर नहीं की गई और शर्तों का उल्लंघन किया गया, अत: अब मिशन ही स्कूल ऑफ होम साइंस का संचालन करेगा.

    शिक्षा मंत्री से भी की थी शिकायत

    याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधि. आनंद परचुरे ने कहा कि 6 नवंबर 2011 को जीआर जारी किया गया था. जीआर की शर्तों के अनुसार यदि एजुकेशन सोसाइटी द्वारा इसका उल्लंघन किया जाता है या फिर इस संदर्भ में राज्य सरकार को कोई शिकायत प्राप्त होती है तो राज्य सरकार द्वारा स्कूल ट्रांसफर के लिए दी गई अनुमति खारिज हो जाती है. एजुकेशन सोसाइटी ने रामकृष्ण सारदा मिशन को उनके परिसर से दूसरी जगह पर स्कूल ट्रांसफर करने के संदर्भ में लिखित आश्वासन दिया था. जिसका पालन नहीं किया गया. यहीं कारण था कि 3 नवंबर 2021 को एजुकेशन ऑफिसर ने तुरंत स्कूल ट्रांसफर की प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश सोसाइटी को दिए थे. याचिकाकर्ता की ओर से इस मसले को लेकर शिक्षा मंत्री से भी शिकायत की थी. 

    कोर्ट से छिपाई वास्तविक जानकारी

    अधि.परचुरे ने कहा कि तमाम वास्तविकता को छिपाते हुए सोसाइटी ने कामठी में दिवानी न्यायालय में सिविल सूट दायर की. जिस पर 20 जून 2022 को जैसे थे के आदेश भी प्राप्त कर लिए. सिविल सूट के दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद अदालत ने कहा कि दिवानी न्यायालय से वास्तविक जानकारी छिपाई गई है. दिवानी न्यायालय में कामठी कैंटोनमेंट स्थित माल रोड निवासी अमोघप्रणा प्रवर्जिका के खिलाफ सिविल सूट दायर की गई. जबकि मसला रामकृष्ण सारदा मिशन और बुद्धिस्ट नामदेवराव खैरे मल्टीपर्पज एजुकेशन सोसाइटी के बीच का था. यहां तक कि सिविल कोर्ट के न्यायाधीश ने इस वास्तविकता को नजरअंदाज कर दिया. हालांकि प्रवर्जिका के खिलाफ सिविल सूट दायर करने का कोई औचित्य नहीं होने का हवाला देकर आदेश जारी करना चाहिए था. सुनवाई के बाद अदालत ने यह आदेश जारी किया.