मेडिकल : वरिष्ठ डॉक्टरों की लेटलतीफी, ओपीडी में मनमर्जी से आ रहे

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नागपुर. शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालय व अस्पताल में एक बार फिर से व्यवस्था बिगड़ने लगी है. वरिष्ठ डॉक्टरों की लेटलतीफी का सिलसिला शुरू हो गया है. ओपीडी में निवासी डॉक्टरों को जिम्मेदारी सौंप दी जाती है जबकि वरिष्ठ अपनी मनमर्जी से आ रहे हैं. प्रशासकीय स्तर पर नियंत्रण कमजोर होने से मरीजों सहित परिजनों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

मेडिकल में ओपीडी का समय सुबह 8.30 से दोपहर 2 बजे तक का होता है. ओपीडी के बाद कैजुअल्टी शुरू हो जाती है. ओपीडी में यदि वरिष्ठ डॉक्टर समय पर पहुंच जाएं तो अधिकाधिक मरीजों की जांच हो सकती है. साथ ही मरीजों की लंबी कतार नहीं लगेगी लेकिन इन दिनों स्थिति विपरीत देखने को मिल रही है.

वरिष्ठ डॉक्टर 10.30 बजे से पहले ओपीडी में नहीं आते. आने के बाद भी तुरंत मरीजों का इलाज शुरू नहीं किया जाता. तब तक निवासी डॉक्टर मोर्चा संभाले रहते हैं लेकिन कुछ मामलों में वरिष्ठों के सुझाव के लिए उन्हें भी अपने वरिष्ठों का इंतजार करना पड़ता है. सुबह 11 से दोपहर 12 बजे के बीच सभी ओपीडी के सामने लंबी कतारें लग जाती हैं. इस हालत में कई बार मरीजों की योग्य तरीके से जांच भी नहीं हो पाती. यदि किसी मरीज को किसी टेस्ट के लिए सुझाव दिया गया तो उसे टेस्ट कराने में शाम के 4 बज जाते हैं. 

एचओडी का ही नियंत्रण नहीं 

वरिष्ठ डॉक्टरों की लेटलतीफी की मुख्य वजह विभाग प्रमुखों द्वारा देरी से पहुंचना है. कुछ वरिष्ठ डॉक्टर तो उनकी यूनिट की ओपीडी होने के बावजूद अलग कमरे में बैठे रहते हैं. मरीजों की जांच तक नहीं करते. सहयोगी प्राध्यापक के साथ निवासी डॉक्टर ही जिम्मेदारी संभाले रहते हैं. साथ ही दोपहर 1 बजे के बाद कई वरिष्ठ डॉक्टर ओपीडी ही नहीं बल्कि कॉलेज से भी निकल जाते हैं. विभागों के कामकाज पर प्रशासन का नियंत्रण नहीं होने की वजह से ही मनमर्जी चल रही है. यदि इस संबंध में कोई मरीज या परिजन शिकायत करें तो उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है.

ओपीडी के साथ ही वार्डों में स्थिति बिगड़ी हुई है. कुछ विभागों में हर दिन होने वाला डॉक्टरों का राउंड भी नियमित समय पर नहीं हो रहा है. कभी 11 तो कभी 12 बजे से पहले भर्ती मरीजों को देखने कोई नहीं आता. इस वजह से निवासी डॉक्टरों पर भी नियंत्रण नहीं रह गया है. इसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है. शासकीय अवकाश सहित छुट्टियों के दिन तो स्थिति और भी बिगड़ जाती हैं. छुट्टियों की वजह से ऑपरेशन में भी देरी हो रही है. नियोजित ऑपरेशन टालने जैसी नौबत बन रही है.