Mayo and Medical, GMCH

  • सरकार नहीं दिखा रही गंभीरता, बिगड़ रही स्थिति

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  • 750 बेड मेयो, मेडिकल में बढ़े 
  • 1900 बेड मेडिकल में 
  • 833 हो गये मेयो में 
  • 350 पद मेयो में खाली 

नागपुर. एक ओर जहां मरीजों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है तो दूसरी ओर सरकार द्वारा सरकारी मेडिकल कॉलेजों में कर्मचारियों की नियुक्ति की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. कई मेडिकल कॉलेज अब भी पुराने ढर्रे पर ही चल रहे हैं. आईसीयू सहित वार्डों में भी सीमित बेड हैं. इस हालत में पृथक व्यवस्था कर बेड बढ़ाये जाने के बाद कर्मचारी नहीं मिलने से अस्पताल प्रशासन की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं.

मरीजों की संख्या बढ़ने और बेड कम पड़ने के बाद मेयो में २५० तथा मेडिकल में ५०० कुल ७५० बेड बढ़ाये गये लेकिन 5 वर्ष बीत जाने के बाद भी बढ़े हुए बेड को मंजूरी नहीं मिली. पुरानी संख्या के आधार पर ही मैन पॉवर मंजूर है. इनमें भी जो कर्मचारी सेवानिवृत्त हो रहे हैं, उनकी जगह नई भर्ती नहीं की जा रही है. स्थिति यह है कि निवासी डॉक्टरों पर काम का बोझ बढ़ गया है. वहीं कई बार परिजनों को अटेंडेंट का काम करना पड़ता है. मेयो में 2017 में सर्जिकल कॉम्प्लेक्स शुरू किया गया. पहले 590 बेड थे लेकिन कॉम्प्लेक्स बनने के बाद २५० बेड बढ़ाये गये. इसमें अस्थिव्यंगोपचार, ईएनटी, नेत्र, व शल्यक्रिया विभाग शुरू किये गये. 

नये-नये विभाग हुये शुरू

बेड बढ़ने के बाद नियमानुसार मैन पॉवर में भी बढ़ोतरी की जानी चाहिए थी लेकिन वर्तमान में नर्सों के 115, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के 200 पद, फॉर्मासिस्ट के 6, टेक्नीशियन के 5 सहित अन्य पद खाली हैं. मेयो में पुराने व नये बेड मिलाकर कुल संख्या ८33 तक पहुंच गई है. इस तुलना में नर्सों की संख्या केवल ४७५ है. इनमें भी १० से १५ फीसदी नर्सें विविध कारणों से छुट्टी पर होती हैं. नर्सों पर भी काम का तनाव बढ़ गया है. कई वार्डों में केवल 2 नर्से ही होती हैं. इस हालत में कई बार परिजनों को ही अटेंडेंट का काम करना पड़ता है. इसी तरह मेडिकल में १४०० बेड की पुरानी मंजूरी प्राप्त है लेकिन मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए 500 नये बेड के साथ ही कुछ नये-नये विभाग भी शुरू किये गये हैं. इस तरह मेडिकल में कुल 1900 बेड हो गये हैं. बेड बढ़ने के बाद नये पदों को मंजूरी नहीं मिली है. सीमित मैन पॉवर में ही काम करना पड़ रहा है. 

हर बार डॉक्टरों पर ही दोष

जब भी किसी मरीज की मौत वेंटिलेटर, आईसीयू सहित दवाइयों के अभाव में होती है तो इसका ठीकरा डॉक्टरों के सिर फोड़ा जाता है लेकिन वस्तुस्थिति पर ध्यान नहीं दिया जाता. कोविड काल में मेडिकल और मेयो को अतिरिक्त वेंटिलेटर मिले थे लेकिन इनमें से कई बंद पड़े हुये हैं. दुरुस्ती के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता है. किसी भी खरीदी के लिए निधि हेतु मुंबई स्थित मंत्रालय की ओर ताकते रहना पड़ता है. सरकार द्वारा मेडिकल कॉलेजों की स्थिति की ओर गंभीरता से ध्यान नहीं देने का ही नतीजा है कि दिनोंदिन स्थिति बिगड़ती जा रही है.