मेडिकल: अटक गया स्किन बैंक, सामग्री, उपकरण और मैन पॉवर नहीं मिल सका

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    नागपुर. गंभीर रूप से जलने वाले मरीजों की त्वचा प्रत्यारोपण (होमोग्राफ्टिंग) कर जान बचाई जा सकती है. इसके लिए मेडिकल ने जून २०२१ में स्किन बैंक स्थापित किया था. मध्य भारत का यह पहला स्किन बैंक बना जरूर लेकिन इसके लिए आवश्यक विविध रसायन से लेकर अन्य सामग्री व मैन पॉवर उपलब्ध नहीं होने से अब तक शुरू ही नहीं हो सका.

    आग की घटना में कई बार मरीजों में दिव्यांगता, विद्रूप रूप आ जाता है. इससे संबंधित व्यक्ति के आत्मविश्वास में भी कमी आने की संभावना रहती है. इसे गंभीरता से लेते हुए प्लास्टिक सर्जन डॉ. समीर जहागीरदार के सहयोग से रोटरी क्लब, ऑरेंज सिटी हॉस्पिटल और नेशनल बर्न सेंटर मुंबई की मदद से २७ फरवरी २०१४ को मेडिकल में पहला त्वचा बैंक शुरू किया गया. तत्कालीन अधिष्ठाता डॉ. सजल मित्रा ने इसके लिए जगह भी उपलब्ध कराई. पश्चात नियमानुसार प्रक्रिया व उपकरणों की दुरुस्ती की गई. बाकायदा त्वचा बैंक का उद्घाटन भी हुआ लेकिन बाद में अधिष्ठाता के बदलते ही मेडिकल ने त्वचा बैंक को चलाने में असमर्थता व्यक्त कर दी. 

    फिर से दिया प्रस्ताव 

    स्किन बैंक की जिम्मेदारी प्लास्टिक सर्जरी विभाग को सौंपी गई लेकिन प्रत्यारोपण के लिए रसायनों की आवश्यकता होती है. साथ ही अन्य सामग्री भी चाहिए थी. 2 टेक्नीशियन और लिपिक की नियुक्ति करने का भी प्रस्ताव भेजा गया लेकिन प्रशासन की ओर से कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई. अब एक बार फिर प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ. सुरेंद्र पाटिल ने स्किन बैंक के लिए आवश्यक सामग्री का नया प्रस्ताव तैयार कर अधिष्ठाता डॉ. राज गजभिये को दिया है. उम्मीद है कि डॉ. गजभिये के कार्यकाल में त्वचा बैंक साकार हो सकेगा.