
नागपुर. पिछले वर्षों से वैद्यकीय शिक्षा व अनुसंधान विभाग द्वारा सरकारी मेडिकल कॉलेजों में पद भर्ती को लेकर बरती जा रही उदासीनता से व्यवस्था पर असर पड़ा है. पिछले वर्षों में नये-नये विभाग शुरू किये. वहीं नये उपकरण भी लगाए गये, लेकिन टेक्नीशियन से लेकर कर्मचारी-अधिकारियों के खाली पद भरने पर ध्यान नहीं दिया गया. कोरोना काल में मेडिकल कॉलेजों को भरपूर निधि दी गई लेकिन पद भर्ती पर सरकार ने गंभीरता नहीं दिखाई. शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालय व अस्पताल में वर्ग-1 से लेकर वर्ग- 4 तक के अनेक पद खाली हैं. पिछले वर्षों में सरकारी मेडिकल कॉलेजों में मरीजों का प्रेशर बढ़ा है.
महानगर पालिका के अस्पतालों में डॉक्टरों के पद खाली होने से मेडिकल में मरीजों की भीड़ लगती है. अकेले मेडिकल में हर दिन करीब 2,500 मरीजों की ओपीडी होती है. लेकिन मैन पावर की कमी से मरीजों सहित परिजनों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. आरटीआई एक्टिविस्ट अभय कोलारकर द्वारा मांगी गई जानकारी के अनुसार मेडिकल में वर्ग-1 के 7 पदों में से 6 खाली है. इनमें वैद्यकीय अधीक्षक, उप वैद्यकीय अधीक्षक, प्रमुख वैद्यकीय अधिकारी, एपिडेमोलॉजिस्ट, नर्सिंग प्राचार्य, उप प्राचार्य के पद खाली हैं. केवल एकमात्र रेडियोथेरेपी प्राध्यापक का ही पद भरा हुआ है.
12 लिपिक की कमी
वहीं गट ब में वैद्यकीय अधिकारी के 27 पदों में 3 खाली है. नर्सिंग के सहायक प्राध्यापक के 4 में से 2 पद, अधिव्याख्याता के 4 में 4, फिजिसिस्ट का 1, अधिसेविका वर्ग-2 का 1, बायोमैकेनिकल इंजीनियर का 1 पद खाली है. गट ब में कुल 43 मंजूर पदों में से 13 पद खाली है. इसी तरह कनिष्ठ लिपिक के 40 मंजूर पदों में से 12 पद खाली है. निम्नश्रेणी लघुलेखक के 3 में से 1 पद खाली है. लिपिक संवर्ग में कुल 77 मंजूर पदों में से 15 पद खाली है.
व्यवस्था पर पड़ रहा असर
पद खाली होने से प्रशासनिक सहित स्वास्थ्य व्यवस्था पर असर पड़ा है. जबकि पहले की तुलना में स्नातक और स्नातकोत्तर की सीटें बढ़ गई हैं. स्थिति यह है कि विभाग प्रमुख प्रशासकीय कार्यों में ही ज्यादा व्यस्त रहते हैं. मरीजों की संख्या इतनी अधिक हो जाती है कि विविध तरह की जांच के लिए घंटों का इंतजार करना पड़ता है. अटेंडेंट की कमी की वजह से परिजनों को ही स्ट्रेचर खींचना पड़ता है. सरकार द्वारा महत्वपूर्ण विभाग की ओर से गंभीर नहीं बरतने से स्थित बिगड़ती जा रही है.