College students
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    नागपुर. 11वीं प्रवेश के लिए अब तक 2 राउंड पूरे हो चुके हैं, जबकि तीसरे राउंड के प्रवेश चल रहे हैं. उम्मीद थी कि इस बार 10वीं में सभी छात्र उत्तीर्ण होने से जूनियर कॉलेजों की भी बल्ले-बल्ले होगी लेकिन स्थिति इसके विपरीत बनी हुई है. बताया जा रहा है कि 20 से अधिक जूनियर कॉलेजों को इस बार 11वीं का सेक्शन बंद करना पड़ेगा क्योंकि इनमें अब तक गिनती के ही प्रवेश हुए हैं. 

    शिक्षा विभाग द्वारा केंद्रीय प्रवेश पद्धति से 11वीं के प्रवेश दिए जा रहे हैं. पहले राउंड में सिटी के लगभग नामी और कोचिंग-ट्यूशन से टायअप करने वाले कॉलेजों में सीटें भर गईं. सबसे ज्यादा सीटें साइंस फैकल्टी में भरीं लेकिन अब भी कई कॉलेजों को छात्रों की प्रतीक्षा करना पड़ रहा है. कुछ पुराने अनुदानित जूनियर कॉलेज सहित प्राइवेट कॉलेजों में अब तक 20 से ज्यादा छात्रों ने प्रवेश नहीं लिया, जबकि स्टाफ अप्रुवल के अनुसार कम से कम एक सेक्शन में 35 छात्र होना चाहिए. छात्र कम होंगे तो इन जूनियर कॉलेजों के लिए शिक्षक की नियुक्ति करना भी मुश्किल हो जाएगा. यही वजह है कि करीब 20 से अधिक जूनियर कॉलेजों ने इस वर्ष से 11वीं का सेक्शन ही बंद करने का मन बना लिया है. 

    खर्च वहन करना होगा मुश्किल 

    इस बार केंद्रीय प्रवेश पद्धति में सिटी के 217 कॉलेजों ने हिस्सा लिया. इन कॉलेजों में कुल 58,875 सीटें उपलब्ध हैं, जबकि प्रवेश के लिए 33,944 छात्रों ने पंजीयन कराया था. वहीं 29,184 छात्रों ने ऑप्शन फार्म भरे थे. दूसरा राउंड खत्म होने के बाद करीब 19,000 छात्रों ने ही प्रवेश लिया है, जबकि करीब 40,000 सीटें अब भी खाली हैं. सीटें खाली होने से शिक्षक भी अतिरिक्त हो जाएंगे. वहीं प्राइवेट कॉलेजों के लिए खर्च वहन करना मुश्किल होगा. यही वजह है कि 20 से अधिक जूनियर कॉलेजों ने कम प्रवेश की वजह से बंद करने की दिशा में कदम उठाना शुरू कर दिया है. इस संबंध में शिक्षा उप संचालक कार्यालय को भी अवगत कराए जाने की जानकारी मिली है. 

    टायअप वाले कॉलेज मालामाल

    एक ओर जहां पुराने जूनियर कॉलेजों को छात्र नहीं मिल रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सिटी के कुछ कॉलेजों में सभी सीटें भर गई हैं. कोचिंग-ट्यूशन से टायअप होने से इन कॉलेजों को छात्र आसानी से मिल जाते हैं. सबसे ज्यादा दिक्कतें आर्ट फैकल्टी के कॉलेजों को रही हैं. छात्रों में आर्ट में प्रवेश को लेकर रुचि नहीं होने से शिक्षकों की मुश्किलें बढ़ने लगी हैं. छात्र कम होने से अनुदानित कॉलेजों में स्टाफ अप्रवुल की समस्या निर्माण हो जाएगी. यानी वर्षों से सेवा देने वाले शिक्षकों को अतिरिक्त करना पड़ेगा.