Nylon Manja
Representational Pic

  • पाबंदी के बाद भी धड़ल्ले से हो रही बिक्री
  • फेसबुक मार्केट प्लेस पर कई विक्रेता सक्रिय

Loading

नागपुर. नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल द्वारा पाबंदी लगाए जाने के बावजूद अब भी नायलॉन मांजे की धड़ल्ले से बिक्री हो रही है. हाई कोर्ट ने सभी प्रकार के घातक मांजों पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश सरकार को दिए है. बावजूद इसके कुछ दूकानदार अब भी चोरी-छिपे नायलॉन मांजा बेच रहे है. प्रशासन की सख्ती को देखते हुए अब विक्रेताओं ने दूकान में मांजा रखने की बजाए इसकी ऑनलाइन बिक्री शुरु कर दी है. फेसबुक मार्केट प्लेस पर बड़ी तादाद में विक्रेता सक्रिय है. जो अलग-अलग दामों पर विभिन्न कंपनियों के मांजे होम डिलेवरी करने के लिए तैयार है. ऐसे में सवाल उठता है कि मांजे पर प्रतिबंध कैसे लगेगा. प्रशासन इन विक्रेताओं पर कैसे कार्रवाई करेगा.

मोनोकाइट के अलग-अलग प्रोडक्ट

नायलॉन मांजा का सबसे ज्यादा प्रचलित ब्रांड है मोनोकाइट. इस ब्रांड के ही सबसे ज्यादा उत्पादन ऑनलाइन बेचे जा रहे है. मोनोकाइट गोल्ड, ओरिजनल, फाइटर और बारिक नाम से नायलॉन मांजे उपलब्ध करवाए जा रहे है. इनकी कीमत 350 से 700 रुपये तक है. पकड़े जाने से बचने के लिए विक्रेताओं ने अलग-अलग नामों से फेसबुक पर नई आईडी बनाई है. ग्राहक केवल मैसेंजर के जरिए इनसे संपर्क कर सकते है. इससे विक्रेता की सही पहचान भी सामने नहीं आती. खरीदार के मैसेज से विक्रेता उनकी आईडी में जाकर ग्राहक का पेशा जान लेते है. यदि कोई पुलिसकर्मी इनसे संपर्क करें तो जवाब भी नहीं मिलता. ऐसे में इन्हें पकड़ पाना मुश्किल है. केवल ट्रैप लगाकर ही विक्रेताओं पर नकेल कसी जा सकती है, लेकिन इतना समय किसके पास है. 

उत्पादन पर क्यों नहीं लगती पाबंदी

अब सवाल ये है कि जब नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल और हाई कोर्ट की पाबंदी के बावजूद इतने बड़े पैमाने पर मांजा मार्केट में आ कहां से रहा है. विक्रेता भी माल तब बेचेंगे जब उन्हें नायलॉन मांजा उपलब्ध होगा. पुलिस और प्रशासन नायलॉन मांजा बेचने वालों पर तो कार्रवाई कर लेता है लेकिन इसका उत्पादन करने वाली कंपनियों पर किसी प्रकार की पाबंदी नहीं होती. पहले मांजा केवल चाइना से आता था. अब चाइना से निर्यात लगभग बंद हो गया है. यही कारण है कि अब स्वदेशी नायलॉन मांजा मार्केट में आ रहा है. यदि मांजा बनाने वाली कंपनियों पर ही कार्रवाई हो तो इस जानलेवा मांजे की बिक्री ही बंद हो जाएगी, लेकिन सच तो यह है कि आज तक किसी बड़ी कंपनी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है.

युवा वर्ग में ज्यादा डिमांड

प्लास्टिक और सिंथेटिक मटेरियल से बनने वाला यह मांजा अन्य धागों की तुलना में काफी मजबूत होता है. बरेली का 9 तार वाला मांजा भी इसके आगे टिक नहीं पाता. घोटा हुआ मांजा तो अब दूकानों में दिखाई ही नहीं देता. यही कारण है कि कपास से बनाया जाना वाली सद्दी अब बिकना लगभग बंद हो गई है. केवल छोटे बच्चों के लिए सद्दी को कलर करके बेचा जा रहा है. नायलॉन मांजे की डिमांड युवा वर्ग में ज्यादा है. मांग होने के कारण ही 200 रुपये की नायलॉन मांजे की चकरी अब 400 से 700 रुपये में बिकती है. दूकानदारों का कहना है कि अब कोई भी बरेली का धागा मांगने नहीं आता. उन्हें तो व्यापार करना है. जैसी ग्राहकों की डिमांड वैसा ही माल बेचना उनकी मजबूरी हो गई है. 

अब रेडीमेड का जमाना

वैसे भी समय के हिसाब से लोगों की सोच बदल रही है. दीपावली पर पटाखे हो या होली के रंग सभी इको फ्रेंडली होता जा रहा है. ऐसे में नायलॉन मांजा मार्केट में गया. यह लोगों की जान के लिए तो खतरनाक है ही प्राकृती के लिए भी नुकसान दायक है. एक तरफ प्लास्टिक के उत्पादनों पर बैन लगाया जा रहा है. वहीं दूसरी तरफ बड़े पैमाने पर मांजों का उत्पादन हो रहा है. मांजा घोटने की कला तो अब लुप्त होती जा रही है. एक समय था जब संक्रांति की तैयारी 1 महीने पहले से शुरू हो जाती थी. पहले सादा धागा खरीदना. फिर सीरस, रंग और कांच का पावडर मिलाकर मांजा एक पोल से दूसरे पोल पर ले जाना यह सब अब कहीं दिखाई नहीं देता. अब जब रेडीमेड नायलॉन मांजा बाजार में उपलब्ध है तो घुटाई में समय कौन गवाएगा.